नेपाल के लिए साल 2015, कभी खुशी कभी गम

काठमांडो : नेपाल के लिए 2015 का साल कई झटकों वाला रहा, दो बडे भीषण भूकंप जहां तबाही का निशान छोड गये, वहीं नए संविधान की घोषणा से आशा की किरण भी चमकी. हालांकि, अधिकतर भारतीय मूल के मधेसियों के विरोध-प्रदर्शन के कारण यह भारत-नेपाल संबंधों में तनाव का कारण भी बना. नेपाल में 25 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 27, 2015 4:24 PM

काठमांडो : नेपाल के लिए 2015 का साल कई झटकों वाला रहा, दो बडे भीषण भूकंप जहां तबाही का निशान छोड गये, वहीं नए संविधान की घोषणा से आशा की किरण भी चमकी. हालांकि, अधिकतर भारतीय मूल के मधेसियों के विरोध-प्रदर्शन के कारण यह भारत-नेपाल संबंधों में तनाव का कारण भी बना. नेपाल में 25 अप्रैल और 12 मई को आए दो शक्तिशाली भूकंप के साथ कई बार भूकंप के बाद के झटके भी महसूस किए गए, जिसमें 9,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई और लाखों घर तबाह हो गए। भूकंप से करीब सात अरब अमेरिकी डॉलर की आर्थिक क्षति का आकलन किया गया है.

इस तरह की आपदा के कुछ ही घंटों में भारत ने काठमांडो सहित नेपाल के भूकंप प्रभावित 14 जिलों में मदद के लिए बचाव दलों को भेजा. काठमांडो में 25 जून को एक अंतरराष्ट्रीय दानदाता सम्मेलन में विभिन्न दानदाता एजेंसियों और विकास सहयोगियों ने नेपाल के पुनर्निर्माण के प्रयासों और भूकंप के कारण हुई क्षति से देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए 4.4 अरब अमेरिकी डॉलर की राशि की वित्तीय मदद का वचन दिया.

नेपाल ने निजी एवं सरकारी इमारतों, स्कूलों, बुनियादी ढांचा के पुनर्निर्माण और आर्थिक सुधार में सहयोग के लिए 6.7 अरब अमेरिकी डॉलर की जरुरत का अनुमान जताया है. बहरहाल, यह साल नेपालियों के लिए केवल उदासी भरा समय ही नहीं रहा. 22 जनवरी की निर्धारित तिथि गुजरने के बाद सितंबर के महीने में नए संविधान की घोषणा उनके लिए थोडी खुशी लेकर आई, जिसका नेपाल के लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. हालांकि काफी पहले इसका मसौदा चार्टर तैयार हो गया था.

मधेसियों के बहिष्कार के बावजूद नेपाल की प्रमुख पार्टियों ने एक समझौता किया और 20 सितंबर को 85 प्रतिशत से अधिक के मत के साथ संविधान की घोषणा कर दी. नये चार्टर के अनुसार, देश कई संघीय प्रांतों में बंट गया जिसे मधेसी समुदाय ने खारिज कर दिया. आठ साल लंबी चली बातचीत के बाद संविधान की घोषणा के 65 साल पुराने उनके सपने के पूरा होने से अधिकतर नेपाली खुश थे.

वहीं संविधान की घोषणा के बाद दक्षिण और पश्चिम नेपाल में मधेसी और थारु समुदाय के लोगों ने व्यापक आंदोलन किया. उनका दावा था कि इस कदम ने उन्हें राजनीतिक रुप से हाशिए पर ला खडा किया है. प्रदर्शन के कारण भारत और नेपाल के बीच महत्वपूर्ण व्यापार बिंदुओं ठप्प पड गए जिसके कारण हिमालयी देश में जरुरी सामान और दवाइयों की कमी हो गई.

नेपाल ने दावा किया कि भारत के अनाधिकारिक नाकाबंदी के कारण भीषण भूकंप के बाद उबर रहे नेपाल में पेेट्रोलियम उत्पाद, रसोई गैस और दवाइयों सहित जरुरी सामान की किल्लत हो गई है. इस मुद्दे पर भारत-नेपाल संबंधों में गिरावट आई. बहरहाल, भारत ने नाकाबंदी के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि भारत से सटे नेपाल के तराई क्षेत्र में मधेसियों के प्रदर्शन करने के कारण यह स्थिति बनी है. अगस्त से चल रहे प्रदर्शन में 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई.

अगस्त में नेपाल की संसद ने सीपीएन-यूएमएल अध्यक्ष के पी शर्मा ओली को नए प्रधानमंत्री के तौर पर चुना. इस साल दूसरे बडे घटनाक्रम में संसद ने नेपाल कम्युनिस्ट नेता विद्या देवी भंडारी को नेपाल की पहली महिला राष्ट्रपति के तौर पर चुना. इस बीच, नेपाल के उप प्रधानमंत्री कमाल थापा ने कथित नाकाबंदी हटाने के लिए दो बार भारत का दौरा किया और मधेसी नेताओं ने भी भारत का दौरा किया.

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