मुसलिम मतदाताओं का बदलता मिजाज

विधानसभा चुनावों में दिखी तसवीर आम तौर पर मुसलमानों को वोट बैंक की तरह देखा जाता रहा है. मगर यह धारणा अब टूटती दिख रही है. हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव से यह बात साफ तौर पर उभरी है कि अब वह वोट बैंक की तरह नहीं बल्कि एक सजग मतदाता की तरह वोट […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 12, 2013 5:28 AM

विधानसभा चुनावों में दिखी तसवीर

आम तौर पर मुसलमानों को वोट बैंक की तरह देखा जाता रहा है. मगर यह धारणा अब टूटती दिख रही है. हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव से यह बात साफ तौर पर उभरी है कि अब वह वोट बैंक की तरह नहीं बल्कि एक सजग मतदाता की तरह वोट कर रहे हैं. वह भयादोहन की राजनीति का शिकार नहीं हो रहे हैं.

मुसलिम युवाओं के लिए भी रोजगार और गवर्नेस महत्वपूर्ण मुद्दा है. भाजपा उनके लिए अछूत नहीं रह गयी है.

कांग्रेस नेतृत्व अब इस बात को स्वीकार कर रहा है कि मुसलिम मतदाताओं का रुझान दूसरी पार्टियों की ओर हो रहा है. इसका पुख्ता प्रमाण हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में देखने को मिला. ऐसा माना जाता है कि कांग्रेस के खिलाफ बड़े मुसलिम नेताओं के कैंपेन के कारण यह रिजल्ट देखने को मिल रहा है.

मुसलिम मतदाताओं का अब कांग्रेस से मोहभंग हो गया है, यह कैलकुलेशन कांग्रेस पार्टी का ही है, जिसने हार के बाद यह बात स्वीकार की है 2008 चुनावों के मुकाबले कांग्रेस ने दिल्ली में 70 प्रतिशत से अधिक मुसलिम मतदाताओं का समर्थन खो दिया है.

हालांकि दिल्ली में कांग्रेस के चुनाव जीते हुए आठ विधायकों में से पांच मुसलिम हैं, पर मुसलिम वोटों का खिसकाव भाजपा के पाले में चला गया है. केवल दिल्ली ही नहीं, राजस्थान का उदाहरण लिया जा सकता है, जहां कुल वोटरों में 9-11 प्रतिशत मुसलिम मतदाता हैं. राजस्थान में मुसलिम वोटों का संकेंद्रण कहे जाने वाले अजमेर के चार विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों को जीत मिली है.

भाजपा ने तीन मुसलिम उम्मीदवारों को मौका दिया और उनमें से दो को नागौर और डिडवाना में जीत मिली. मध्यप्रदेश में मुसलिम मतदाताओं की संख्या 7-8 प्रतिशत है. भाजपा ने उन क्षेत्रों में जीत दर्ज की है, जहां मुसलिम मतदाताओं की बड़ी संख्या है.

हालांकि भोपाल उत्तर में भाजपा उम्मीदवार आरिफ बेग की हार हुई, पर मुसलिम प्रभाव वाले मुदवारा, भोजपुर और जाओरा सीट भाजपा के खाते में गयी. सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) के सेफोलॉजिस्ट (चुनाव विेषक) संजय कुमार के अनुसार, जब अल्पसंख्यक समुदाय को विकल्प मिले, तो उन्होंने इसका इस्तेमाल किया. अब केवल दो पार्टी में ही चुनने का विकल्प नहीं है.

भाजपा अछूत नहीं रही

राजस्थान में भाजपा के अल्पसंख्यक कोष्ठ के अध्यक्ष अमीन पठान के अनुसार, भाजपा मुसलमानों के लिए अछूत नहीं रही. जहां पिछली बार पार्टी को मुसलिम मतदाताओं का 7-8 प्रतिशत मत मिला था, वहीं इस बार 25 प्रतिशत मत मिला है. जानकारों के अनुसार, हालांकि यह आंकड़ा कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण हो सकता है, पर इसमें कोई दो मत नहीं कि मुसलिम युवा मतदाता भाजपा की ओर आकृष्ट हुए हैं.

