कई बार घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाने पर इसका खमियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है. ऐसा आपकी नौकरी छूटने या बिजनेस मंदा पड़ने पर भी हो सकता है. ऐसे में बच्चे भी कई बार स्थिति समझ कर खुद में ही घुटने लगते हैं. हमें कोशिश करना चाहिये कि हालात की भयावहता के बारे में बच्चों को कम से कम जानकारी दें.
परेशानी की चर्चा बच्चे के सामने न करें
अक्सर माता-पिता इस भ्रम में रहते हैं कि उनके बच्चे तो अभी छोटे हैं, उन्हें कुछ समझ में नहीं आयेगा. लेकिन यह उनकी गलतफहमी होती है. बच्चे माता-पिता की सारी बातें समझने लगते हैं और धीरे-धीरे वे खुद को उसी माहौल में ढालने लगते हैं. वे अपनी बात भले ही किसी से शेयर न करें, लेकिन अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं. इसलिए माता-पिता को ध्यान रखना चाहिये कि वे अपनी परेशानी की चर्चा बच्चों के सामने न करें.
हर बात पर ठीक नहीं रोक-टोक
आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने पर अक्सर माता-पिता की कोशिश होती है कि बच्चे की सिर्फ जरूरतें पूरी हों, उनके अरमान नहीं. ऐसे में वे बच्चे को महंगी जगहों पर या वैसे दोस्तों की संगत में रहने से रोकने लगते हैं, जो काफी पैसे वाले हैं.
उन्हें खुद में बुरा लगता है. मगर वे बच्चों को उनसे दोस्ती नहीं बढ़ाने देते. जबकि माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों को सिखायें कि कोई भी रिश्ता किसी पैसे पर नहीं तौला जाना चाहिए. उन्हें यह समझायें कि जिंदगी में पैसे को जरूरत भर ही महत्व देना चाहिए, उससे अधिक नहीं.
सोशल बनें
बच्चों को सोशल बनायें और खुद भी सोशल बनें. ताकि बच्चे आपकी मजबूरी को अपनी कमजोरी न समझने लगें. कोशिश करें कि उनके सामने हमेशा हंसते-खिलखिलाते हुए मिलें और उन्हें इन बातों का एहसास न करायें कि आपको पैसे की कमी है. इससे बच्चे अपने अरमानों को रोकेंगे और फिर बचपन में ही उनका बचपना छिन-सा जायेगा.
करते रहें छोटी-छोटी सेविंग
बुरे वक्त में पैसों की कमी न खलें. इसके लिए यह जरूरी है कि आप छोटी-छोटी सेविंग करते रहें. अपने बच्चे की पढ़ाई के नाम पर और उनकी दिनचर्या के लिए भी पैसे एकत्रित करते रहें. छोटी-छोटी बचत भी आपको बच्चों के अरमानों के वक्त काम आयेंगे. सो, जरूरी है कि इसकी योजना सही वक्त पर की जाये.
हमेशा पॉजिटिव रहें
अगर आप बुरे दौर से गुजर रहे हैं तो भी पॉजिटिव रहें. अगर आपका व्यवहार सकारात्मक नहीं होगा तो बच्चों को ये बातें साफ-साफ समझ आयेंगी. फिर वे भी धीरे-धीरे नकारात्मक होते जायेंगे. उनकी जिंदगी जीने का नजरिया भी हमेशा बदलता रहेगा. सो, बेहद जरूरी है कि चाहे जो भी परिस्थिति हो, आपकी पॉजिटिविटी में कोई कमी नहीं आनी चाहिए. इससे आपको मजबूती भी मिलेगी.
अक्सर माता पिता इस फिराक में रहते हैं कि वे अपने बच्चे की बर्थ सर्टिफिकेट अलग बनवायें, ताकि बच्चे को आगे चल कर फायदा हो. लेकिन इससे बच्चे की मानसिकता पर असर पड़ता है. यह बात कोई भी पेरेंट्स समझ नहीं पाते. चूंकि कई बार बच्चे उस क्लास में दोबारा पढ़ते हैं, जो वे पहले भी पढ़ चुके हैं. इससे उनके विकास में कोई भी खास बात नहीं होती है.
अक्सर बच्चे अगर अपनी उम्र से छोटी उम्र के बच्चों के साथ दोस्ती करते हैं, तब भी बच्चों से उनकी मानसिकता मेल नहीं खाती और वे उस वक्त भी अंदर ही अंदर घूटते चले जाते हैं और इससे भी बच्चे के विकास पर नकारात्मक असर होता है.
आगे चल कर यही बच्चा जब किसी को बात बात में अपनी सही उम्र के बारे में बता देता है तो लोग उसका मजाक बनाने लगते हैं और कई बच्चे ये सारी बातें सहन नहीं कर पाते. रिपोर्ट बताते हैं कि कई बच्चों ने सिर्फ इस वजह से कई बार गलत कदम भी उठाये हैं.
कई माता-पिता इन बातों को लेकर इतने गंभीर नहीं होते और कई बार वे खुद बच्चे की उम्र अपने मन से बढ़ा चढ़ा कर लिख देते हैं.
बाद में वे चाह कर भी इनकी सही तब्दीली नहीं करा पाते. इस बात का भी नुकसान बच्चे को ही होता है. वह अपनी उम्र से काफी पहले बुजुर्ग हो जाता है और उसे भी जब बड़े होकर यह जानकारी मिलती है तो वह दुखी होता है.