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बालू बंदोबस्ती में जनहित का ध्यान जरूरी

नयी बालू नीति में बालू उठाव और खनन के मामले में ठेकेदारों के लिए कई शर्तें रखी गयी हैं. इनमें ठेका लेने और ठेके लेने के बाद घाटों के संचालन दोनों से जुड़ी हैं. अमूमन ठेकेदार टेंडर डालने और बेली लगाने में शतरें का पालन करते हैं, क्योंकि इसके बगैर वे घाटों का ठेका नहीं […]

नयी बालू नीति में बालू उठाव और खनन के मामले में ठेकेदारों के लिए कई शर्तें रखी गयी हैं. इनमें ठेका लेने और ठेके लेने के बाद घाटों के संचालन दोनों से जुड़ी हैं.

अमूमन ठेकेदार टेंडर डालने और बेली लगाने में शतरें का पालन करते हैं, क्योंकि इसके बगैर वे घाटों का ठेका नहीं ले सकते. अगर कहीं कोई चूक रह गयी और फिर भी ठेका मैनेज कर लिया, तो बोली लगाने वाले दूसरे ठेकेदार या ठेका कंपनी उसे चुनौती दे सकती है. इसलिए वहां वे सचेत रहते हैं.

शतरें के उल्लंघन के ज्यादातर मामले वैसे होते हैं, जो ठेका मिलने के बाद घाटों के संचालन के लिए होते हैं. इस पर आम आदमी और सजग नागरिक को ध्यान रखने की जरूरत होती है, क्योंकि यह पूरा मामला उनके हितों से जुडा होता है.

घाटों खतरनाक न हो

ठेकेदार को घाटों से बालू का उठाव इस तरह करना है कि नदी मनुष्य या मवेशी के लिए जानलेवा या खतरनाक न बन जाये. नयी नीति में ठेकेदारों को बेंच बना कर बालू का उठाव और उत्खनन का निर्देश है. यह किसी भी स्थिति में घट तक नदी तल से तीन मीटर से अधिक नहीं हो सकता.

रास्ते बनायेंगे ठेकेदार

बालू घाटों तक ट्रक आदि के आने-जाने के लिए रास्ते का निर्माण कराना ठेकेदार की जिम्मेवारी है. चाहे घाटों का ठेका खुद बिहार राज्य खनिज निगम के पास हो या किसी दूसरी एजेंसी के पास. इस पर होने वाला खर्च उसे ही वहन करना है.

पारदर्शिता जरूरी

जहां बालू का उठाव होना है और जहां से ट्रक आदि में भर कर उसे घाट से बाहर भेजना है, इन दोनों ही स्थानों पर सूचना पट्ट लगाया जाना है, जिसमें ठेकेदार का नाम व पता, बंदोबस्ती की अवधि, स्थानीय प्रबंध का नाम व पता तथा बालू की कीमत अंकित करनी है. इसकी उपेक्षा नागरिक अधिकारों का हनन और बंदोबस्ती की शतरें का उल्लंघन माना जायेगा.

र्शम कानून का पालन जरूरी

बालू घाटों के संचालन और उससे जुडे. कारोबारों पर भी र्शम कानूनों के सभी प्रावधान लागू होते हैं. इसके तहत ठेकेदार को र्शमिकों की सुविधा के लिए विर्शाम शेड, पीने के स्वच्छ पानी, प्राथमिक चिकित्सा तथा महिला मजदूरों के छोटे बाों के लिए पालना घर आदि की व्यवस्था हर हाल में करनी है. यह व्यवस्था केवल खानापूर्ति के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक रूप में सुविधा और सुरक्षा पहुंचाने वाली होनी चाहिए.

