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HAPPY HOLI : हर्बल कलर से सेहतमंद हो आपकी होली

होली का नाम आते ही दिमाग में रंग, गुलाल, उमंग, उल्लास, हंसी-ठिठोली, पाक-पकवान का दृश्य उभरता है. साथ ही एक-दूसरे को रंग लगा कर भाईचारा प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति भी झलकती है.इस बार भद्रा के कारण बुधवार की बजाय 24 मार्च को रंगों की होली खेली जायेगी. बाजार में होली के गीतों की भी धूम […]

होली का नाम आते ही दिमाग में रंग, गुलाल, उमंग, उल्लास, हंसी-ठिठोली, पाक-पकवान का दृश्य उभरता है. साथ ही एक-दूसरे को रंग लगा कर भाईचारा प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति भी झलकती है.इस बार भद्रा के कारण बुधवार की बजाय 24 मार्च को रंगों की होली खेली जायेगी. बाजार में होली के गीतों की भी धूम है़ जगह-जगह होली आयी रे कन्हाई…जैसे गीत बज रहे हैं
मगर आजकल जो केमिकलवाले रंगों से होली खेली जाती है, उसका असर सीधे त्वचा पर पड़ता है.त्वचा शरीर का सबसे बड़ा और बाहरी अंग होता है. इन केिमकलवाले रंगों से कई प्रकार के रोग हो सकते हैं. काले रंग में लेड ऑक्साइड होता है, जो रीनल फैट फेल्योर एवं मानसिक अपंगता का कारण बन सकता है. हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है, जो आंखों या त्वचा की एलर्जी, अंधेपन का कारण बन सकता है. बैगनी रंग में क्रोमियम आॅक्साइड होता है, जिससे दमा या त्वचा एलर्जी होती है. लाल रंग में मरकरी होता है, जिससे कैंसर भी हो सकता है. नीले रंग में कोबाल्ट नाइट्रेट होता है, िजससे त्वचा में एलर्जी, कैंसर और दमा हो सकता है. त्वचा में एलर्जी, कॉन्टेक्ट डर्मेटाइटिस, इरिटेंट डर्मेटाइटिस एवं फोटो कॉन्टेक्ट एलर्जी होती है. यह ड्राइ हेयर स्कैल्प एलर्जी व हेयर फॉल बढ़ा सकता है. यह एलर्जी दमा व एक्जिमा के मरीजों में ज्यादा होती है. बुजुर्ग और चीनी रोगी इस समस्या से विशेष परेशान होते हैं. इससे ड्राइ स्किन, इन्फेक्शन आदि हो सकते हैं.
हर्बल कलर से होता है फायदा
अत: हमें होली में केमिकलवाले रंगों की जगह हर्बल रंगों का प्रयोग अधिक करना चाहिए. ये बाजार में भी आसानी से मिल जाते हैं. हालांिक ये थोड़े महंगे होते हैं, लेिकन इनसे त्वचा को बहुत से फायदे भी होते हैं. यानी अगर आप इन रंगों से होली खेलते हैं, तो आपको नुकसान की जगह फायदा होगा. ऐसा इसलिए है क्योंिक ये प्राकृतिक रंगों से तैयार किये जाते हैं.
उन रंगों में प्रयोग होनेवाले प्राकृतिक तत्वों से हम अपनी त्वचा में भी निखार ला सकते हैं. आइए जानते हैं कि इन रंगों से क्या-क्या फायदे हो सकते हैं.
लाल रंग : इस रंग को उड़हुल की पत्ती एवं फूलों से बनाया जाता है. इस कारण यह बालों के लिए भी बहुत ही फायदेमंद है. अगर इस हर्बल कलर से होली खेलते समय इसमें एलोवेरा के रस को मिला लेंगे, तो इससे चेहरे पर होनेवाले एक्ने कम हो सकते हैं. अगर यह ज्यादा देर लगा रह जाये, तो इसके कारण एंटी एिजंग इफेक्ट भी देखने को िमलता है. इसके अलावा घर में आप लाल चंदन पाउडर और पानी, लाल गुलाब की पंखुड़ी एवं पानी, पलाश के फूल से भी लाल रंग बना सकते हैं.
