जेल में भी नहीं घटा है लालू का रुतबा, रोज मिलने आते हैं समर्थक

।। निराला ।। जेल में एक जननेता से चंद मिनटों की मुलाकात लालू प्रसाद जेल में हैं. उम्मीद है कि 13 दिसंबर को बाहर निकल सकते हैं. यह तय नहीं, अनुमान है. लालू का जेल में रहना उनके विरोधियों को धीरे–धीरे उनकी राजनीतिक मौत की तरह लगता होगा, लेकिन उनसे जेल में रोजाना मिलने आनेवाले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 6, 2013 5:33 AM

।। निराला ।।

जेल में एक जननेता से चंद मिनटों की मुलाकात

लालू प्रसाद जेल में हैं. उम्मीद है कि 13 दिसंबर को बाहर निकल सकते हैं. यह तय नहीं, अनुमान है. लालू का जेल में रहना उनके विरोधियों को धीरेधीरे उनकी राजनीतिक मौत की तरह लगता होगा, लेकिन उनसे जेल में रोजाना मिलने आनेवाले दूरदूर के समर्थक लालू के और मजबूत होने का संकेत दे रहे हैं.

चार दिसंबर को इस संवाददाता की मुलाकात लालू प्रसाद से जेल में हुई़ प्रस्तुत है, इस मुलाकात में लंबी बातचीत का संक्षिप्त अनुभव..

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से कई मुलाकातें हुई हैं. ज्यादातर पटना स्थित राबड़ी देवी वाले सरकारी आवास में. कुछेक बार राजनीतिक आयोजनों में, रैलियों में भी. हर बार की मुलाकात के खास अनुभव रहे हैं. वे खुद से बातमुलाकात में लड़ लेने का, शिकायत करने का, बहस करने का भरपूर स्पेस देते हैं.

बिना वजह तेज आवाज में बोल कर सामनेवाले को चुप करा देनेवाली उनकी अदा से हर बार दोचार हुआ़ गंभीर से गंभीर बातों को भी हंसी के साथ हवा में उड़ा देने की कला में भी पारंगत हैं व़े सब उनकी पहचान की रेखाएं भी हैं. लेकिन, चार दिसंबर को उनसे हुई बातमुलाकात अब तक की तमाम मुलाकातों से अलग रही.

लंबी मुलाकात, बहुत कम बात़ सुबहसुबह ही ललाट पर बड़े लाल तिलक के साथ सामने कुर्सी पर बैठे थे लालू प्रसाद़ एकदम से शांत़ एक राजनेता के बजाय अभिभावक की भूमिका में. जब से लालू प्रसाद जेल में आये हैं, मुलाकातियों का तांता अहले सुबह से ही लगता है. बिहार के कोनेकोने से लोग अब भी रहे हैं.

जेल के अधिकारियों कर्मियों ने बताया कि करीब एक हजार लोग तो रोजाना ही रहे हैं. लालू प्रसाद से मिलने हर दिन कोई कोई बड़ा नेता भी पहुंच रहा है, लेकिन लालू प्रसाद जेल में बड़े लोगों की दुनिया से अलग हैं. एक दूसरी दुनिया में रह रहे हैं. बड़े लोगों से मिले, मिले, कोई दूर से आया हुआ बिना मिले लौट जाये, इसी पर ध्यान रखते हैं.

जो मिलने रहे हैं, सत्तू, गुड़ और भी जाने क्याक्या लेकर रहे हैं. लालू कहते हैं : यह सामान नहीं है, स्नेह है, इसे लौटा नहीं सकता. खुद भी जानता हूं और लानेवाले भी जानते हैं कि इतनी चीजों का इस्तेमाल नहीं है यहां मेरे पास. लेकिन, वे लाये हैं, तो मैं रख लेता हूं. सत्तू, गुड़ खुद तो खाता ही हूं, जेल की गोशाला में गायों को रोजाना खिलाता हूं.

