दक्षा वैदकर
राधिका के माता-पिता ने उसे खूब पढ़ाया. वह जो विषय लेना चाहती थी, उसे लेने दिया. कॉलेज के दिनों में राधिका को एक लड़के से प्यार हो गया. माता-पिता के मना करने के बावजूद उसने घर से भाग कर शादी कर ली. माता-पिता ने दुखी मन से उसे भूलने की कोशिश की और अपने बाकी बच्चों की परवरिश में लग गये. तीन-चार साल बाद राधिका का पति से झगड़ा होने लगा.
वह उसे शराब पी कर खूब मारने-पीटने लगा. उसका एक साल का बेटा भी था, जो बीमार रहने लगा था. राधिका ने घर पर फोन लगा कर यह बताया, तो माता-पिता ने उसे तुरंत माफ कर दिया और वापस स्वीकार कर लिया. राधिका ने और आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की. माता-पिता ने वह बात भी मानी. उन्होंने उसके बेटे को संभाला और राधिका की पढ़ाई फिर शुरू करवा दी. साल बीतते गये. राधिका नौकरी करने लगी.
अच्छा कमाने लगी. उसका आत्मविश्वास इतना बढ़ गया कि उसने माता-पिता से ही झगड़ा करना शुरू कर दिया. घर में कभी कोई कुछ रु पये मांग ले, तो वे दो-चार बातें सुना देती. न पिता का सम्मान करती और न मां की घर के कामों में मदद करती. जब माता-पिता उससे कुछ कहते, तो वह सुना देती कि आपने मेरे लिए आखिर किया क्या है? आपने बाकी बच्चों को इतना प्यार दिया. उनकी अच्छे घरों में शादी की, लेकिन मेरे पास कुछ नहीं है.
मुझे आज तक किसी ने कोई गिफ्ट नहीं दिया. मेरी चिंता नहीं की. अपने घर की यह कहानी राधिका के पिता ने फोन पर बतायी है. वह कहते हैं कि माता-पिता बच्चों के लिए बहुत कुछ करते हैं, लेकिन न जाने बच्चे यह सब क्यों भूल जाते हैं. आज सभी माता-पिता को अपने बच्चों को एक आदत डलवानी चाहिए. वह है डायरी लिखने की. बच्चों को बताएं कि वे रोजाना उनके साथ हो रही अच्छी-अच्छी बातों को डायरी में लिखें, नोट करें कि आज माता-पिता ने हमारे लिए क्या किया, ताकि बाद में उसे पढ़ कर वे अपने माता-पिता को प्यार दें.