आज अपने बच्चे को समय नहीं देंगे तो कल बच्चा भी आपको नहीं समझेगा
वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting ट्विटर : @14veena पिछली बार जब मैं पटना गयी थी तो एक युवती ने मुझसे एक समस्या शेयर की थी. उसने बताया कि उसकी एक भतीजी है जो 5-6 वर्ष की है. जब वह तीन-चार महीने की थी तभी से ही […]
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
फेसबुक : facebook.com/veenaparenting
ट्विटर : @14veena
पिछली बार जब मैं पटना गयी थी तो एक युवती ने मुझसे एक समस्या शेयर की थी. उसने बताया कि उसकी एक भतीजी है जो 5-6 वर्ष की है. जब वह तीन-चार महीने की थी तभी से ही वे उसका ख्याल रखती हैं. एक तरह से उसे पाला है उसने. क्योंकि उसकी भाभी नौकरी करती है और दूसरे शहर में रहती है. आजकल नौकरीपेशा माता-पिता के सामने बच्चों को पालना बहुत बड़ी चुनौती है. उनकी देखभाल की चिंता, उनको किसकी सुरक्षा में छोड़ें, कौन उनके खाने-पीने की देखभाल करेगा? ये बड़े सवाल हैं. क्रैच और मेड सर्वेंट पर कितना भरोसा किया जा सकता है? यह सवाल आज के समय में और भी महत्वपूर्ण हो गये हैं.
चूंकि वह महिला जॉब करती थी, इसलिए इन्हीं चिंताओं के चलते, उसने निर्णय लिया कि बेटी को अपने माता-पिता के पास रखेंगे जहां बुआ उसकी पूरी देखभाल करेगी. इतने वर्षों में वह बच्ची बुआ पर इतनी निर्भर हो गयी है, इतनी आदी हो गयी है कि वह बुआ के बिना एक कदम भी नहीं चलती. उसके मां-पापा छुट्टियों में उससे मिलने आते हैं.
बुआ के साथ रहना उस बच्ची की जरूरत है, उसके बिना वह बच्ची कहीं नहीं जाती. ये सब ठीक चल रहा था. अब बुआ की शादी तय हो गयी है. समस्या यहां आ रही है. अब उसके मां-पिता के पास यही विकल्प है कि वह अपनी बेटी को वापस ले आये, मगर सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह उनके पास जाना ही नहीं चाहती. वह अपनी बुआ के पास ही रहना चाहती है.
अब यह हालत हो गयी है कि वह बुआ को एक मिनट के लिए भी नहीं छोड़ना चाहती. अब घरवाले परेशान हैं कि क्या करें. वह उसी के हाथ से, उसी के साथ खाना खाती है. उसी के साथ सोती है. यह प्यार तो ठीक है, लेकिन कुछ महीने बाद उसकी बुआ की शादी हो जायेगी तब क्या होगा उस बच्ची का ? जो माता-पिता के प्यार से तो दूर रही, लेकिन जिसकी ममता के साथ पली-बढ़ी, वह भी उससे दूर हो रही है. यही घरवालों की परेशानी की सबसे बड़ी वजह है. जब बच्ची से बताया गया कि बुआ की शादी होनी है और उसे वापस मम्मा-पापा के पास जाना है, तो उसने कहा बुआ कि शादी मत करो. वह मम्मी से डरती है.
जब वह उस बच्ची से मिलने आती है तब भी वह बच्ची अपनी मम्मी से दूर रहती है. उनके साथ यह वाकई गंभीर समस्या है. मैंने उनसे पूछा था कि क्या कभी ऐसा हुआ है कि उसकी मम्मा ने उसे खूब और बेवजह डांटा हो. तब उसने बताया कि हां वह अकसर ऐसा करती हैं और जब डांटती हैं, तो बच्ची मेरे पास ही आती है. आप ऐसे मामले को गंभीरता से लीजिए.्र
अगर आप जॉब करती हैं और संयुक्त परिवार में हैं जहां आपकी सास, ननद, देवरानी-जेठानी साथ हैं, तो घर के सभी सदस्य एक बात का ध्यान रखें कि उन बच्चों को उनके माता-पिता से ज्यादा दूर न करें. हर समय उनकी जायज-नाजायज मांग को पूरा कर माता-पिता से दूर न करें.
जो महिलाएं नौकरी करती हैं, वे शाम को आकर बच्चों के साथ समय गुजारें. इस बात से बेफिक्र न रहें कि घरवाले संभाल रहे हैं, तो क्या जरूरत है बच्चों पर ध्यान देने की. आप बच्चों के प्यार और उनकी जरूरत को समझिए. छोटे बच्चों की जरूरत माता-पिता होते हैं. प्यार उनकी सबसे बड़ी भूख होती है और जिससे उनकी यह भूख शांत होती है, बच्चा उसी से जुड़ जाता है. केवल जन्म देने से बच्चा आपको मान-सम्मान या प्यार नहीं देगा. जो बच्चे का पालन-पोषण करेगा, बच्चा अपने निश्छल मन से उसी के साथ जुड़ेगा.
अगर आप बाहर जॉब कर रही हैं और बच्चे को घरवालों के पास छोड़ा है, तो आपको और भी एहतियात बरतनी होगी. सबसे पहले तो यही प्रयास करें कि मां, बहन, ननद को अपने पास बुला लें. अगर नहीं बुला सकते तो कम से कम जब भी बच्चे से मिलें तो उसे बेवजह डांटे नहीं. वैसे भी जब आप बच्चे को पाल ही नहीं रहे, उसे पल-पल बढ़ते नहीं देख रहे, उसे अपना प्यार नहीं दे रहे तो वो कैसे और क्यूं आपको पहचानेगा. दूर होते हुए भी जब भी आप मिलें तो केवल उसकी गलतियों को बताएं, डांटे-मारे तो ऐसा करके आप बच्चे को खुद से दूर कर रहे हैं. कभी न कभी तो बच्चा आपके पास आयेगा तो कैसे वह आपके साथ दिल से जुड़ पायेगा और अगर आप घरवालों के साथ रहते हैं, तो घरवालों को यह ध्यान रखना होगा कि बच्चे आप पर निर्भर न हों.
वे अपने माता-पिता से जुड़े रहें. घर के सदस्य अनावश्यक प्यार न लुटाएं और माता-पिता अनावश्यक सख्ती न दिखाएं. सभी को एक संतुलन बनाकर चलना होगा. अगर किसी बात पर मां डांटती है, तो परिवारजन को बीच में बोलना नहीं चाहिए. इससे बच्चा मां-पिता को दुश्मन और सपोर्ट करनेवाले को अपना हितैशी समझने लगता है. अगर सदस्यों को कुछ खराब भी लगता है, तो बच्चों के सामने ही उनके पापा-मम्मा से कुछ न कहें. अलग से बात करके उन्हें सुधारा जा सकता है. कोशिश होनी चाहिए कि बच्चे ज्यादा सा ज्यादा माता-पिता के करीब रहें.
बच्चे को संवारने में घर के सभी सदस्यों का योगदान होना चाहिए. अनावश्यक बातों पर माता-पिता को भी बच्चों का डांटने से बचना होगा. आज अगर आप अपने बच्चों को समय नहीं देंगे, प्यार नहीं देंगे, उनकी भावनाओं को नहीं समझेंगे, तो भविष्य में आपका बच्चा आपको भी नहीं समझेगा. आप उसके लिए केवल जन्म देनेवाले बनकर रह जायेंगे. भावनात्मक रूप से वह आपसे दूर हो जायेगा.