अब के बरस कई पीढ़ियों के संग्रह एक साथ आए. ज़्यादातर मेरी पसंद के कहानीकार हैं. उन्हें पढ़ना, अपने समय से संवाद करने जैसा है.
मैं इसे सुंदर परिघटना के रुप मे देखती हूं कि साल के शुरु से लेकर अंत तक मेरे प्रिय कहानीकारों के संग्रहों के आने का सिलसिला जारी रहा.
आए तो कई संग्रह. जिन्हें मैंने पढ़ा और जो मुझे बेहद पसंद आए, उनकी चर्चा यहां करुंगी.
सबसे पहले वरिष्ठ कहानीकार हृषिकेश सुलभ का बहुचर्चित कहानी संग्रह ‘हलंत’ की बात.
‘हलंत’ इस साल का ‘हलंत’ ही है, जिसके बिना कहानी की दुनिया फीकी और अधूरी लगती. ‘उदासियों का बसंत’, ‘काजर आंजत नयन गए’, ‘अगिन जो लागी नीर में’ जैसी हूक उठाती हुई कुल छह कहानियां हैं, इस छोटे से संग्रह में. हर कहानी पर दम निकले.
अलग अलग कैफियत की कहानियां हैं, जिनमें छिछली भावुकता नहीं, सहज व्यंग्यबोध है, पापबोध से परे. ये कहानियां समकालीन समाज और समय के दस्तावेज की तरह हैं. अनकहे-अनदेखे सत्य को दिखाने वाले कथाकार इस संवेदनहीन समय को खूब पहचानते हैं.
गांव और शहर के बीच बराबर आवाजाही करती ये कहानियां गठन में लंबी हैं, पर गहरे असर करती है. जैसे नसों में सूई से दवा उतरती है, हौले हौले, देर तक, दूर तक.
इसी साल शिवना प्रकाशन से आया पंकज सुबीर का “संग्रह-कसाब.गांधी एट यरवदा.इन” अनेक दृष्टियों से पठनीय और संग्रहणीय संग्रह है.
एक तरफ इसकी शीर्षक कहानी है “लव जिहाद उर्फ उदास आंखों वाला लड़का”,जहां समसामयिक सरोकारों के बीच सामाजिक राजनीतिक अंतर्विरोधो को गूंधती है, वहीं “चिरई चुरमुन और चीनू दीदी” जैसी कहानी नास्टेलजिया रचती है.
सभी कहानियां रोचक अंदाज में वर्तमान के अनेक कोलाहलों को सुनती, सुनाती हैं. कथा तत्व का वैविध्य और कहन का अनूठा अंदाज पाठकों को बांध लेता है.
‘चांद के पार एक चाबी’ साल के आखिरी महीने का सुंदर उपहार है, कथा-संसार को. अवधेश प्रीत उन कहानीकारों में से हैं जिनकी कहानियों पर आलोचक भौंचक्के हो जाते हैं. उनकी कहानियां आज के उस क्रूर यथार्थ को बयान करती हैं जिसे छिपाने के अनेक गूढ़ तर्क प्रभुत्वशाली सत्ता में न सिर्फ प्रचलित हैं बल्कि आतंकित करने वाले हैं.
इस संग्रह में कुल आठ कहानियां हैं. शीर्षक कहानी ‘चांद के पार’, ‘999’, ‘एक मामूली आदमी का इंटरव्यू’ जैसी सशक्त सभी कहानियां लगभग अपने समय की छलनाओं, क्रूरताओं और विडंबनाओं को पहचानती है.
कहानीकार के लिए विडंबना भी उनके लिए भाषा का कौतुक नहीं, यथार्थ का हिस्सा है.
पत्रकार-कथाकार प्रियदर्शन का दूसरा कहानी संग्रह ‘बारिश, धुंआ और दोस्त ‘ की कहानियों में एक धड़कता हुआ समाज दिखता है, वह समाज, जो हमारी तेज दिनचर्या में अनदेखा-सा, पीछे छूटता हुआ-सा रह जाता है.
