सऊदी अरब से रिश्तों में इतनी गर्माहट क्यों?

मोहम्मद मुदस्सर क़मर बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों की अपनी यात्रा के अंतिम चरण में शनिवार को वॉशिंगटन से सऊदी अरब पहुंच रहे हैं. उनके इस दो दिवसीय दौरे से पता चलता है कि सऊदी अरब से संबंधों को भारत सरकार कितनी अहमियत दे रही है. लोगों की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 2, 2016 10:25 AM
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भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों की अपनी यात्रा के अंतिम चरण में शनिवार को वॉशिंगटन से सऊदी अरब पहुंच रहे हैं.

उनके इस दो दिवसीय दौरे से पता चलता है कि सऊदी अरब से संबंधों को भारत सरकार कितनी अहमियत दे रही है.

लोगों की निगाह में भारत और सऊदी अरब का रिश्ता तेल और मज़दूरों की कमाई से ज़्यादा नहीं है. भारत में सऊदी अरब को लोग पाकिस्तान के तारणहार और एक कट्टरपंथी इस्लामिक देश के रूप में देखते हैं.

लेकिन अरबों-खरबों के तेल व्यापार, निवेश की चकाचौंध के पीछे भारत और सऊदी अरब के बीच सामरिक पींगें बढ़ रही हैं.

तेल और कारोबार के अलावा भारत और सऊदी अरब ने यूपीए-2 के दौरान सुरक्षा सहयोग पर विचार भी शुरू किया था, जिसकी वजह 2008 के मुंबई हमले के बाद भारत की खाड़ी देशों से गुप्तचर सूचनाएं हासिल करने की इच्छा थी.

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से इस सुरक्षा सहयोग के और मज़बूत होने के संकेत मिल रहे हैं.

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मोदी सरकार का सुरक्षा पर विशेष ध्यान है और यह प्रधानमंत्री की पिछली यूएई यात्रा के दौरान जारी साझा बयान का मुख्य मुद्दा भी था.

इसके दो मुख्य पहलू हैं- पहला तो यह कि भारत स्थानीय कट्टरपंथी सगंठनों को खाड़ी देशों से वित्तीय या अन्य सहयोग रोकना चाहता है. दूसरा, भारत दक्षिण एशिया में पैर पसारने की कोशिश में लगे चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट के इरादे नाकाम करना चाहता है.

खाड़ी देशों से चरमपंथ को वित्तीय मदद का मुद्दा लंबे समय से चल रहा है, लेकिन इसकी संवेदनशीलता की वजह से इसे कम तवज्जो दी गई है. भारतीय सुरक्षा तंत्र, विशेषकर वर्तमान सरकार के तहत, इसे रोकने के लिए एक मज़बूत व्यवस्था बनाने के लिए काम कर रहा है.

यही वजह है कि पिछले कुछ साल में कई ऐसे लोगों को सऊदी अरब, यूएई और कुवैत से प्रत्यर्पित किया गया है, जिनके चरमपंथ में सहयोग देने की आशंका है.

दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 2010 में रियाद यात्रा के दौरान दोनों देशों के सामरिक सहयोग पर चर्चा हुई थी, जिसके बाद तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने 2012 में सऊदी अरब की यात्रा की थी. फिर तत्कालीन सऊदी रक्षा मंत्री (अब शाह) सलमान फरवरी 2014 में भारत आए और रक्षा सहयोग पर एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए.

इससे पहले एक उल्लेखनीय परिवर्तन जून 2012 में आया, जब सऊदी अरब ने मुंबई हमलों के मामले में ज़ैबुद्दीन अंसारी (अबु जुंदाल) को भारत को प्रत्यर्पित कर दिया.

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इससे पहले तक पाकिस्तान भारत के साथ सऊदी अरब के रणनीतिक मामलों में महत्वपूर्ण होता था लेकिन अंसारी के पास पाकिस्तानी पासपोर्ट होने के बावजूद भारत उसे प्रत्यर्पित करवाने में सफल रहा था.

