हर कस्टमर के साथ करें अच्छा व्यवहार

दक्षा वैदकर बीते दिनों मैं एक खास तरह का ‘कोट’ शॉप्स में तलाश रही थी. जब भी किसी शॉप में जाती, काउंटर का आदमी पूछता- क्या दिखाएं मैम? मैं कहती कि फलां कोट चाहिए. वह कहता- यहां नहीं है. इतना कह कर वह बैठ जाता और मैगजीन पढ़ने लगता. मैं निकल जाती. यह सोच कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 5, 2016 8:14 AM
दक्षा वैदकर
बीते दिनों मैं एक खास तरह का ‘कोट’ शॉप्स में तलाश रही थी. जब भी किसी शॉप में जाती, काउंटर का आदमी पूछता- क्या दिखाएं मैम? मैं कहती कि फलां कोट चाहिए. वह कहता- यहां नहीं है. इतना कह कर वह बैठ जाता और मैगजीन पढ़ने लगता. मैं निकल जाती. यह सोच कर कि उसे कोट दिखाने में आलस आ रही थी, इसलिए टाल गया. ऐसे अजीबो-गरीब अनुभव लेते हुए मैं एक बड़े शोरूम में गयी. वहां भी काउंटर पर मैंने ‘कोट’ का ब्योरा दिया.
काउंटर के आदमी ने दूसरे कर्मचारी को बुलाया और कहा कि मैडम को कोट चाहिए. इन्हें दिखाओ. वह शोरूम के अंदर ले गया. उसने सोफे पर बिठाया. पानी मंगवाया. चाय-कॉफी का पूछा और कोट के सेक्शन की तरफ दिखाते हुए बोला, क्या आपको जो कोट चाहिए, वह इनमें है? मैंने कहा- नहीं. उसने कहा, मैं जानता हूं कि नहीं है. मुझे पता है कि आप किस तरह का कोट तलाश रही हैं, लेकिन फिर भी मैंने आपका थोड़ा समय ले लिया, वह इसलिए क्योंकि अगर मैं बाहर ही आपको कह देता है कि आपका कोट यहां नहीं है, तो आपको लगता कि मैं काम टाल रहा हूं.
मैं नहीं चाहता था कि आपके सामने शोरूम की ऐसी छवि बने कि यहां लोग कस्टमर को ड्रेस दिखाने में आलस करते हैं. मुझे उस सभ्य कर्मचारी की बात दिल को छू गयी. ऐसे कई शोरूम, ज्वेलरी शॉप्स व छोटी-मोटी दुकानें मैंने देखी हैं, जहां कस्टमर के ब्रांडेड ड्रेस, उनके प्रोडक्ट की मांग को देख कर डिसाइड किया जाता है कि उनके साथ कैसा व्यवहार करना है.
अगर कोई छोटी-मोटी चीज खरीदने आया है, तो उस पर ध्यान नहीं दिया जाता. वहीं कोई महंगा सामान खरीदने आये, तो उसके आगे-पीछे कर्मचारी व मालिक मंडराते हैं. वे भूल जाते हैं कि जो आज रुमाल खरीदने आया है, वह कल लाखों का लहंगा खरीदने भी आ सकता है.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

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