घाटे का भार ठेकेदार पर, नागरिकों से भरपाई नहीं

अगर किसी कारण से घाटों पर बालू की मात्रा कम हो जाती है, बाढ. आने से घाटों को नुकसान होता है या नदी दिशा बदल लेती है या फिर घाटों के सीमांकन के विवाद में ठेकेदार को कोई नुकसान होता है, तो उसकी भरपाई वह उपभोक्ताओं यानी आम नागरिकों से नहीं कर सकता है. सरकार भी उसकी भरपाई नहीं करेगी. यह नुकसान ठेकेदार को सहन करना होगा

दिन में मशीनों के उपायोग पर प्रतिबंध

नयी बालू नीति के मुताबिक बालू के उठाव या खनन में पोकलेन या जेसीबी मशीन का इस्तेमाल ठेकेदार कर सकता है, लेकिन इन मशीनों का इस्तेमाल सूर्योदय से सूर्यास्त नहीं होना है. सूर्यास्त के बाद भी इन मशीनों की सहायता ली जा सकती है, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि घाट पर रोशनी की पूरी व्यवस्था ठेकेदार ने की हो.

सूर्यास्त के बाद महिला मजदूरों से काम नहीं

घाटों पर महिला मजदूरों से केवल दिन के उजाले में ही काम लेना है. सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद महिला मजदूर से घाटों पर न तो काम लेना है, न ही उन्हें रोकना है.

नहीं रहेगा पहले जैसे नजारा

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब बालू उत्खनन से लेकर उसके परिवहन तक में पर्यावरण का पूरा ख्याल रखने की बाध्यता है. अब कोई ट्रक या ट्रैक्टर ऑपरेटर बालू से भरे वाहन को पहले की तरह खुला नहीं ले जा सकता. अब उसे तारपोलिन से बालू को ढक कर ले जाना है.

पहले अक्सर यह देखने में आता था कि ट्रक, ट्रैक्टर या बैलगाड़ी पर लदे बालू से रास्ते पर पानी रिसता रहता था और ऐसे वाहन आबादी वाले इलाकों से होकर गुजरते थे. अब ऐसा करना शतरें का उल्लंघन माना जायेगा. इस ठेकेदारों को यह व्यवस्था करने की हिदायत दी गयी है कि वे सेकेंडरी लोडिंग की व्यवस्था करें. इस पर होने वाला खर्च उन्हें ही वहन करना होगा.नयी बालू नीति में बालू उठाव और खनन के मामले में ठेकेदारों के लिए कई शर्तें रखी गयी हैं. इनमें ठेका लेने और ठेके लेने के बाद घाटों के संचालन दोनों से जुडी हैं. अमूमन ठेकेदार टेंडर डालने और बेली लगाने में शतरें का पालन करते हैं, क्योंकि इसके बगैर वे घाटों का ठेका नहीं ले सकते. अगर कहीं कोई चूक रह गयी और फिर भी ठेका मैनेज कर लिया, तो बोली लगाने वाले दूसरे ठेकेदार या ठेका कंपनी उसे चुनौती दे सकती है. इसलिए वहां वे सचेत रहते हैं. शतरें के उल्लंघन के ज्यादातर मामले वैसे होते हैं, जो ठेका मिलने के बाद घाटों के संचालन के लिए होते हैं. इस पर आम आदमी और सजग नागरिक को ध्यान रखने की जरूरत होती है, क्योंकि यह पूरा मामला उनके हितों से जुड.ा होता है.

घाटों खतरनाक न हो

ठेकेदार को घाटों से बालू का उठाव इस तरह करना है कि नदी मनुष्य या मवेशी के लिए जानलेवा या खतरनाक न बन जाये. नयी नीति में ठेकेदारों को बेंच बना कर बालू का उठाव और उत्खनन का निर्देश है. यह किसी भी स्थिति में घट तक नदी तल से तीन मीटर से अधिक नहीं हो सकता.

रास्ते बनायेंगे ठेकेदार

बालू घाटों तक ट्रक आदि के आने-जाने के लिए रास्ते का निर्माण कराना ठेकेदार की जिम्मेवारी है. चाहे घाटों का ठेका खुद बिहार राज्य खनिज निगम के पास हो या किसी दूसरी एजेंसी के पास. इस पर होने वाला खर्च उसे ही वहन करना है.

