जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जो विवाद चल रहा है उसे समाज का एक हिस्सा देशद्रोह बता रहा है तो दूसरे का कहना है कि ये विचारों की अभिव्यक्ति है.
छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को पुलिस ने देशद्रोह क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया.
इस मुद्दे पर सुनिए गौतम की राय.
वर्ष 1975 में लगे आपातकाल के बाद ये पहला मौक़ा था जब जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष को पुलिस ने गिरफ़्तार किया हो.
मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा का मानना है कि हिंसा की वकालत करना नहीं बल्कि उसे भड़काना देशद्रोह है.
गौतम कहते हैं, "अंग्रेज़ों के समय 1860 में ये क़ानून बनाया गया था लेकिन आज के संविधान में हमें दिए गए अधिकारों के विपरीत है ये क़ानून."
उनके अनुसार कोर्ट ने बहुत स्पष्ट रूप से ये दिशानिर्देश जारी किए हैं कि किन मामलों में इस क़ानून का इस्तेमाल हो सकता है.
वो कहते हैं, "कोर्ट ने यह साफ रूप से कहा है कि अगर कोई देश विरोधी नारे लगाता है तो उसे देशद्रोह नहीं माना जा सकता."
वो एक पुराने मामले का उदाहरण भी देते हैं.
गौतम के अनुसार, "पंजाब में बलवंत सिंह नाम के एक व्यक्ति थे जिन्होंने ख़ालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए थे और उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया था."
वो बताते हैं, "जब उनकी सुनवाई शुरू हुई तो कोर्ट ने उन्हें ये कहकर रिहा कर दिया कि उनके ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला बनता ही नहीं है."
जेएनयू में इस क़ानून के इस्तेमाल को वो पूरी तरह ग़लत बताते हैं.
गौतम कहते हैं, "जेएनयू में जो भी हुआ वो सरासर ग़लत है और इससे एक बहुत भयानक स्थिति पैदा हो रही है."
उनके अनुसार, "इसके पीछे जो राजनीति है वो अब सामने आ रही है. कुछ चंद लोगों के कहने पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह इतना बड़ा बयान दे देते हैं. वहीं पुलिस कमिश्नर ख़ानापूर्ति के लिए काम करते हैं."
गौतम कहते हैं कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रविरोधी नाम से जो माहौल बनाया जा रहा है वो बहुत ही ख़तरनाक है और बहुत ही बड़ा मुद्दा है जिस पर गौर किए जाने की ज़रूरत है.
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