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अभिभावकों की चिंता का सबब बनीं सोशल नेटवर्किग साइट्स

अपनों को करीब लानेवाली सोशल नेटवर्किग साइट्स अब अभिभावकों के लिए एक नयी चिंता का सबब बनती जा रही हैं. जहां बच्चों के लिए इन साइटों का प्रयोग आम होता जा रहा है, वहीं सोशल नेटवर्किग का प्रयोग करनेवाले 70 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिनकी उम्र 13 वर्ष से कम है. इतना ही नहीं 36 […]

अपनों को करीब लानेवाली सोशल नेटवर्किग साइट्स अब अभिभावकों के लिए एक नयी चिंता का सबब बनती जा रही हैं. जहां बच्चों के लिए इन साइटों का प्रयोग आम होता जा रहा है, वहीं सोशल नेटवर्किग का प्रयोग करनेवाले 70 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिनकी उम्र 13 वर्ष से कम है. इतना ही नहीं 36 प्रतिशत बच्चे इन साइटों के माध्यम ने उन लोगों से बात करते हैं, जिन्हें वे जानते तक नहीं हैं.

अधुनिकता के इस दौर ने जीने के तौर-तरीकों को भी पूरी तरह से बदल दिया है. खासतौर से अब बच्चों के लिए तकनीक को अपनी अंगुलियों पर नचाना बेहद आसान हो गया है. कुछ वर्षो पहले तक जहां वीडियो गेम बच्चों का सबसे दिलचस्प खेल हुआ करता था, वहीं आज बच्चों को सोशल नेटवर्किग साइटों पर चैटिंग करने में मजा आता है. यहां तक कि उन्हें इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे जिससे चैटिंग कर रहे हैं, उसे वे जानते भी हैं या नहीं. हैरानी की बात तो यह है कि अधिकतर नेटवर्किग साइट्स पर अकाउंट ओपन करने की उम्र सीमा 13 वर्ष रखी गयी है, जबकि 13 वर्ष से कम उम्रवाले 70 प्रतिशत से भी ज्यादा बच्चे इन नेटवर्किग साइट्स का प्रयोग कर रहे हैं. बच्चों द्वारा सोशल नेटवर्किग साइट्स के प्रयोग पर मैकेफे ट्वीन एंड टेक्नोलॉजी द्वारा हाल में किये गये सर्वेक्षण में कई चौंका देनेवाले तथ्य सामने आये हैं. मुंबई, कोलकाता, बंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद और दिल्ली के 1000 बच्चों पर किये गये इस सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है कि 13 वर्ष से कम उम्र के 70 प्रतिशत से भी ज्यादा बच्चे रोजाना सोशल नेटवर्किग साइट्स का प्रयोग करते हैं. सर्वे के मुताबिक आजकल के ट्वीन शुरुआती उम्र में ही मोबाइल का प्रयोग करना पसंद करते हैं. 68 प्रतिशत बच्चे मोबाइल के जरिये ही ऑनलाइन रहते हैं.

अच्छा नहीं है यह परिवर्तन
सर्वेक्षण में सामने आये इन तथ्यों को दिल्ली के हर्ष कुमार किसी समस्या से कम नहीं मानते. 38 वर्षीय हर्ष कहते हैं कि बच्चों का सही उम्र से पहले सोशल नेटवर्किग का प्रयोग करना, न सिर्फ उनकी सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है, बल्कि इन परिवर्तनों का उनकी मानसिकता पर भी काफी गहरा प्रभाव पड़ रहा है. हम सभी देख रहे हैं कि आज के बच्चे वक्त से पहले परिपक्व हो रहे हैं. कहीं-न-कहीं यह इसी तरह के परिवर्तनों का असर है. मुङो लगता है कि बच्चों के सोशल नेटवर्किग साइटों के प्रयोग करने को लेकर अभिभावकों को गंभीर रुख अपनाना चाहिए और उन्हें सही उम्र आने से पहले इन साइटों के प्रयोग से दूर रखना चाहिए.

रोक नहीं सकते मगर..
वहीं पटना की रेशमा सिंह कहती हैं कि आज के दौर को हम तकनीक का दौर कह कर संबोधित करते हैं. जाहिर है कि इस दौर में पलने-बढ़नेवाले बच्चों को हम तकनीक के प्रयोग से दूर नहीं रख सकते. हां, मगर हम उन पर नजर जरूर रख सकते हैं. उन्हें सही और गलत की परख सिखा सकते हैं. मुङो लगता है कि बच्चों को तकनीक के प्रयोग से दूर रखने की बजाय अभिभावकों को उन्हें सही तरह से इसका प्रयोग करना सिखाना चाहिए.

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