पीला रंग : इसका हर्बल रंग भी आसानी से बाजार में उपलब्ध है. इसे पीले गुलाब, हल्दी व बेसन पाउडर आिद को िमला कर तैयार िकया जाता है. हल्दी को तो हमेशा से ही त्वचा के लिए बेहतर माना जाता रहा है.
सेहतमंद हो आपकी होली
होली में केमिकलवाले रंगों के कारण तो त्वचा को नुकसान होता ही है. इसके अलावा आहार में लापरवाही से कई प्रकार की पेट की समस्याएं हो सकती हैं. इस मौसम में वायरल और बैक्टीरिया के कारण भी रोग होते हैं. इन सबसे बचाव के लिए इस मौसम में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.
हल्दी एंटी सेप्टिक होता है और एक्ने को कम करता है. त्वचा पर पड़नेवाले दाग-धब्बों को भी कम करता है. बाजार में केसर से बननेवाला पीला रंग भी मिलता है, लेकिन यह बहुत महंगा है. इसे घर में बनाने के लिए इसके पत्ते को एक लीटर पानी में डाल कर छोड़ने से पीला रंग बन सकता है. केसर में भी एंटी ऑक्सिडेंट और एंटी एजिंग गुण होते हैं. हालांिक हल्दी की मदद से घर में भी इसे बनाया जा सकता है.
हरा रंग : हरे रंग को कई तरह की पत्तियों जैसे पालक, धनिया, मेथी एवं मूली के पत्तों से तैयार िकया जाता है. इस हर्बल रंग को लोगों को लगाते समय इसमें थोड़ा सा एलोवेरा भी डाल दिया जाये, तो इसमें एंटी ऑक्सिडेंट गुण भी आ जाता है. इसमें एंटी एजिंग गुण भी होते हैं, जिससे त्वचा में निखार आता है.
नारगी रंग : इस हर्बल रंग को टेसू के फूल के पाउडर से तैयार िकया जाता है. भूरे रंग को मेहंदी पाउडर से तैयार िकया जाता है. ये रंग डेड सेल्स को हटा देते हैं, जिससे त्वचा साफ हो जाती है. बैगनी रंग को जामुन से, गुलाबी रंग गुलाब, चुकंदर या अनार के बीजों से बनाया जाता है. इन रंगों से होली खेलने पर त्वचा में एंटी इन्फेक्टिव एवं एंटी एजिंग इफेक्ट आ सकते हैं. इन रंगों में कैलेंडुला मिला िदया जाये, तो त्वचा में जीवाणु का संक्रमण भी कम हो सकता है.
दमा मरीज रखें ख्याल
होली में क्रॉनिक डिजीज जैसे-दमा, सीओपीडी के मरीजों को खास ख्याल की जरूरत होती है. थोड़ी-सी भी असावधानी सेहत पर भारी पड़ सकती है.
सूखे रंगों से होली न खेलें
अस्थमा के मरीजों को सूखे रंगों से होली नहीं खेलनी चाहिए. यह उनके लिए काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है. सूखे रंगों के कण रोगी के शरीर के अंदर जा सकते हैं. ये कण अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं, जिससे अस्थमा का अटैक आ सकता है. इसलिए गुलाल का इस्तेमाल सिर्फ तिलक लगाने के लिए कर सकते हैं.
ठंडई से दूर रहें
होली में लोग जी भर कर ठंडई का मजा लेते हैं, लेकिन दमा के मरीजों को ठंडई का सेवन नहीं करना चाहिए. इसके सेवन से आपको सांस लेने में समस्या हो सकती है. ठंडई में दूध, घी, भांग आदि मिला होता है. इससे भी अस्थमा के अटैक का खतरा होता है.
