तहरीक-ए-तालिबान ने मलाला के प्रांत व सीमांत गांधी की यूनिवर्सिटी को क्यों किया गोलियों से छलनी?
इंटरनेट डेस्क पाकिस्तान एक बार फिर बर्बर आतंकी हमले का शिकार हुआ है, जिसमें आतंकियों ने उसके शैक्षणिक संस्थान को निशान बनाया है. 2014 के दिसंबर महीने में पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला करने वाले आतंकियों ने ही इस बार पेशावर से लगभग 450 किमी की दूरी स्थित चरसद्दा शहर में बाचा खान यूनिवर्सिटी […]
इंटरनेट डेस्क
पाकिस्तान एक बार फिर बर्बर आतंकी हमले का शिकार हुआ है, जिसमें आतंकियों ने उसके शैक्षणिक संस्थान को निशान बनाया है. 2014 के दिसंबर महीने में पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला करने वाले आतंकियों ने ही इस बार पेशावर से लगभग 450 किमी की दूरी स्थित चरसद्दा शहर में बाचा खान यूनिवर्सिटी को निशाना बनाया है, जहां 19 वर्ष से 25 वर्ष उम्र के लगभग तीन हजार से अधिक छात्र नामांकित हैं. आतंकियों ने आज फ्रंटियर गांधी के रूप में विख्यात खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम पर बने विश्वविद्यालय को निशान बनाया. खान की आज वरसी है. आज ही के दिन 1988 में उनका निधन हुआ था. बादशाह खान धर्मनिरपेक्षता व अहिंसा के बड़े पैरोकार थे और आज तहरीक ए तालिबान के आतंकियों ने उनकी वरसी पर ही यह कार्रवाई कर एक तरह से उनके द्वारा स्थापित मूल्यों को ही खत्म करने की कोशिश की. विश्वविद्यालय पर हुए आतंकी हमले में अबतक कम से कम 30 लोगों के मारे जाने की खबर है, जिसमें कुछ प्रोफेसर सहित ज्यादातर छात्र हैं.
गांधी के अनुयायाी थे अब्दुल गफ्फार खान
महात्मा गांधी के अनुयायी खान अब्दुल गफ्फार खान पेशावरमें जन्मे थे और वे सीमाई प्रांत के होने के कारण सरहदी गांधी के नाम से जाने जाते थे. वे भारत का विभाजन नहीं चाहते थे और एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के पैरोकार थे. उन्होंने 1920 में खुदाई खिदमतगार नाम का एक संगठन बनाया था, जिसके उद्देश्य उनके आदर्श ही थे.
सुरक्षा व पाकिस्तान मामलों के जानकार कमर आगा के अनुसार, तहरीक ए तालिबान खान के सिद्धांतों के बिलकुल विपरीत हैं. इसलिए आज उन्होंने उनकी वरसी पर उनके लोकप्रिय नाम बाचा खान पर बने विश्वविद्यालय को निशाना बनाया. कमर आगा के अनुसार, खैबर पख्तून इलाके में खान अब्दुल गफार खान का अब भी प्रभाव है और वहां राष्ट्रवादियों की बड़ी संख्या है. बादशाह खान के परिवार के लोग इस विश्वविद्यालय से जुड़े हैं और इस चरसद्दा, पेशावर व पूरे खैबर पख्तून में इस परिवार का बहुत राजनीतिक सामाजिक प्रभाव है.
मलाला युसुफजई भी यहीं की हैं
मलाला युसुफजई भी खैबर पख्तून प्रांत के ही स्वात जिले की रहने वाली हैं. इस प्रांत में पिछले कई सालों से आतंकी संगठन तहरीक ए तालिबान मानव अधिकारों का हनन कर रहा है. इस संगठन के खिलाफ जब 13 साल की उम्र में मलाला युसुफजई ने आवाज उठायी तो उसे गोलियों से छलनी कर उसकी जान लेने की कोशिश की गयी. बावजूद इसके मलाला इससे पीछे नहीं हटीं. लंबे इलाज के बाद मलाला की जान बच गयी. मलाला को उनके योगदान के लिए शांति का पुरस्कार भी दिया गया है.
जानिएक्या है तहरीक ए तालिबान?
तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान अफगानिस्तान सीमा पर सक्रिय आतंकी संगठन है. इस संगठन की स्थापना बेयतुल्लाह महसूद के नेतृत्व में 13 चरमपंथी गुटों ने दिसंबर 2007 में की थी. उसका संकल्प है कि वह कट्टरपंथ को कायम करेगा और धर्मनिरपेक्षता को खत्म करेगा. इसी संगठन ने पेशावर आर्मी स्कूल पर ही हमला किया था. तहरीक का अर्थ है अभियान और तालिबान का मतलब है धार्मिक शिक्षा पाने वाले छात्र. तहरीक ए तालिबान का अर्थ हुआ धार्मिक शिक्षा पाने वाले छात्रों का अभियान और इनके अभियान का शिकार वे बेगुनाह छात्र व बच्चे बन रहे हैं जो अाधुनिक विज्ञान, लोकतंत्र, सौहार्द्र, दुनिया में आ रहे नये बदलाव व विज्ञान व तकनीक की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.