इससे भारत-सऊदी अरब से सुरक्षा सहयोग में परिवर्तन के संकेत मिले. तब से चरमपंथ को वित्तीय सहायता देने और कट्टरपंथी गतिविधियों में शामिल होने के बहुत से अभियुक्तों को सऊदी अरब भारत को प्रत्यर्पित कर चुका है जिनमें ए रईस और फ़सीह मोहम्मद शामिल हैं.

इस्लामिक स्टेट के उदय और किसी बड़े विरोध के बिना उसके सऊदी अरब समेत दुनियाभर में हमलों ने सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है. इसकी मंशा दक्षिण एशिया और विशेषकर भारत में अपनी गतिविधियों का विस्तार करने की है.

दरअसल वैश्विक इस्लामी चरमपंथी संगठनों के भारतीय उपमहाद्वीप में आधार जमाने की कोशिशों का पता तब चला जब सितंबर, 2014 में अलक़ायदा भारतीय उपमहाद्वीप (एक्यूआईएस) में लॉन्च हुआ.

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में सुरक्षा एजेंसियों को इस्लामिक स्टेट के भारत में जिहाद फैलाने के इरादे वाले दस्तावेज़ मिले हैं.

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बांग्लादेश में कुछ तर्कवादियों और धर्मनिरपेक्ष लेखकों पर हमले का श्रेय इस्लामिक स्टेट ने लिया है. भारतीय एजेंसियों ने भी कई युवाओं को पकड़ा है जिन्हें इंटरनेट पर कट्टर बनाया जा रहा था और वो इस्लामिक स्टेट में जाने को तैयार थे.

ज़्यादा चिंता की बात यह है कि यह अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर एक शिविर बना सकता है, जहां से यह भारतीय सीमा के अंदर हमले कर सकता है.

इन वजहों से भारत को सऊदी अरब से गुप्तचर सूचनाएं मांगने और सुरक्षा सहयोग करने पर मजबूर होना पड़ा, ख़ासकर साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में.

भारत के पास कट्टरपंथ फैलाने वाली ऑनलाइन प्रचार सामग्री के मूल स्रोत को जानने लायक तकनीक और विशेषज्ञता है लेकिन अगर इनका स्रोत इन देशों में निकलता है तो उच्चस्तरीय सुरक्षा और गुप्तचर जानकारी साझा किए बिना इसकी जांच संभव नहीं होती.

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सऊदी सरकार को चरमपंथ से मुक़ाबले और कट्टरपंथ से निपटने का कुछ अनुभव है और उसके पास सहयोग करने की वजहें भी हैं. दरअसल सऊदी अरब को लगता है कि खाड़ी क्षेत्र में सुरक्षा और स्थायित्व कायम करने में भारत की भूमिका है.

भारत का सऊदी अरब से सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के इरादों की मज़बूती इससे पता चलती है कि सऊदी में इसका नया राजदूत पुराना कूटनीतिज्ञ नहीं बल्कि एक पुलिसकर्मी रहा है.

भारत-सऊदी अरब व्यापार

  • सऊदी अरब भारत के पांच सबसे बड़े व्यापारिक साझीदारों में एक.
  • 2000 के दशक में द्विपक्षीय व्यापार में लगातार वृद्धि.
  • 2010-11 में 25 अरब अमरीकी डॉलर बढ़कर 2013-14 में 48 अरब डॉलर.
  • 2014-15 में तेल क़ीमतों में कमी के कारण यह 39 अरब डॉलर रह गया.
  • भारत का 20% कच्चे तेल का आयात सऊदी अरब से.
  • भारत के निर्यात का क़रीब 90 फ़ीसदी पैट्रोलियम पदार्थ.
  • 2012 में ईरान के तेल पर प्रतिबंध के बाद सऊदी ने भारत को मदद की.
  • सऊदी अरब में करीब 30 लाख भारतीय श्रमिक.
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