यह सच है कि अरुणाचल प्रदेश में संवैधानिक संकट था क्योंकि बीते छह महीनों से विधानसभा की बैठक नहीं हुई थी. वहां कोई सरकार नहीं थी.
पर महत्वपूर्ण सवाल तो यह है कि आख़िर यह संवैधानिक संकट क्यों और कैसे खड़ा हुआ.
एक बात बिल्कुल साफ़ है कि यह संकट अपने आप पैदा नहीं हुआ. यह संकट पैदा किया गया.
एक पार्टी की बहुमत की सरकार थी. 60 सदस्यों की विधानसभा में उसके 47 सदस्य थे. सरकार चल रही थी. यकायक विधायकों ने पाला बदल लिया, पार्टी छोड़ दी.
यह यूं ही नहीं होता. इसे जानबूझकर, जोड़-तोड़कर किया गया. एक संकट खड़ा किया गया. इसके दूरगामी असर होंगे.
अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर का सबसे शांत राज्य रहा है. यह उस इलाक़े का अकेला राज्य है, जहां कोई संकट कभी नहीं हुआ.
एक बड़ा, किंतु कम आबादी वाला छोटा और शांतिप्रिय राज्य है अरुणाचल.
वहां इस तरह के राजनीतिक खेल और उठापटक का अच्छा संकेत नहीं जाएगा.
वहां के लोगों को लगेगा कि उनके साथ बुरा हुआ है. सवाल यह भी है कि छोटा अरुणाचल ही क्यों?
यदि इसी तरह का राजनीतिक खेल करना था तो बड़ा राज्य क्यों नहीं?
ये लोग इसी तरह का जोड़-तोड़ बिहार या दिल्ली में करके देखें. वे वहां ऐसा नहीं कर सकते.
शायद इसकी वजह यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने लगातार दो राज्यों में शिकस्त खाई है. असम में चुनाव होने को हैं.
शायद उन्हें ऐसा लगा हो कि पूर्वोत्तर में उनकी भी धमक है, उनके पास भी कुछ है.
कांग्रेस और भाजपा, दोनों को ही इस तरह के संवेदनशील राज्य में मिल-जुलकर काम करना चाहिए.
कांग्रेस अपने आपसे यह पूछे कि उसके लोग पार्टी छोड़कर क्यों चले गए.
(बीबीसी संवाददाता अनुराग शर्मा से बातचीत पर आधारित)
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