और जो दूसरे जरूरतमंद होते हैं, उन्हें दे देता हूं. लालू प्रसाद शांत रहते हैं, हम उन्हें बारबार राजनीति की दुनिया में लाने की कोशिश करते हैं, वे बचते हैं. बहुत जिद करने पर कहते हैं : जेल में बानी. अब्बे कुछो ना बोलब़ फिर सब लोग कही कि लालू यादव तो जेलो में कैदी लेखा ना रहलन, राजनीते करत रहलऩ हम कुल नइखी करल चाहत़ अब ऐहिजा से निकलब, तब राजनीति के बात बतियाईब. आउर ईहो बताइब कि लालू यादव के राजनीति का होला. यह कहते हुए लालू प्रसाद थोड़ा मुस्कुराते हैं.

हम उनकी मुस्कुराहट को बातचीत की सहमति जैसा समझ लेते हैं. तुरंत अगला सवाल कर देते हैं : आपके बिन राबड़ी देवी सभा कर रही हैं, सभा में जनसैलाब उमड़ रहा है, इससे तो ऊर्जा मिल रही है ! फिर काहे उदासउदास हैं. लालू प्रसाद कहते हैं : कहनी , कि अब्बे कुल बात नईखे बतियावे के, जेल में बानी, हम कुछो नइखी जानत़ थोड़ी देर बाद धीरे से कहते हैं : केतना भीड़ लागत बा, का होखत बा कुछ नइखी जानत, हम जेल में बानीं. बाकिर जेतना अखबार में देखावत बा, ओतने भीड़ नइखे लागत़ अखबार ओला लोग पूरा ना दिखाई़ फिर गहरी सांस लेते हुए कहते हैं : जाये , कवनो बात ना. कुल पर जेल से निकलला पर बात होखी.

हम लालू प्रसाद से राजनीति पर बात करने का बहुत आग्रह नहीं करत़े वे जेल के नियमों के साथ रहना चाहते हैं, हम उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए लौटने लगते हैं. उनके एक साथी बताते हैं : साहेब जरा भी परेशान नहीं हैं. बस, घर में अपनी बेटियों से, नाती से बात करने का उनका मन करता है. वे जितने बड़े नेता हैं, घर के प्रति उतने ही जवाबदेह अभिभावक भी.

बाहर निकल कर फिर से जेल अधिकारियों कर्मियों से बात होती है. सबके पास लालू से जुड़े एक से एक किस्से होते हैं. जेल के कुछ अधिकारी बताते हैं : जब लालू प्रसाद इस बार जेल में आये, तो कुछ दिनों तक बेहद भावुक रहे, लेकिन उनसे मिलने आनेवाले लोगों ने उनका मनोबल बढ़ाया. अब उबर गये हैं. बदलाव के साथ रह रहे हैं. छोटे नेताओं को ज्यादा भाव देते हैं.

जेल अधिकारियों से ज्यादा सिपाहियों को भाव देते हैं. बड़ी गाड़ियों से पहुंचनेवालों से ज्यादा जैसेतैसे सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर आये अपने समर्थकोंकार्यकर्ताओं को भाव देते हैं. जेल कर्मी कहते हैं : बिरसा मुंडा जेल में बहुत नेता आये, किसी को इतना प्यार नहीं मिला, जितना लालू को मिल रहा है. लालू के समर्थक कहते हैं : साहेब ऊर्जा बटोर रहे हैं, जेल से निकलेंगे, तो उनकी ताकत दिखेगी.

लालू प्रसाद कब जेल से निकलेंगे, यह अभी तय नहीं है, लेकिन जिस दिन निकलेंगे, उनके समर्थकोंकार्यकर्ताओं ने उनसे आग्रह किया है कि वे सड़क मार्ग से रांची से पटना ले जायेंगे, अपने नेता को. रास्ते में यह दिखाते हुए कि आप कमजोर नहीं हुए हैं. आप एक अहम फैक्टर हैं, अगले लोकसभा चुनाव में.

(निराला जी के ब्लॉगwww.bidesia.co.inसे साभार)

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