बदनामी व जुर्माने के डर से लोग छोड़ रहे शराब

रजनीश आनंद, प्रभात खबर डॉट कॉमरांची जिले के बुड़मू प्रखंड का लोदनबेड़ा गांव. दोपहर का समय. गांव की महिलाएं खेतों और जंगलों में काम कर रही हैं, लेकिन उनके पुरुष साथी नजर नहीं आ रहे हैं. पूछने पर एक महिला ने बताया कि हमर गोमके कोनो लाइल पीके सुतल होई. जी हां. कुछ समय पूर्व […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 7, 2013 11:06 AM

रजनीश आनंद, प्रभात खबर डॉट कॉम
रांची जिले के बुड़मू प्रखंड का लोदनबेड़ा गांव. दोपहर का समय. गांव की महिलाएं खेतों और जंगलों में काम कर रही हैं, लेकिन उनके पुरुष साथी नजर नहीं आ रहे हैं. पूछने पर एक महिला ने बताया कि हमर गोमके कोनो लाइल पीके सुतल होई. जी हां. कुछ समय पूर्व तक इस गांव की यही स्थिति थी, लेकिन महिला समूह की महिलाओं के प्रयासों के बाद स्थिति काफी बदल गयी है. आज इस गांव के पुरुष कामकाज में न सिर्फ महिलाओं का हाथ बंटा रहे हैं, बल्कि वे दारू-हंडिया से भी काफी दूर हैं. लोदनबेड़ा गांव की सौ फीसदी आबादी आदिवासियों की है. कुल आबादी पांच-छह सौ के आसपास है. यहां के लोगों का जीवन खेती पर आधारित है.

कुछ लोग जंगल आधारित पेशा भी अपनाते हैं. इसके साथ ही वे मजदूरी करने के लिए बाहर भी जाते हैं. लेकिन नशे की लत के कारण पुरुष कामकाज छोड़ कर दारू के आदी हो गये थे. उनकी इस आदत के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी थी. बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित हो रही थी और आलम यह था कि नशे में चूर व्यक्ति घर की जिम्मेदारी उठाने वाली महिला के साथ ही मारपीट कर रहा था. इस स्थिति को बदलने के लिए गांव का महिला समूह आगे आया.

समूह की सचिव शांति देवी ने बताया कि हमने गांव में बैठक आयोजित की, जिसमें महिलाओं और पुरुषों ने शिरकत की. बैठक में हमने उन्हें समझाया कि किस तरह नशे की लत उनके परिवार को बरबाद कर रही है. हमने पुरुषों को समझाया कि अगर आपको पीना ही है, तो शाम को पियें या फिर शादी-विवाह या त्योहार के अवसर पर. ऐसा न हो कि इस लत के कारण आपका परिवार और जीवन प्रभावित हो जाये. हमने उन्हें चेतावनी भी दी कि अगर वे ऐसा नहीं करेंगे, तो उन्हें दंडित किया जा सकता है. समझाने का प्रभाव यह हुआ कि अब पुरुष कामकाज छोड़ कर दारू नहीं पीते हैं और अपनी जिम्मेदारियों को समझ रहे हैं. यह कहना गलत होगा कि शराबबंदी हो गयी है, लेकिन स्थितियां बदल रही हैं और हमें उम्मीद है कि जल्द ही हमारा गांव इस दलदल से बाहर निकल आयेगा. शांति ने बताया कि साप्ताहिक बाजार में भी हम दारू की बिक्री नहीं होने देते हैं. दारू-हंडिया बनाने वालों को भी हमने चेतावनी दे दी है. शराबबंदी के लिए हम रैली निकालते हैं और जनसंपर्क के द्वारा लोगों को समझाते भी हैं.

वहीं चान्हो प्रखंड के पतरातू गांव की महिलाओं ने भी शराबबंदी के लिए सराहनीय प्रयास किये हैं. महिला समूह की कोषाध्यक्ष कलावंती ने बताया कि गांव की महिला समूह की बैठकों के दौरान जब यह महसूस किया गया कि शराब महिलाओं की परेशानी का सबसे बड़ा कारण है, तो समूह की महिलाओं ने गांव के लोगों के साथ बैठक की. बैठक में दारू के कारण हो रही परेशानियों के बारे में बताया गया और उन्हें यह समझाया गया कि वे शराब छोड़ दें, अन्यथा उन पर जुर्माना लगाया जायेगा. घर-घर शराब बनाने पर रोक लगाने की बात कही गयी. समूह की महिलाओं ने यह चेतावनी भी दी कि अगर वे शराबबंदी नहीं करेंगे, तो पंचायत तक बात जायेगी और उनपर जुर्माना भी लगाया जायेगा. बदनामी और जुर्माने के भय से लोगों में काफी सुधार आया है. लोग कामकाज छोड़ कर नशा करने की आदत को छोड़ रहे हैं. नशा विरोधी जागरूकता अभियान का भी काफी प्रभाव पड़ा है.

नशाखोरी झारखंड में सिर्फगांवों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शहरी क्षेत्र भी इसकी गिरफ्त में हैं. यही कारण है कि रांची शहर के चुटिया इलाके में भी शराबबंदी के लिए महिलाओं ने अभियान चलाया और सफलता हासिल की.

चुटिया संकुल की सहयोगिनी कांति देवी ने बताया कि हटिया बस्ती में नशे की लत के कारण परिवार बरबाद हो रहे थे. बच्चों की शिक्षा पर भी असर पड़ रहा था. कई ऐसे परिवार बस्ती में हैं, जिसके जवान लड़के शराब के कारण असमय मर गये और परिवार मुसीबतों का सामना कर रहा है. इसलिए हमने शराब को एक समस्या के रूप में चिह्न्ति करके इसके खिलाफ अभियान चलाया. हमने पहले रणनीति बनायी और जागरूकता अभियान, रैली और जनसंपर्क के द्वारा शराबबंदी के लिए लोगों को प्रेरित किया. दारू-हंडिया बनाने वालों को चेतावनी दी कि वे अपना कारोबार बंद करें. जब चेतावनी के बाद भी वे नहीं माने, तो उनकी दुकान और सामान को हमने उजाड़ दिया. इस काम के लिए हमने पुलिस से भी सहयोग लिया. हमने चुटिया थाने के सहयोग से शराबबंदी के लिए कई अभियान चलाये, जिसका परिणाम यह हुआ है कि हमें नशे की खिलाफ जंग में कुछ सफलता मिली है.

Next Article

Exit mobile version