होता है गैस्ट्रोइंट्राइटिस का खतरा
डॉ डी बराट
पूर्व एचओडी, मेडिसिन आइजीआइएमएस, पटना
इस समय मौसम बदल रहा है. इस कारण इस मौसम में वायरस और बैक्टीरिया आिद बहुत पनपते हैं. इसी मौसम में चेचक, मिजिल्स व मंप्स आदि रोग भी पनपते हैं़ वायरस के कारण गैस्ट्रोइंट्राइटिस की समस्या भी हो सकती है. इससे एकाएक उल्टी, फ्लू आदि समस्याएं हो सकती हैं. इस समय एलर्जीवाले रोग भी उखड़ जाते हैं. इस कारण दमा और एिग्जमा रोग भी बढ़ जाते हैं, अत: लोगों को होली के समय में खास सावधानी बरतनी चाहिए.
खान-पान : इस दिन लोग नॉनवेज अिधक खाते हैं. इस मौसम में मांस-मछली लोग जैसे-तैसे बेचते हैं. यह मांस बासी और बीमार भी हो सकता है. इसलिए मांस लेते समय ही सावधानी बरतनी चािहए. मांस बनाते समय साफ-सफाई का भी खासा ध्यान रखना चाहिए नहीं तो इससे भी उल्टी आदि की समस्या हो सकती है.
इस दौरान लोग नशे का सेवन भी खूब करते हैं. इस समय नकली शराब भी खूब िबकता है. इस कारण इससे भी बचाव करना चाहिए. होली में समस्याओं से बचने के लिए कुछ दवाइयों को हमेशा अपने पास रखना चािहए. सर्दी-खांसी, बुखार हो, तो सिर्फ पारासिटामॉल ले सकते हैं. इसे हमेशा अपने पास रखना चािहए. दस्त हो, तो ओआरएस का घोल लिया जा सकता है. ओआरएस नहीं हो, तो नीबूपानी भी ले सकते हैं. अगर बार-बार उल्टी आये, तो ऐसे में डोमपेरिडॉन टेबलेट ले सकते हैं. अगर इससे कोई राहत न मिले, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चािहए.
क्या बरतें सावधानी
रंगों से खेलते समय आंखों में कॉन्टेक्ट लेंस न पहनें, हर्बल कलर प्रयोग करें. होली खेलने से पहले मॉश्च्यूराइजर जरूर लगा लें. िसर के बालों में पहले से तेल लगा लें. अगर सिर में रंग या गुलाल के चले जाने से जलन हो, तो हाइड्रोकाेरटीसोन का लोशन या कैलेमाइन का लोशन लगा सकते हैं. बालों को बांध कर या कपड़े में लपेट कर भी होली खेल सकते है. रंग हटाने के लिए साबुन का यूज ज्यादा न करें. बेसन, दूध एवं सोयाबीन को लगा कर स्क्रब करें. होली के अगले कुछ दिनों तक फोटो एलर्जी से बचने के लिए सनस्क्रीन का यूज करें. दमा या एिग्जमा के मरीजों को कभी-कभी हर्बल रंगों से भी एलर्जी हो सकती है. ऐसे में एंटी एलर्जी फेक्सो फेनाडाइन की गोली पहले से लेकर होली खेल सकते है.
अपनायें ये घरेलू उपचार
यदि होली में केमिकलयुक्त रंगों का प्रयोग कर चुके होते हैं, तो इन रंगों को छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है. इन रंगों को छुड़ाने से आपकी त्वचा में कुछ समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. इनका प्रभाव न केवल चेहरे पर पड़ता है, बल्कि इसके कारण बाल रुखे और बेजान हो जाते हैं. इसके लिए कुछ घरेलू उपचार अपना सकते हैं.
होली खेलने से पहले : होली खेलने से पहले चेहरे व हाथों पर मॉश्च्यूराइजर व फाउंडेशन लगायें. बालों में जैतून या बादाम तेल लगा लें. बालों की चमक बरकरार रखने के लिए एक चम्मच सिरके को तीन चम्मच तेल में मिला कर बालों में लगाएं
जैतून का तेल : रंगों के कारण यदि बाल रूखे और बेजान हो रहे हैं, तो आधे कप जैतून के तेल में एक अंडे की जरदी मिलायें और उसमें चार छोटा चम्मच शहद मिलायें. बालों पर इस मिश्रण को लगाएं और आधे घंटे बाद धो डालें.