पारदर्शिता जरूरी

जहां बालू का उठाव होना है और जहां से ट्रक आदि में भर कर उसे घाट से बाहर भेजना है, इन दोनों ही स्थानों पर सूचना पट्ट लगाया जाना है, जिसमें ठेकेदार का नाम व पता, बंदोबस्ती की अवधि, स्थानीय प्रबंध का नाम व पता तथा बालू की कीमत अंकित करनी है. इसकी उपेक्षा नागरिक अधिकारों का हनन और बंदोबस्ती की शतरें का उल्लंघन माना जायेगा.

र्शम कानून का पालन जरूरी

बालू घाटों के संचालन और उससे जुडे. कारोबारों पर भी र्शम कानूनों के सभी प्रावधान लागू होते हैं. इसके तहत ठेकेदार को र्शमिकों की सुविधा के लिए विर्शाम शेड, पीने के स्वच्छ पानी, प्राथमिक चिकित्सा तथा महिला मजदूरों के छोटे बाों के लिए पालना घर आदि की व्यवस्था हर हाल में करनी है. यह व्यवस्था केवल खानापूर्ति के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक रूप में सुविधा और सुरक्षा पहुंचाने वाली होनी चाहिए.

घाटे का भार ठेकेदार पर, नागरिकों से भरपाई नहीं

अगर किसी कारण से घाटों पर बालू की मात्रा कम हो जाती है, बाढ. आने से घाटों को नुकसान होता है या नदी दिशा बदल लेती है या फिर घाटों के सीमांकन के विवाद में ठेकेदार को कोई नुकसान होता है, तो उसकी भरपाई वह उपभोक्ताओं यानी आम नागरिकों से नहीं कर सकता है. सरकार भी उसकी भरपाई नहीं करेगी. यह नुकसान ठेकेदार को सहन करना होगा

दिन में मशीनों के उपायोग पर प्रतिबंध

नयी बालू नीति के मुताबिक बालू के उठाव या खनन में पोकलेन या जेसीबी मशीन का इस्तेमाल ठेकेदार कर सकता है, लेकिन इन मशीनों का इस्तेमाल सूर्योदय से सूर्यास्त नहीं होना है. सूर्यास्त के बाद भी इन मशीनों की सहायता ली जा सकती है, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि घाट पर रोशनी की पूरी व्यवस्था ठेकेदार ने की हो.

सूर्यास्त के बाद महिला मजदूरों से काम नहीं

घाटों पर महिला मजदूरों से केवल दिन के उजाले में ही काम लेना है. सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद महिला मजदूर से घाटों पर न तो काम लेना है, न ही उन्हें रोकना है.

नहीं रहेगा पहले जैसे नजारा

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब बालू उत्खनन से लेकर उसके परिवहन तक में पर्यावरण का पूरा ख्याल रखने की बाध्यता है. अब कोई ट्रक या ट्रैक्टर ऑपरेटर बालू से भरे वाहन को पहले की तरह खुला नहीं ले जा सकता. अब उसे तारपोलिन से बालू को ढक कर ले जाना है.

पहले अक्सर यह देखने में आता था कि ट्रक, ट्रैक्टर या बैलगाड.ी पर लदे बालू से रास्ते पर पानी रिसता रहता था और ऐसे वाहन आबादी वाले इलाकों से होकर गुजरते थे. अब ऐसा करना शतरें का उल्लंघन माना जायेगा. इस ठेकेदारों को यह व्यवस्था करने की हिदायत दी गयी है कि वे सेकेंडरी लोडिंग की व्यवस्था करें. इस पर होने वाला खर्च उन्हें ही वहन करना होगा.

