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…और बना दिया खानेवाला चम्मच
प्लास्टिक के चम्मच से होनेवाली हानि से मिली प्रेरणा प्लास्टिक के चम्मच से होनेवाले नुकसान के बारे में प्राय: सभी जानते हैं. फिर भी उसका उपयोग यह जानते हुए भी करते हैं कि इसके प्रयोग के बाद गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं. ऐसे चम्मच न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए, बल्कि पर्यावरण के […]
प्लास्टिक के चम्मच से होनेवाली हानि से मिली प्रेरणा
प्लास्टिक के चम्मच से होनेवाले नुकसान के बारे में प्राय: सभी जानते हैं. फिर भी उसका उपयोग यह जानते हुए भी करते हैं कि इसके प्रयोग के बाद गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं. ऐसे चम्मच न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए, बल्कि पर्यावरण के लिए भी हानिकारक हैं. अब प्लास्टिक के बने चम्मचों को फेंकने की बारी आ गयी है, क्योंकि बाजार में अब भोजन के साथ खानेवाला चम्मच भी आ गया है. यह नुकसानदेह नहीं है, क्योंकि यह अनाज से बना है. एक नजर इस खोज पर…
नारायण पीसपति हैदराबाद के रहनेवाले हैं. वे इस समय बकीज फूड प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक हैं. जब उन्हें प्लास्टिक के चम्मचों से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़नेवाले असर के बारे में पता चला, तो वे दंग रह गये.
48 वर्षीय नारायण बताते हैं कि जब वह यात्रा करते, तब इन प्लास्टिक के चम्मचों को कचरों में देख कर अपराधबोध महसूस करते. इस कारण उन्होंने इसके विकल्प पर विचार करना शुरू कर दिया. फिर उन्होंने प्लास्टिक की कटलरी के बदले एक ऐसे चम्मच का इजाद किया, जिससे भोजन करने के बाद खाया भी जा सकता है.
आम तौर पर यह सभी जानते हैं कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए हानिकारक है, लेकिन यह कोई नहीं जानता कि कैटलरी को साफ किये बिना दोबारा प्रयोग करना नुकसानदायक होता है. वे कहते हैं कि प्लास्टिक का प्रयोग भोजन के लिए नहीं होना चाहिए. उन्होंने प्लास्टिक के चम्मच से होनेवाले कई प्रकार के नुकसान की जानकारी देते हुए कहा कि प्लास्टिक के कैटलरी को हमें अपने जीवन से बाहर कर देना चाहिए.
कैसे नुकसानदेह है प्लास्टिक?
दरअसल, प्लास्टिक के सामान के निर्माण में विषाक्त और कैंसर जैसी बीमारियों को पैदा करनेवाले रासायनिक पदार्थों का मिश्रण किया जाता है. जब आदमी प्लास्टिक के चम्मचों और कैटलरी से भोजन करता है, तो खाद्य पदार्थ के साथ मिल कर स्वास्थ्य को हानि पहुंचानेवाले ये रासायनिक पदार्थ शरीर तक पहुंचते हैं. हमारे देश में इस प्रकार के कई कैटलरी के सामान प्लास्टिक के बनाये जाते हैं, जो भोज्य पदार्थों के साथ मिल कर लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं.
पैसे की बचत के चक्कर में लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. इन प्लास्टिक के वस्तुअों को देख कर नारायण पीसपति ने उन स्थानों का दौरा किया, जहां प्लास्टिक के कैटलरी का उत्पादन किया जाता है. वहां उन्होंने देखा कि इसका उत्पादन काफी हद तक खाद्य पदार्थों के लिए सुरक्षित नहीं है, क्योंकि जिन थैलियों में कैटलरी को पैक किया जा रहा था, उनमें एक खास तरह का इंजेक्शन लगाया जा रहा था. तभी से उनके मन में प्लास्टिक के पदार्थों के उपयोग के प्रति घृणा हो गयी.
