पाक सेना नहीं चाहती कि शरीफ भारत नीति पर फैसले लें : पूर्व पाक राजनयिक
लाहौर : पठानकोट आतंकवादी हमले में पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना की भूमिका को लेकर सवाल उठाते हुए भारत में सेवारत रहे एक पूर्व राजनयिक ने कहा कि सेना भारत के प्रति पाकिस्तान की नीति पर फैसला करने के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के प्रयासों की सराहना नहीं करती. राजदूत अशरफ जहांगीर काजी की टिप्पणी पठानकोट हमले […]
लाहौर : पठानकोट आतंकवादी हमले में पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना की भूमिका को लेकर सवाल उठाते हुए भारत में सेवारत रहे एक पूर्व राजनयिक ने कहा कि सेना भारत के प्रति पाकिस्तान की नीति पर फैसला करने के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के प्रयासों की सराहना नहीं करती.
राजदूत अशरफ जहांगीर काजी की टिप्पणी पठानकोट हमले और उसके बाद उत्तरी अफगानिस्तान के मजारे शरीफ में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले के मद्देनजर आई हैं. ये हमले 15 जनवरी को भारत और पाकिस्तान के बीच प्रस्तावित विदेश सचिव स्तर की वार्ता से पहले हुए.
हमलों में पाकिस्तान की सेना की भूमिका को लेकर सवाल खड़ा करते हुए काजी ने कहा कि यह सेना का प्रधानमंत्री को यह बताने का तरीका हो सकता है कि यहां कौन बॉस है. काजी ने डॉन अखबार में ‘पठानकोट एंड पॉवर प्लेज’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में कहा, ‘‘यह अभी स्पष्ट नहीं है कि लाहौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ठहरने पर हमारी सेना का क्या रख था. हम जानते हैं कि 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा के बाद करगिल हुआ था.
2001 के बाद पिछले दरवाजे से वार्ता के दौरान मुंबई विस्फोट हुए थे और अब एक और लाहौर यात्रा के बाद पठानकोट हमला हुआ.” उन्होंने लिखा, ‘‘क्या हमारे प्रधानमंत्री की लगाम एक बार फिर ‘लड़कों’ :पाकिस्तान में सैन्य व्यवस्था के लिए इस्तेमाल शब्द: ने खींच रखी है ताकि उन्हें पता चल जाए कि कौन बॉस है?” काजी के अनुसार, ‘‘भारत द्वारा दी गयी जानकारी पर विचार करने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में सेना प्रमुख राहील शरीफ की भागीदारी स्वागत योग्य है. हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि सेना भारत को लेकर पाकिस्तान की नीति पर पूरी तरह नियंत्रण के प्रधानमंत्री के प्रयासों को स्वीकार करती है.”
हमले पर भारत के दावों का समर्थन करते हुए काजी ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान को पठानकोट वायुसेना बेस पर हमले के संबंध में पाकिस्तान को ‘कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी’ दी है और मांग की है कि तीन दिन के भीतर विदेश सचिव स्तर की वार्ता शुरू करनी है तो संतोषजनक कार्रवाई की जाए.
पूर्व राजनयिक ने कहा, ‘‘हमारे प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री को आश्वस्त किया है कि वह जरुरी कार्रवाई करेंगे. अमेरिका भारत से अनुरोध कर रहा है कि बातचीत स्थगित नहीं करे. रिपोर्ट बताती हैं कि कई नाटो देश दी गयी जानकारी (हमलावरों और पाकिस्तान में उनके संदिग्ध आकाओं के बीच मोबाइल फोन बातचीत, जैश-ए-मोहम्मद का एक खत, हमलावरों के डीएनए नमूने, उनकी आवाज के नमूने आदि) को अगर पुख्ता सबूत नही मानते तो विश्वसनीय सुराग तो मानते हैं.” पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय कानूनी वचनबद्धताएं इन सुरागों पर कार्रवाई की जरुरत बताती हैं.
काजी ने कहा कि मुंबई हमलों के बाद जैसा गतिरोध रहा है, उसके दोहराव से पाकिस्तान का मजाक उड़ेगा और बदनामी होगी. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अगर भारत के साथ सहयोग नहीं करता तो अंतरराष्ट्रीय दबाव बन सकता है जिसमें प्रतिबंधों का खतरा शामिल है. काजी ने पाकिस्तान में असैन्य-सैन्य संबंधों की अवधारणा की भी आलोचना की. काजी 1997 से 2002 तक भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे. वह 1994 से 1997 तक चीन में राजदूत और 1991 से 1994 तक रुस में राजदूत रहे.