नकली हाथों से होगा असली एहसास
किसी दुर्घटना में हाथ गंवा देनेवाले हजारों लोगों को यह जान कर बेहद खुशी होगी कि वैज्ञानिक संवेदनाओं का एहसास करनेवाले कृत्रिम हाथ विकसित करने में जुटे हैं. इस कृत्रिम हाथ से चीजों को छूने का असली एहसास हो सकेगा. दुर्घटनावश अपने हाथ खो चुके लोगों को पहले भी कृत्रिम हाथ लगाये जाते रहे हैं. […]
किसी दुर्घटना में हाथ गंवा देनेवाले हजारों लोगों को यह जान कर बेहद खुशी होगी कि वैज्ञानिक संवेदनाओं का एहसास करनेवाले कृत्रिम हाथ विकसित करने में जुटे हैं. इस कृत्रिम हाथ से चीजों को छूने का असली एहसास हो सकेगा.
दुर्घटनावश अपने हाथ खो चुके लोगों को पहले भी कृत्रिम हाथ लगाये जाते रहे हैं. ये नकली हाथ व्यक्ति की शारीरिक संरचना को पूर्ण बनाने में भले ही सफल रहे हैं, लेकिन हाथ न होने के एहसास को ये पूरा नहीं कर पाते. वैज्ञानिकों ने अब ऐसे कृत्रिम हाथों का निर्माण करने का फैसला लिया है, जो हाथ न होनेवाले व्यक्तियों को असली हाथ होने का एहसास दिलायेंगे. क्लीवलैंड वेटरंस अफेर्स मेडिकल सेंटर और केस वेस्टर्न रिजर्न यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने एक ऐसा इंटरफेस तैयार किया है, जिसकी मदद से कृत्रिम हाथ में सेंसर का प्रयोग करके असली एहसास का संतुलन बिठाया जायेगा. इसके लिए वैज्ञानिक कृत्रिम हाथ में 20 जगहों पर सेंसर लगायेंगे.
पिछले कुछ दिनों के दौरान विशेषज्ञ कृत्रिम अंगों की बनावट, दिमाग के साथ उनका संतुलन, उनके बाधारहित संचालन में काफी सुधार लाने में सफल रहे हैं. मगर कुछ खास तरह के एहसास न होने से कृत्रिम हाथ- जैसे अंगों से किसी चीज को उठाने या रखने, पकड़ मजबूत या ढीली करने जैसे काम करना संभव नहीं था. विशेषज्ञों के इस ताजा प्रयोग की बदौलत अब इस दिशा में कुछ प्रगति के संकेत दिख रहे हैं. पेरिफेरल नसों के जालवाले इन हाथों को दो व्यक्तियों में लगाया जा चुका है. इनसे मिले परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं.
यह बायोनिक हाथ 18 महीने से बिना किसी तकनीकी समस्या के काम कर रहा है. इसे 48 वर्षीय ओहायो नामक व्यक्ति को लगाया गया है. तीन वर्ष पहले एक दुर्घटना में ओहायो का हाथ कट गया था. कुछ सप्ताह पहले जारी किये गये एक वीडियो में इस व्यक्ति को पेड़ से फल तोड़ते हुए दिखाया गया है.
दरअसल, उसके हाथ में दबाव मापनेवाले सेंसर लगे हैं. यही वजह रही कि इस व्यक्ति ने जब अपने कृत्रिम हाथ से फल तोड़े तो उसे ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़ा. विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस तकनीक को सभी के लिए उपलब्ध कराने में कम-से-कम दस वर्ष का वक्त लग जायेगा.