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भारतीय रेलवे : डेढ़ सौ सालों से ज्यादा तक का सफर

बजट डेस्क कल रेल मंत्री सुरेश प्रभु संसद में रेल बजट पेश करेंगे. देश में लोगों की निगाह बजट पर टिकी हुई है. इंडियन रेलवे सदियों से आम भारतीयों का अहम परिवहन तंत्र रहा है. दुनिया में कई ऐसे देश है जिनके आबादी से ज्यादा किसी खास वक्त में भारतीय ट्रेनों में लोग सफर कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 24, 2016 1:43 PM

बजट डेस्क

कल रेल मंत्री सुरेश प्रभु संसद में रेल बजट पेश करेंगे. देश में लोगों की निगाह बजट पर टिकी हुई है. इंडियन रेलवे सदियों से आम भारतीयों का अहम परिवहन तंत्र रहा है. दुनिया में कई ऐसे देश है जिनके आबादी से ज्यादा किसी खास वक्त में भारतीय ट्रेनों में लोग सफर कर रहे होते हैं. 1924 तक रेल बजट सामान्य बजट के साथ ही पेश होती थी लेकिन साल 1921 में रेलवे को लगने लगा कि अब इसकी क्षमता का विस्तार करना चाहिए. 1924 में तत्कालीन रेलवे कमिटी के चैयरमैन सर विलियम एम एक्वर्थ ने अलग से रेल बजट पेश किया.
क्या है इतिहास
भारतीय रेल की शुरुआत 1853 में मुंबई और थाणे के बीच ट्रेन चलाकर हुई. तब से लेकर आजतक रेल आम भारतीय जनजीवन का केन्द्र बिन्दु रहा है. हालांकि इसकी शुरुआत अंग्रेजों ने अपने शासन व्यवस्था को आसान बनाने के लिए किया था. अंग्रेजों ने इस बात को ध्यान में रखते हुए देशभर में रेल नेटवर्क जोड़ने का काम किया. आगे चलकर यह सिर्फ यातायात का माध्यम नहीं बनकर देश के विभिन्न प्रांतों को जोड़ने का काम किया. भाषायी और सांस्कृतिक विविधता वाले देश में कोई एक ऐसे साधन की जरूरत थी जो पूरे देश को जोड़ सके. इस काम को भारतीय रेलवे ने बखूबी किया.
बढ़ती गयी ट्रेन की संख्या, लेकिन नहींबढ़ेरेल नेटवर्क
भारत में साल दर साल पेश हुए रेल बजट मेंकुछ अपवादों को छोड़ कर रेल मंत्रियों ने अपने गृह राज्य की ट्रेनों की संख्या बढ़ाने की घोषणा की. वहीं रेल नेटवर्क में पर्याप्त वृद्धि नहीं हो पायी. लिहाजा, भारतीय ट्रेनों की स्पीड विश्व के अन्य देशों के मुकाबले कम होती गयी.भारत का रेलवे विश्व का सबसे दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है. 1947 तक अंग्रेजों ने 53,596 किलोमीटर का रेल नेटवर्क बिछाया, लेकिन आजादी के 63 साल बीत जाने के बाद इसमें मात्र 21 फीसदी की वृद्धि हुई.
यात्रियों का सफर की बात छोड़ भी दिया जाये तो सस्ता होने के बावजूद माल ढुलाई में रेल सड़क मार्ग से पीछे है, क्योंकि भारी ट्रैफिक के बोझ से इसकी गति धीमी है. रेलवे के माली हालत को सुधार करने के लिए जाने-माने अर्थशास्त्री विवेक देवरॉय की अध्यक्षता में एक कमिटी भी बनायी गयी. कमिटी ने अपने सुझाव में कहा कि रेलवे बड़े पैमाने पर निवेश की कमी से जूझ रही है. कमिटी की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि रेलवे को स्वायत्तता मिलनी चाहिए और सरकार की भूमिका सिर्फ नीति बनाने तक सीमित रहनी चाहिए. समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि भारतीय रेल की पूरी ओवरहालिंग (मरम्मत) सात साल में कर दी जानी चाहिए.

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