भारत में बड़ी खोज क्यों नहीं होती?

टीम इंडियास्पेंड बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए बीते 10 साल में भारत में दिए गए हर छह पेटेंट में से सिर्फ़ एक की खोज भारतीयों ने की थी. इंडियास्पेंड ने अपने विश्लेषण में ये पाया कि बाकी के पांच पेटेंट देश में काम कर रही विदेशी कंपनियों को मिले, जो अपनी बौद्धिक संपदा की रक्षा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 12, 2016 12:53 PM
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बीते 10 साल में भारत में दिए गए हर छह पेटेंट में से सिर्फ़ एक की खोज भारतीयों ने की थी.

इंडियास्पेंड ने अपने विश्लेषण में ये पाया कि बाकी के पांच पेटेंट देश में काम कर रही विदेशी कंपनियों को मिले, जो अपनी बौद्धिक संपदा की रक्षा करना चाहती थीं.

दूसरे अध्ययनों से भी पता चला है कि नई चीजों को खोजने या नई तकनीक विकसित करने मे भारत निहायत ही कमज़ोर है.

चार नोबेल पुरस्कार विजेताओं का कहना है कि ये भारत की पारंपरिक कमज़ोरी है और इसे ठीक करना बेहद ज़रूरी है.

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इन नोबेल विजेताओं का कहना है कि भारत को मैनुफ़ैक्चरिंग का केंद्र बनाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना ‘मेक इन इंडिया’ से पहले यह ज़रूरी है कि कंपनियां भारत में नई चीज़ें खोजें.

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) ने साल 2015 में जो ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स जारी किया उसमें भारत 81वें स्थान पर है.

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भारत में बहुत ज़्यादा खोज नहीं हो रही, जो थोड़ा बहुत खोज हो रही है, उसमें सबसे आगे केंद्र सरकार की संस्था काउंसिल फ़ॉर साइंटिफ़िक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) है. इसने 10 साल में कुल 10,564 में से 2,060 पेटेंट हासिल किए हैं. इसके बाद सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कुछ बड़ी कंपनियां हैं.

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भारत में बीते दस साल में सबसे ज़्यादा पेटेंट रसायन के क्षेत्र में शोध के लिए मिले हैं.

लेकिन आगे की खोजों के लिए सरकार क्या कर रही है?

सरकार का इरादा जल्द ही राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति की घोषणा करने का है.

इसके मसौदे से लगता है कि यह नीति नई खोजों और उनके व्यावसायिक इस्तेमाल को काफ़ी हद तक बढ़ाएगी.

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औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) के सचिव अमिताभ कांत ने बीते महीने कहा था, "हमें उम्मीद है कि नई नीति दूरदर्शिता वाली होगी. इससे अगले 10 साल में भारत को नई खोज वाली अर्थव्यवस्था बनने में मदद मिलेगी."

मसौदे के मुताबिक़, सरकारी ख़र्चे पर चलने वाली शोध संस्थाओं को और खोज करने के लिए कहा जाएगा. इसके लिए यह देखा जाएगा कि संस्थान का कामकाज कैसा है. इसके अलावा उद्योग और अकादमिक क्षेत्र के बीच बेहतर तालमेल पर भी ज़ोर दिया जाएगा.

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हालांकि साल 2009 के यूटिलाइज़ेशन ऑफ़ पब्लिक फ़ंडेड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी बिल का भी यही मक़सद था.

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इस पर विरोध हुआ था कि किस तरह इन संस्थानों को पेटेंट लेने को मजबूर किया जा सकता है और कैसे इन पेटेंट पर किसी ख़ास कंपनी को ही लाइसेंस दिया जाएगा.

एक बड़ा मसला ये भी था कि इन संस्थाओं को सरकारी पैसा मिलता है तो कोई निजी कंपनी कैसे इस शोध से फ़ायदा उठा सकती है.

क़ानूनी जानकार शालिनी बुटानी ने हिंदू बिज़नेस लाइन में लिखा था, "इस विधेयक से इस धारणा को बल मिलेगा कि नई खोजों की उचित भरपाई सिर्फ़ बौद्धिक संपदा अधिकार और पैसे से होती है….सरकारी शोध संस्थाओं के कामकाज के व्यवसायीकरण को उनकी सामाजिक ज़िम्मेदारी बताना भी छल से भरा लगता है."

यह विधेयक 2014 में वापस ले लिया गया था.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते साल अप्रैल में कहा था, "अगर हम बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में दुनिया को भरोसा दिला सकें तो उनके रचनात्मक कामकाज का केंद्र बन सकते हैं."

लेकिन पेटेंट के व्यवसायीकरण का मामला इससे बिल्कुल अलग है.

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पांच फ़ीसदी से ज़्यादा पेटेंट व्यावसायिक रूप से कामयाब नहीं होते.

मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, इसकी एक वजह यह है कि इन संस्थानों के अधिकतर शोध उद्योगों के काम के नहीं हैं, उनका ध्यान अकादमिक जर्नल में छपने की ओर होता है.

आम समझ के उलट कुछ लोगों का मानना है कि पेटेंट प्रणाली नई खोजों को नुक्सान ही पहुंचाती है, ख़ास कर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में.

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इन्फ़ोसिस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल सिक्का का कहना है कि पेटेंट "सॉफ़्टवेयर उद्योग के लिए झमेला है."

पेटेंट को लोग किस तरह बेकार की बात समझते हैं इसे साल 2015 के अगस्त में भारतीय पेटेंट कार्यालय के दिशा निर्देशों के विरोध से समझा जा सकता है.

इन निर्देशों में सॉफ़्टवेयर के पेटेंट की भी इजाज़त दी गई थी. इन पेटेंट से दूसरी कंपनियों को रॉयल्टी या लाइसेंस फ़ीस चुकानी पड़ती.

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सॉफ्टवेयर उत्पादों के थिंक टैंक ‘आईस्पिरिट’ के वेंकेटेश हरिहरन ने इकोनॉमिक टाइम्स से कहा, "हम चाहते हैं कि भारतीय उद्यमी अपना ध्यान नई खोजों पर लगाएं न कि क़ानूनी मुक़दमों पर."

एक दूसरी बात भी है, सॉफ़्टवेयर क्षेत्र इतनी तेज़ी से बदलता है कि 20 साल के पेटेंट का कोई मतलब नहीं है. भारतीय पेटेंट कार्यालय ने इन गाइडलाइंस को फ़िलहाल हटा दिया है.

सिर्फ सॉफ़्टवेयर ही नहीं, दूसरे उद्योगों में भी लोग पेटेंट की भूमिका पर एक बार फिर से सोच रहे हैं.

अमरीकी कार कंपनी टेस्ला ने तो दूसरी कंपनियों को अपने पेटेंट का इस्तेमाल करने की छूट दे दी. उसने ऐसा इसलिए किया है ताकि बिजली से चलने वाली कार के क्षेत्र में नए शोध किए जा सकें.

यह कहना मुश्किल है कि अभी ओपन पेटेंट का समय आया है या नहीं.

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