वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
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एक बेटी जो ग्रेजुएशन में है, उसने लिखा है कि ‘‘बारहवीं में कोचिंग क्लास के बैच में एक लड़का आया. वह बात-बात पर ‘लव यू यार’ बोला करता था. शुरू में मुझे लगा कि वह मुझे ही ‘लव यू’ बोलता है, मगर बाद में पता चला कि यह उसकी आदत है. मगर तब तक मेरे मन में उसके लिए प्यारवाली फीलिंग्स आ चुकी थीं. अब वह दिल्ली में लॉ कर रहा है.
मैं यह भी नहीं जानती कि वह लड़का मुझे प्यार करता भी है कि नहीं, लेकिन मैं उसे भूल नहीं पा रही. मैं यह भी जानती हूं कि शायद यह एकतरफा है. काश! उसकी यह आदत न होती तो मुझमें यह फीलिंग नहीं आती. क्या पता कोई और भी लड़की ऐसा ही सोच रही हो, लेकिन मैं अब क्या करूं?’’
आप बच्चे अपने स्टाइल, अपनी लापरवाही, अपने बिंदास अंदाज के आगे यह नहीं समझते कि आपके व्यवहार का दूसरे पर क्या असर होगा. ऐसा नहीं कि यह उस लड़के की आदत से एक लड़की को गलतफहमी हुई है. ऐसे ही लड़कियों के बिंदास अंदाज से कई बार लड़कों को भी गलतफहमी होती है. इसमें उन बच्चों की मंशा गलत नहीं है, लेकिन आप अपने व्यवहार को ऑब्जर्व नहीं करते. आप का व्यवहार हो सकता है आपका स्टाइल हो, मगर यह जरूरी नहीं कि दूसरा व्यक्ति भी उसे आपका स्टाइल समझे. हो सकता है आप जो बात मजाक में कहें, उसे सामनेवाला गंभीरता से ले. हमारी बात को हमेशा सामनेवाला वैसे नहीं लेता, जैसा हम चाहते हैं.
कभी हम गंभीर होते हैं, मगर सामनेवाला उसे गंभीरता से नहीं लेता. इसलिए अपने व्यवहार में सुधार लाइए. क्या आप चाहते हैं कि आपकी गलतफहमी का शिकार आपका कोई दोस्त हो. मैं उस बेटी से यही कहना चाहती हूं कि अभी तो आपकी पढ़ाई का समय है. किसी की कोई आदत अच्छी लगना स्वाभाविक है, उसको प्यार मत समझिए. समय बीतने दीजिए. आप एक ही शहर के हैं.
हो सकता है कभी मुलाकात हो तो आपको खुद ही सोचकर हंसी आयेगी कि आप उसकी इस बात पर कैसे उसे चाहने लगीं. आप बच्चों की लापरवाही खुद आपके लिए मुसीबत बन रही है. आप सबको समझना होगा कि प्यार कोई मूंगफली-रेवड़ी नहीं है, जो यहां-वहां बांटते रहो. बात-बात पर ‘लव यू यार’ बोलनेवाले को पता भी नहीं कि कब कोई लड़की उसे चाहने लगी.
इसलिए अपने आचरण और व्यवहार में सतर्क रहिए. ऐसा करके आप अपने दोस्त की ही मदद करेंगे. अगर आपको जरा भी आभास होता है कि आपका दोस्त आपको पसंद करने लगा है तभी उसे स्पष्ट कर दीजिए कि आप केवल अच्छे दोस्त हैं. कभी ऐसा स्टेटमेंट मत दीजिए जिससे आपके दोस्त को कोई गलतफहमी हो कि आप उसे चाहते हैं. इसी तरह बचपन से साथ पढ़ रहे बच्चों में भी अक्सर गलतफहमी हो जाती है. अच्छी दोस्ती को प्यार समझ लेते हैं. आप इस बात को अच्छी तरह समझ लीजिए कि प्यार से भी कहीं ऊंचा है दोस्ती का रिश्ता, लेकिन उस दोस्ती को समझिए. अगर वाकई आप अपने दोस्त से प्यार करते हैं, चाहे वह लड़की हो या लड़का, तो आप कभी उसका अहित नहीं चाहेंगे. आप नहीं चाहेंगे कि कभी कोई उस पर उंगली उठाये. उसका भविष्य खराब हो.
पढ़ाई को लेकर उसे घरवालों के सामने या स्कूल में शर्म से सिर झुकाना पड़े. यही वह रिश्ता है जिसमें कोई स्वार्थ नहीं, बाकी सभी रिश्तों की अपनी सीमाएं हैं. पति-पत्नी भी सीमाओं में बंधे होते हैं. अगर आपको किसी से प्यार भी है तो अपने आप से पूछिए कि क्या उसकी बदनामी, उसकी बेइज्जती, उसका जीवन और भविष्य दांव पर लगते हुए आप देख सकते हैं?
उससे पहले आपको अपने माता-पिता के बारे में सोचना चाहिए. आपने एक कहानी जरूर सुनी होगी. उस बेटे की कहानी, जिसने अपनी प्रेमिका के कहने पर अपनी मां का दिल निकाल लिया था. वह यह सोचकर खुश होते हुए जा रहा था कि वह अपनी प्रेमिका को दिखा देगा कि वह उसे इतना चाहता है कि मां का दिल भी निकालकर ले आया. यह देखकर वह कितना खुश होगी.
इसी सोच में मगन वह आगे बढ़ा तो ठोकर खाकर गिर गया और उसके हाथ से छूटकर दिल भी कुछ दूरी पर जा गिरा. अपने बेटे को गिरा देखकर उस दिल से आवाज आयी? बेटा, तुझे कहीं चोट तो नहीं आयी? उसने इधर-उधर देखा कि आवाज कहां से आयी. तब उसकी मां का दिल फिर बोला- ‘बेटा मैं हूं, तेरी मां.’ उसने कहा- मैंने तो तुझे मारकर तेरा दिल निकाल लिया तो तू बोल कैसे रही है? फिर उस दिल से आवाज आयी, ‘तूने मेरे शरीर को मारा है मगर मैं मां हूं.
मरकर भी मेरा दिल तो तेरे लिए धड़क रहा है. तू अभी-अभी गिरा है न, इसलिए फिक्र हो रही है कि कहीं तुझे चोट तो नहीं लगी!’ उसे थोड़ा दुख हुआ मगर प्रेमिका से मिलने की खुशी में वह अपनी मां को भूल गया. प्रेमिका के पास पहुंचकर दिल उसके कदमों में रखते हुए बोल- ‘तुमने कहा था ना, अगर मुझसे प्यार करते हो मेरे लिए अपनी मां का दिल निकालकर दिखाओ.
देखो, मैं तुम्हारे लिए मां का दिल भी ले आया. अब तो तुम मेरे प्यार पर कभी शक नहीं करोगी?’ जानते हैं आप उसकी प्रेमिका ने क्या कहा? उसने कहा- ‘तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं तुम जैसे गिरे हुए इनसान से प्यार भी कर सकती हूं. जो बेटा जन्म देनेवाली मां का नहीं, वह भला मेरा क्या होगा? जिसने तुम्हें पाल-पोसकर बड़ा किया, पढ़ाया, लिखाया. मेरे एक बार कहने पर तुमने उसी को मार डाला! तो मैं तो चार दिन पहले तुम्हारी जिंदगी में आयी, तो मेरी कीमत तुम्हारे लिए क्या होगी, इसका आभास हो गया मुझे? यह होती है मां.
(क्रमश:)