केला और शहद : यदि रंगों के कारण त्वचा में जलन है, तो इससे छुटकारा पाने के लिए आधे केले को मैश करके दो छोटे चम्मच शहद मिला लें. दो छोटे चम्मच मिल्क क्रीम मिला कर इसे कुछ देर के लिए त्वचा पर लगा लें. इससे त्वचा की ड्राइनेस खत्म होगी और आपकी त्वचा काफी हद तक कोमल हो जायेगी.
टमाटर, दही और पपीता : त्वचा को साफ करने के बाद टमाटर की प्यू‍री को 20 मिनट तक चेहरे पर लगा कर रखें. उसके बाद चेहरा धो लें. इससे त्वचा की टैनिन खत्म हो जायेगी. मैश्ड पपीते और दही के पेस्ट को 20 मिनट तक लगाने से भी चेहरे की नमी बनी रहेगी.
साबुन का प्रयोग करें कम : त्वचा को बार-बार साबुन से न धोएं, इससे त्वचा में जलन होगी. रंगों को छुड़ाने के लिए रूई के फाहों से चेहरे पर नारियल का तेल लगायें. रंगों को छुड़ाने के लिए हमेशा ठंडे पानी का प्रयोग करें. नहाने के बाद मॉश्च्यूराइजर लगायें.
ऐसे पायें रंगों से अधिक लाभ
कुछ चीजों को मिला कर इन रंगों से होनेवाले फायदों को और अधिक बढ़ाया जा सकता है. ब्रह्म बूटी के रस को इन रंगों में मिला कर हम एंटी एजिंग इफेक्ट को और बढ़ा सकते है. इसे बोलचाल की भाषा में गोटू कोला भी कहते हैं. इसे नेचुरल बोटॉक्स भी कहा जाता है. यह आंखों के आसपास काले घेरे को भी कम करता है. यदि नीम के पत्ते आस-पास हैं, तो इन्हें पीस कर यदि रंगों में िमला दिया जाये, तो यह त्वचा को इन्फेक्शन से बचाता है.
एिग्जमा के रोगी रखें खास ख्याल : हालांकि ये रंग त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं, परंतु कुछ खास लोगों जैसे-एटोपिक डर्मेटाइटिस, एिग्जमा, दमा के मरीजों को इन रंगों से भी एलर्जी हो सकती है. लेकिन ज्यादातर स्वस्थ लोगों को इन हर्बल रंगों से फायदा ही होता है.
होली का वैज्ञानिक आधार
होली मनाने की शुरुआत का आधार काफी वैज्ञानिक था. ऐसा माना जाता है िक ठंड के कारण लोग कम नहाते हैं. इस समय वातावरण में गरमी बढ़ने लगती है. इससे त्वचा में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ता है. पहले होली फूलों और पत्तियों के रस से मनायी जाती थी. इसके कारण त्वचा के कीटाणु नष्ट हो जाते थे. रंगों को छुड़ाने के लिए लोग त्वचा को रगड़ते थे. इससे डेड स्किन सेल्स उतर जाते थे और त्वचा में निखार आता था.होली का त्योहार ठंड और गरमी के संधिकाल में मनाया जाता है.
मौसम के इस बदलाव के कारण वातावरण और शरीर में बैक्टीरिया की उत्पत्ति बढ़ जाती है, जिसके कारण इस मौसम में कई रोग बढ़ जाते हैं. होलिका दहन में जलायी गयी होलिका से वातावरण का तापमान 140 डिग्री फाॅरेनहाइट तक पहुंच जाता है. विज्ञान के अनुसार, इस तापमान से ऐसे बैक्टीरिया का नाश हो जाता है. इसी कारण जलती हुई होलिका का चक्कर लगाया जाता है, ताकि इस समय संक्रामक रोगों से बचाव हो सके.

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