।। अरुण कुमार अर्थशास्त्री।।
वाशिंगटन स्थित वित्तीय अनुसंधान संगठन की हालिया रिपोर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि काले धन की अर्थव्यवस्था न सिर्फ पनप रही है, बल्कि इसका विस्तार भी हो रहा है. देश में सभी आर्थिक गतिविधियों में काले धन का प्रयोग होता है और इसने संस्थागत रूप ले लिया है.
देखने में आया है कि आर्थिक उदारीकरण के बाद घोटालों की संख्या बढ़ी है और इनका आकार भी काफी बड़ा हो गया है. घोटालों का काले धन से सीधा संबंध होता है. आलम यह हो गया है कि काले धन का आकार देश के सकल घरेलू उत्पाद का 50 फीसदी हो गया है. लेकिन सरकारें इसे रोक पाने में असमर्थ है.
क्योंकि यह काला धन देश के प्रभावशाली लोगों का है. इसकी वजहें भी हैं. देश की चुनाव प्रणाली काफी महंगी हो गयी है. चुनावों में काले धन का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है. साथ ही गवर्नेस में गिरावट आयी है. ऐसी व्यवस्था बना दी गयी है कि काम कराने के लिए पैसा देना जरूरी हो गया है. नेता, अधिकारी और उद्योगपतियों की तिकड़ी बन गयी है. इस तिकड़ी ने पूरी व्यवस्था को हाइजैक कर लिया है.
यह तिकड़ी नहीं चाहती कि व्यवस्था पारदर्शी बने. यही कारण है कि सरकार काले धन पर लगाम नहीं लगाना चाहती है. जबकि अमेरिका ने स्विटजरलैंड पर दबाव बनाकर वहां जमा पैसे को न सिर्फ वापस लिया बल्कि ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी की. लेकिन भारत सरकार तो विदेशों में जमा धम की बात छोड़िये भारत के अंदर भी काले धन वालों पर कार्रवाई नहीं करना चाहती है. यही कारण है कि भारत में काले धन की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है. मौजूदा स्थिति में सरकार से काले धन पर कठोर कार्रवाई की उम्मीद नहीं की जा सकती है. लेकिन यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं है.