जपयोग से आराध्य का एकाकार
जपयोग से कई फायदे हैं. इससे मन शांत रहता है और ईश्वर से एकाकार का मौका भी मिलता है. बेहतर होगा कि आप मंत्र का जाप नियमित करें. इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे बेहतर कार्य करने में सहायता मिलती है. जपयोग एक ऐसी विधि है, जिसके द्वारा मानसिक वृत्ति को अपने आराध्य […]
जपयोग से कई फायदे हैं. इससे मन शांत रहता है और ईश्वर से एकाकार का मौका भी मिलता है. बेहतर होगा कि आप मंत्र का जाप नियमित करें. इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे बेहतर कार्य करने में सहायता मिलती है.
जपयोग एक ऐसी विधि है, जिसके द्वारा मानसिक वृत्ति को अपने आराध्य से एकाकार किया जा सकता है. जप मन के लिए खूंटी का काम करती है. हमारे गुरुजी एक कहानी सुनाया करते हैं. ऊंटों का एक कारवां रेगिस्तान में जा रहा था. शाम का समय हो गया, कारवां रुक गया. सब अपना तंबू लगाने लगे, ऊंटों को बांधने लगे, रात के लिए तैयारी करने लगे. लेकिन सभी ऊंटों को बांधने पर एक ऊंट को नहीं बांध पाये, क्योंकि खूंटी और रस्सी गुम हो गयी थी. क्या किया जाये? ऊंट को नहीं बांधे तो रात को भागने का खतरा है. उस कारवां में एक बुजुर्ग व्यक्ति था. उसने कहा, ‘रस्सी नहीं है, तो कोई बात नहीं. ऊंट के पास जाकर तुम अभिनय करो कि तुम उसे बांध रहे हो.’ एक आदमी ऊंट के पास गया, अभिनय किया कि ऊंट के गले में रस्सी डाल रहा है, खींच के बैठा रहा, जमीन खोद कर खूंटी डाल रहा है, रस्सी को खूंटी में बांध रहा है. ऊंट चुपचाप बैठ गया. अगले दिन यात्र के लिए कारवां तैयार होता है, तंबू उठ जाते हैं, ऊंटों पर लाद दिये जाते हैं, लेकिन एक ऊंट उठता ही नहीं है. कितना ही डंडा क्यों न मारें, कितनी ही पिटाई क्यों न करें, लेकिन वह ऊंट उठे ही नहीं. तब बुजुर्ग आया और बोला, ‘तुमने इस ऊंट को खोला ? जैसे इसे बांधने का अभिनय किया, वैसे अब इसे खोलने का अभिनय करो.’ जैसे ही ऊंट को खोलने का अभिनय पूरा होता है, ऊंट तुरंत खड़ा हो जाता है ! इसी प्रकार मंत्र और मन है. मन को एक खूंटी चाहिए टिकने के लिए और वह खूंटी मंत्र है. बेहतर होगा कि आप मंत्र का जाप नियमित करें. इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. सकारात्मक सोच सफलता की कुंजी है. अगर हम कोई भी कार्य सकारात्मक सोच के साथ प्रारंभ करते हैं, तो उसकी सफलता निश्चित है. इस कारण आपके लिए बेहतर होगा कि आप मंत्र का जाप करें. यदि आप मंत्र का जाप रेगुलर करते हैं, तो कोई कारण नहीं कि आप सफल न हो सकें. यही कारण है कि शास्त्रों में भी जपयोग की महत्ता का विस्तार से वर्णन है.
मंत्र जप की दो विधियां
मंत्र जप की दो विधियां हैं-ध्यान सहित जप और ध्यान रहित जप. ध्यान सहित जप में अपनी इंद्रियां और मन को शांत कर चित्त को आराध्य के प्रतीक पर केंद्रित करके मंत्र का जप करते हैं. इसके तीन तरीके हैं. उत्तम तरीका है मानसिक, मन में ही बोलना. मन में तदाकार वृत्ति का जन्म होना है, इसलिए मन में ही बोलो. अगर मानसिक जप करते समय मन अंर्तमुखी हो जाये और अंतमरुखता के कारण नींद आने लगे, तब उस समय अपनी चेतना को पुन: मंत्र के साथ जोड़ने के लिए बुदबुदाना शुरू करो. होठों को हिलाओ, मंत्र को बुदबुदाओ और मंत्र के प्रति अपनी सजगता को बनाये रखो. अगर फिर भी तंद्रा से मुक्त नहीं हो पाते हो तो मंत्र बोलना शुरू करो.
ध्यान सहित जप इन तीन तरीकों को मानसिक, उपांशु और बैखरी कहते हैं. दूसरी विधि ध्यान रहित जप की है जिसमें सहज भाव से दिन में चलते-फिरते, खाते-पीते, टहलते-दौड़ते सोहं मंत्र, गायत्री मंत्र, ऊंकार मंत्र, महामंत्र या अपने गुरु मंत्र का जप हो सकता है.