राज्य में खनन कानून

बिहार ईंटों की आपूर्ति और मूल्य नियंत्रण अधिनियम, 1984

बिहार खनिज अवैध खनन, परिवहन और भंडारण रोकथाम) नियम, 2003

बिहार लघु खनिज रियायत नियमावली, 1972

खनिज ट्रांजिट पास विनियम, 1976

खान एवं खनिज (डी एंड आर) अधिनियम, 1957

उपकर अधिनियम, 1880

उपकार और अन्य कर (विधिमान्यकरण) अधिनियम, 1992

खनन अधिकारी के संपर्क सूत्र

बी प्रधान, प्रधान सचिव : 9473191438 0612-2215857

घनश्याम प्रसाद दफ्तुआर, अपर सचिव : 9431210958, 0612-2215415

हसनैन खां, संयुक्त सचिव : 8757553388, 0612-2201106

सुशील कुमार , अवर सचिव : 0612-2215857

खनन विभाग का ढांचा

खान एवं भूतत्व विभाग का गठन 1964 में हुआ था. 1971 में खान निदेशालय और भूतत्व निदेशालय ये दो अंग बनाये गये. राज्य के बंटवारे के बाद 2006 में इस विभाग और इसके निदेशालयों की संरचना में बदलाव किया गया. खान और भूतत्व दोनों निदेशालयों को एक कर दिया गया. पहले भूतत्व विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय भी थे. उन्हें समाप्त कर दिया गया. प्रमंडल एवं जिला स्तर पर इसका सांगठनिक ढांचा इस तरह है :

प्रमंडल स्तर :

पटना, मगध, गया, सारण, तिरहुत, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, कोशी, सहरसा, पूर्णियाँ, मुंगेर एवं भागलपुर में अंचल कार्यालय है.

स्वतंत्र कार्यालय नहीं, खान निरीक्षण डीएम के अधीन : भभुआ, बक्सर, जहानाबाद, अरवल, सारण, सीवान, गोपालगंज, सीतामढी, शिवहर, मोतिहारी, वैशाली, दरभंगा, समस्तीपुर, मधुबनी, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार, बांका, बेगुसराय एवं खगड.िया जिले.

स्वतंत्र कार्यालय : पटना, नालंदा, रोहतास, भोजपुर, गया, , शेखपुरा नवादा, औरंगाबाद, बेतिया, भागलपुर, लखीसराय, मुंगेर एवं जमुई जिले.राज्य में खनन कानून

बिहार ईंटों की आपूर्ति और मूल्य नियंत्रण अधिनियम, 1984

बिहार खनिज अवैध खनन, परिवहन और भंडारण रोकथाम) नियम, 2003

बिहार लघु खनिज रियायत नियमावली, 1972

खनिज ट्रांजिट पास विनियम, 1976

खान एवं खनिज (डी एंड आर) अधिनियम, 1957

उपकर अधिनियम, 1880

उपकार और अन्य कर (विधिमान्यकरण) अधिनियम, 1992

खनन अधिकारी के संपर्क सूत्र

बी प्रधान, प्रधान सचिव : 9473191438 0612-2215857

घनश्याम प्रसाद दफ्तुआर, अपर सचिव : 9431210958, 0612-2215415

हसनैन खां, संयुक्त सचिव : 8757553388, 0612-2201106

सुशील कुमार , अवर सचिव : 0612-2215857


खनन विभाग का ढांचा

खान एवं भूतत्व विभाग का गठन 1964 में हुआ था. 1971 में खान निदेशालय और भूतत्व निदेशालय ये दो अंग बनाये गये. राज्य के बंटवारे के बाद 2006 में इस विभाग और इसके निदेशालयों की संरचना में बदलाव किया गया. खान और भूतत्व दोनों निदेशालयों को एक कर दिया गया. पहले भूतत्व विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय भी थे. उन्हें समाप्त कर दिया गया. प्रमंडल एवं जिला स्तर पर इसका सांगठनिक ढांचा इस तरह है :

प्रमंडल स्तर :

पटना, मगध, गया, सारण, तिरहुत, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, कोशी, सहरसा, पूर्णियाँ, मुंगेर एवं भागलपुर में अंचल कार्यालय है.

स्वतंत्र कार्यालय नहीं, खान निरीक्षण डीएम के अधीन : भभुआ, बक्सर, जहानाबाद, अरवल, सारण, सीवान, गोपालगंज, सीतामढी, शिवहर, मोतिहारी, वैशाली, दरभंगा, समस्तीपुर, मधुबनी, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार, बांका, बेगुसराय एवं खगड.िया जिले.

स्वतंत्र कार्यालय : पटना, नालंदा, रोहतास, भोजपुर, गया, , शेखपुरा नवादा, औरंगाबाद, बेतिया, भागलपुर, लखीसराय, मुंगेर एवं जमुई जिले.

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