पहले शोधकर्ता के रूप में कर चुके हैं काम
उस समय नारायण पीसपति हैदराबाद में अंतरराष्ट्रीय क्रॉप अनुसंधान संस्थान (आइसीआरआइएसएटी) में अर्द्धशुष्क कटिबंधीय फसलों पर शोध कर रहे थे. वे भूमिगत जल प्रबंधन पर शोध कर रहे थे कि आखिर किस कारण से भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है.
इस दौरान उन्होंने पाया कि भूजल स्तर को बढ़ाने में शुष्क प्रदेशों में उपजायी जानेवाली फसल ज्वार चावल की खेती से कहीं अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकती है. यह वही समय था, जब वे इस विषय पर विचार कर रहे थे कि बाजार में ज्वार की बिक्री को खाद्य पदार्थ के रूप में कैसे बढ़ायी जाये. इस इलाके में ज्वार का प्रयोग मुख्य खाद्य पदार्थों के रूप में किये जाने का एक प्रमुख कारण है. इसके बाद उन्होंने ज्वार की फसल को बाजार में प्रमुखता के साथ नये कलेवर में उतारने की योजना बनायी.
ऐसे बनाया खानेवाला बकीज
एक बार नारायण हवाई जहाज से अहमदाबाद से हैदराबाद की यात्रा कर रहे थे. इसमें उन्होंने गुजराती खाकरा का इस्तेमाल चम्मच के रूप में करते हुए देखा. उन्होंने यह भी देखा कि हवाई जहाज में बैठे सवारी खाकरे का इस्तेमाल चम्मच के रूप में कर रहे हैं और भोजन समाप्त होने के बाद उसे खा भी जा रहे हैं. तब उनके मन में प्लास्टिक के चम्मचों से होनेवाले नुकसान से बचाव की एक तरकीब सूझी. वर्ष 2010 में उन्होंने एक ऐसा चम्मच बनाया, जिसे भोजन करने के बाद खाया भी जा सकता है. इसका नाम उन्होंने बकीज रखा.
इस प्रकार के चम्मच को उन्होंने ज्वार, चावल और गेहूं के आटे को मिला कर बनाया. यह चम्मच पानी और भोजन के साथ रखने पर भी गीला नहीं होता है. यह भोज्य पदार्थों के साथ 10-15 मिनट तक रखने के बाद जब खाना समाप्त हो जाये, तो अंत में आसानी से खाया जा सकता है. यदि इसे खुले में नहीं रखा गया और यदि चूहों की नजर से यह बचा रह गया, तो कोई भी व्यक्ति चम्मच को पैकेट से निकालने के पांच-छह दिन के बाद भी प्रयोग कर सकता है. हालांकि, इस नये उत्पाद को बाजार में चलाना आसान नहीं था, क्योंकि बाजार में गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा है. इस बात को जानते हुए भी उन्होंने लोगों के जीवन को बचाने के लिए जोखिम उठाना बेहतर समझा.
ऐसे की बिक्री की शुरुआत
नयी अवधारणा पर खानेवाले चम्मच का उत्पादन चुनौतीपूर्ण था. क्योंकि इसके निर्माण की कोई तकनीक ईजाद नहीं की गयी थी. सब कुछ अध्ययन और शोध के बाद विकसित किया गया. इसके लिए तकनीक विकसित करने में नारायण को करीब 60 लाख रुपये खर्च करने पड़े. तकनीक के साथ-साथ उन्होंने इसके निर्माण के लिए मशीन भी बनायी, लेकिन उनके सामने इससे भी बड़ी चुनौती प्लास्टिक से होनेवाली हानि के बारे में लोगों को समझाने की थी. ऐसे में उन्होंने वेबसाइट के जरिये बकीज की बिक्री शुरू की. वेबसाइट के जरिये इस नये उत्पाद की बिक्री करने की तरकीब ने काम किया और बिक्री बाजार में धीरे-धीरे जोर पकड़ने लगी. अौर अब यह लोगों की पसंद बन रहा है.
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