इंडियन पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन की उपाध्यक्ष डॉ इनाक्षी चतुर्वेदी के अनुसार, इन चुनावों में विचारधारा प्राथमिकता में नहीं थी, बल्कि महंगाई जैसे मुद्दे ज्यादा हावी थे और इसने सभी को जोड़ा. मुसलिम युवा मतदाता जिसमें अधिकांश छात्र हैं, वे मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.

मोदी से एतराज नहीं

कांग्रेस के खिलाफ अभियान चलाने वाले मुसलिम विद्वान मुफ्ती एजाज अरशद काजमी के अनुसार, कांग्रेस मोदी का डर दिखा कर मुसलमानों का वोट नहीं ले सकती. तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टी यह सोचती है कि मुसलमान कहां जायेंगे! दिल्ली में जो कुछ दिखा, वह तो महज ट्रेलर है. कांग्रेस के खिलाफ अभियान लोकसभा चुनावों तक जारी रहेगी.

अयोध्या मामले में सबसे पुराने वादी मोहम्मद हाशिम अंसारी खुले तौर पर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की वकालत करते हैं. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि कांग्रेस मोदी के बारे में भय फैला रही है कि यदि वह प्रधानमंत्री बनते हैं, तो समुदाय के लिए ठीक नहीं होगा. जबकि सच्चई यह है कि मुसलमानों ने पिछले 50 वर्षो से कांग्रेस का समर्थन किया, पर बदले में मुसलमानों को सांप्रदायिक दंगे ही देखने को मिले.

आगे की राह

राजनीतिक पंडितों के अनुसार, उत्तर प्रदेश और बिहार जहां मुसलिम मतदाताओं की संख्या क्रमश: 19 प्रतिशत और 17 प्रतिशत है, 2014 के लोकसभा चुनाव में 545 संसदीय सीटों में से 150 सीटों पर मुसलिम वोटों का खिसकाव असरदार होगा. कांग्रेसी नेता निजी तौर पर यह बात स्वीकार कर रहे हैं मुसलिम वोट बैंक को सहेजना बहुत मुश्किल होगा और मुसलिम मतदाता कांग्रेस से नाराज है.

मोदी की लोकप्रियता बढ़ी

कुछ महीने पहले दिल्ली के इंडिया इसलामिक सेंटर में मशहूर मुसलिम मौलवियों और बुद्धिजीवियों का सम्मेलन हुआ था, जिसका विषय था राजनीतिक गुलामा कब तक . इसका संदेश साफ था कि कांग्रेस 2014 के चुनावों में मुसलमानों को हल्के में नहीं ले सकती और ही पूरी तरह से अपने साथ मानकर चल सकती है.

साथ ही अब स्थिति वैसी नहीं रही कि मोदी को इस समुदाय के लिए अछूत माना जाये. केवल गुजरात ही नहीं, दूसरे राज्यों में भी मोदी की मुसलिम विरोधी छवि को दुरुस्त किया जा रहा है. गुजरात बीजेपी अल्पसंख्यक मोरचे के अध्यक्ष 38 वर्षीय महबूब अली बावासाहेब सूफी बरेलवी मुसलमानों में मोदी का प्रचार करते हैं.

उनके अनुसार, मोदी जब यह कहते हैं कि विकास में मुसलमानों को बराबर का भागीदार बनाया जायेगा, उनका तुष्टिकरण नहीं किया जायेगा, तो बड़ी संख्या में मुसलमान उन्हें सुनना चाहते हैं. हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों से पता चलता है कि मोदी मुसलमान मतदाताओं की पसंद बन कर उभरे हैं.

‘‘ कांग्रेस मुसलिम मतदाताओं को मोदी का भय दिखा रही है. मुसलमानों ने पिछले 50 सालों तक कांग्रेस का समर्थन किया, पर बदले में उन्हें सांप्रदायिक दंगे ही मिले. इसलिए कांग्रेस मोदी का डर दिखाना छोड़े. मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए मुसलमानों का अपना खुल कर समर्थन देना होगा.

मोहम्मद हाशिम अंसारी

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