ज़िंदगी से रोज़ दो दो हाथ करते और अपने हिस्से के सुखदुख बांटते-छांटते इन चरित्रों की कहानियां एक विरल पठनीयता के साथ लिखी गईं हैं.
किस्सागोई ऐसी कि जिनमें नाटकीयता नहीं, गहरी संलग्नता है, पाठक का हाथ थाम कर साथ चलने को मजबूर करती है.
संग्रह की शीर्षक कहानी ‘बारिश…, ‘ ‘शेफाली चली गई’, ‘एक सरल रेखा की यात्रा’ सरीखी सभी कहानियां अपने समय को पूरी संवेदनशीलता के साथ समझती और पकड़ने की कोशिश करती हुई विशिष्ट बन जाती हैं.
इन दिनों सबसे ज़्यादा चर्चा में विवेक मिश्र की कहानियां हैं. इसी साल उनका तीसरा कहानी संग्रह ‘ऐ गंगा, तुम बहती हो क्यूं’ आया है.
विवेक सामाजिक सरोकारों के कथाकार हैं. वह कई बार समाजशास्त्री की तरह कथा का ट्रीटमेंट करते चलते हैं. सामाजिक यथार्थ को भीतर तक घुस कर निर्मम चीरफाड़ करने वाले विवेक के इस संग्रह में भी सारी कहानियां मेरे इस दावे को पुख्ता करती हैं.
संग्रह में शामिल कहानियां-‘घड़ा’, ‘चोरजेब’, ‘निर्भया नहीं मरी’, ‘और गिलहरियां बैठ गईं’, अपने समय के क्रूर यथार्थ का कारुणिक पाठ हैं.
कहानीकार मन के अतल में धंसी ध्वनियों को सुनते हैं, उसे अर्थ देते चलते हैं और बड़ी सादगी से तिलमिला देने वाले सत्य को उदघाटित कर देते हैं.
महिला कहानीकारों की भी धमक कम नहीं रही इस साल. वंदना राग, जयश्री राय के कथा संग्रहों की चर्चा के बिना कथा संसार सूना ही रहेगा.
वंदना राग के दो कथा-संग्रह इस साल आए, अलग अलग प्रकाशनों से. ‘हिजरत से पहले’ और ‘खयालनामा’. दोनों संग्रहों की कहानियां अलग अलग मूड की हैं.
सूक्ष्म अंतर्दृष्टि और गहरे भावनात्मक प्रवाह और परिपक्व भाषा वाली वंदना जिस तरह जीवन की विंडंबनाओं और छवियों को रचती है, वह अनूठा है.
‘हिजरत से पहले’ कथा संग्रह की सारी कहानियों में वे जहां अपने वक्त को गंभीरता से पकड़ती दिखाई देती हैं वहीं ‘खयालनामा’ में खयालों, चुप्पियों, शोर, शरारतों और जीवन के व्यापक यथार्थ को समेटती हुई कहानियां हैं.
कहानी लेखन के लिए जिस निरपेक्ष दृष्टि-भाव की जरुरत होती है, वह वंदना में भरपूर है और यही बात उसे अपने समकालीनों से अलग करती है.
जयश्री राय की चर्चित कहानी ‘कायांतर’ के नाम से ही दूसरा संग्रह आया है. जो जयश्री के कथा-मिजाज़ को जानते हैं, वे कायांतर कहानी को पढ़ कर चौंक जाएंगे.
इसके अलावा इस संग्रह की अन्य कहानियां नितांत अलग परिवेश और पयार्वरण की कहानियां हैं जिनका दायरा बहुत बड़ा है.
मानवीय संवेदना की सघन बुनावट लिए संग्रह की कहानियां चालू मुहावरे का अतिक्रमण कर अपना मुहावरा खुद गढ़ती चलती हैं.
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