‘ईरान दूर करेगा पाकिस्तान का अंधेरा’

समीहा नेत्तिकारा, वागीशा बीबीसी मॉनीटरिंग ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की 25 और 26 मार्च को होने वाली पाकिस्तान यात्रा को दोनों पक्ष ऊर्जा, व्यापार और सुरक्षा चिंताओं को सुलझाने के लिए एक बड़े मौक़े के रूप में देख रहे हैं. जनवरी में ईरान पर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंध हटाए जाने के बाद दक्षिण एशिया में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 25, 2016 11:55 AM
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ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की 25 और 26 मार्च को होने वाली पाकिस्तान यात्रा को दोनों पक्ष ऊर्जा, व्यापार और सुरक्षा चिंताओं को सुलझाने के लिए एक बड़े मौक़े के रूप में देख रहे हैं.

जनवरी में ईरान पर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंध हटाए जाने के बाद दक्षिण एशिया में रूहानी की यह पहली यात्रा है. यह यात्रा जनवरी में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की तेहरान यात्रा के ठीक बाद हो रही है.

ऊर्जा संबंध

दोनों पक्षों के लिए ऊर्जा इस यात्रा की सफलता के केंद्र में है.

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पाकिस्तान को उम्मीद है कि ईरान से समझौता करके उसे अपने बिजली संकट के समाधान में मदद मिलेगी.

ईरान का ज़ोर पाकिस्तान के साथ गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट को लागू करने पर रहेगा ताकि वह क्षेत्रीय ऊर्जा सुपरपावर बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा कर सके.

यह पाइपलाइन समझौता वित्तीय दिक्कतों और अंतरराष्ट्रीय, ख़ासकर अमरीकी दबाव की वजह से अटका हुआ था.

व्यापार को गति

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प्रतिबंध हटने को व्यापार बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करना एक और मुख्य मुद्दा है. दोनों देशों को उम्मीद है कि वे नवाज़ शरीफ़ के वर्ष 2004 में रखे गए पांच अरब डॉलर के व्यापार लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बढ़ेंगे.

रूहानी के साथ एक बड़ा व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान यात्रा पर जा रहा है. इस यात्रा में बहुत से व्यापारिक समझौते होने की उम्मीद है जिसमें ग़ैर-प्रतिबंधित सामानों के आयात को बढ़ाना और प्रतिबंधित सामान की सूची की समीक्षा किया जाना शामिल है.

पाकिस्तान के फल और फसलों के साथ ईरानी पेट्रोलियम पदार्थ और प्लास्टिक के आयात को बढ़ाना भी एजेंडा में है.

सीमा से जुड़ी चिंताएं

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दोनों देशों को अपनी आपसी सीमा की सुरक्षा बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि ईरान में सुन्नी चरमपंथी समूहों पर नकेल कसी जा सके, शिया तीर्थयात्रियों से होने वाली हिंसा और सीमा-पार से होने वाले मादक द्रव्यों के व्यापार को रोका जा सके.

पाकिस्तानी अख़बार ‘दुनिया’ के अनुसार दोनों पक्षों की योजना पहला प्रत्यक्ष द्विपक्षीय सैन्य संपर्क शुरू करने और सीमा पर होने वाली घटनाओं पर बात करने के लिए हॉटलाइन स्थापित करने की है.

ईरान, पाकिस्तान पर जैश उल-अद्ल (इंसाफ़ की सेना) और अंसार अल-फ़ुरकान (सिद्धांतों के सहायक) को काबू में करने का दबाव बना सकता है. ये दोनों सुन्नी विद्रोही संगठन हैं जो ईरान में सक्रिय हैं और बचकर भागने के लिए पाकिस्तान की सीमा का इस्तेमाल करते हैं.

क्षेत्रीय जटिलताएं

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प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ इस यात्रा को ईरान के साथ सऊदी अरब के विवादों में मध्यस्थता के मौके के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं.

सऊदी अरब ने इस साल की शुरुआत में विपक्षी शिया विद्वान शेख निम्र अल-निम्र को ईरान में मौत की सज़ा दिए जाने के बाद ईरान से कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए थे.

पाकिस्तान ईरान के नाराज़ होने के डर से सऊदी अरब के साथ चरमपंथ से लड़ने के लिए सैन्य गठबंधन करने की योजना के प्रति पूरी प्रतिबद्धता नहीं जता सका है.

चीन, एक अन्य पक्ष होगा जो इस यात्रा पर नज़र बनाए रखेगा. वह अपनी ‘एक इलाक़ा, एक सड़क’ योजना और आर्थिक परियोजनाओं को बड़े क्षेत्र में फैलाना चाहता है.

पाकिस्तानी अख़बार ‘दि एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के अनुसार, हो सकता है कि पाकिस्तान आधिकारिक रूप से ईरान को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) का हिस्सा बनने का निमंत्रण दे. यह चीन और पाकिस्तान के बीच यातायात और ऊर्जा संपर्क बेहतर बनाने की परियोजना है.

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सीपीईसी के तहत एक चीनी कंपनी को पाकिस्तान में नवाबशाह-ग्वादर पाइपलाइन बिछाने का अनुबंध मिल गया है जो अंततः भारत-पाकिस्तान पाइपलाइन का हिस्सा बनेगी.

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