नववर्ष में झारखंड की राजनीति
।। अनुज कुमार सिन्हा ।। नववर्ष की बधाई के साथ एक संकल्प. झारखंड के राजनीतिक दलों के लिए, राजनीतिज्ञों के लिए. चुनौती का वर्ष. देश और झारखंड के भविष्य को तय करने का वर्ष. यह संकल्प लेने का वर्ष कि कैसे झारखंड को एक मजबूत राज्य बना कर भारतीय संघ को मजबूत किया जाये. एक […]
।। अनुज कुमार सिन्हा ।।
नववर्ष की बधाई के साथ एक संकल्प. झारखंड के राजनीतिक दलों के लिए, राजनीतिज्ञों के लिए. चुनौती का वर्ष. देश और झारखंड के भविष्य को तय करने का वर्ष. यह संकल्प लेने का वर्ष कि कैसे झारखंड को एक मजबूत राज्य बना कर भारतीय संघ को मजबूत किया जाये. एक सशक्त देश के लिए आवश्यक है कि उसके राज्य सशक्त हों. देश के विकास में उसका महत्वपूर्ण योगदान हो.
झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर राज्य है. 13 साल में जो कुछ हुआ, अगर उसे ही ढोते रहेंगे, तो आगे झारखंड कुछ नहीं कर सकेगा. गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ने का वर्ष है 2014. इसमें सिर्फ लोकसभा का ही चुनाव नहीं होगा, बल्कि झारखंड विधानसभा का चुनाव साल के अंत में होगा. ऐसे में झारखंड की जनता और राजनीतिक दलों का दायित्व बढ़ जाता है.
झारखंड की राजनीति क्षेत्रीय दलों, निर्दलीयों के चारों-ओर घुमती रही है. 13 साल में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. गंठबंधन की सरकार चलती रही. अभी भी है. छोटे-छोटे दलों और सरकार को समर्थन देनेवाले निर्दलीय विधायकों की ब्लैकमेल की नीति से कोई भी मुख्यमंत्री खुल कर काम नहीं कर सका. विजन का भी अभाव रहा.
नये साल में जब विधानसभा का चुनाव होगा, तो मामला स्थायित्व का होगा. राज्य का कल्याण तभी होगा, जब एक दल की सरकार बने. इस बात को हर दल जानता है. इसलिए भाजपा और जेवीएम के साथ-साथ आजसू भी पूरी ताकत लगा रही है. अभी तक कांग्रेस किसी बड़ी लड़ाई के लिए तैयार नहीं दिखती. आजसू की सभा में जितनी भीड़ आती है, जिस योजनाबद्ध तरीके से आजसू काम करती है, अगर वह वोट में बदल जाये तो उसे अच्छी संख्या में सीट आ सकती है. लेकिन बहुमत के लिए लंबा सफर अभी तय करना होगा.
जेएमएम का अपना एक वोट बैंक है. शिबू सोरेन के नाम पर पार्टी को जो वोट मिलता है, वह तो उसे हर हाल में मिलेगा, पर बहुमत के अंक को छूने के लिए झामुमो को चमत्कार करना होगा. शहरी वोटरों को विश्वास में लेना होगा. बाबूलाल मरांडी ने जिस तेजी से जेवीएम को आगे बढ़ाया था, वह अब थम गयी है. राज्य की जनता की नजर जेवीएम की ओर है. उसे जदयू के रूप में नया साथी मिला है.
बाबूलाल मरांडी को गाड़ी की रफ्तार तेज करनी होगी. राजद का एक खास क्षेत्र में असर है. उससे बहुत आगे जाने का रास्ता नहीं दिखता. झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले लोकसभा का चुनाव होगा. यह भी तय हो जायेगा कि दिल्ली पर किसका कब्जा होता है. अगर चुनाव में एनडीए की सरकार बनती है, तो मोदी लहर का असर भाजपा में दिख सकता है.
इस बात की संभावना है कि विधानसभा चुनाव में आदिवासी या गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री का भी मुद्दा उठे. अगर यह मुद्दा आगे बढ़ता है, तो राज्य में नये समीकरण बन सकते हैं. यह सारा कुछ निर्भर करेगा कि स्थानीयता (जिसके लिए कमेटी बन गयी है) क्या रिपोर्ट देती है. स्थानीयता के मुद्दे पर जेएमएम और जेवीएम के विचार लगभग एक से हैं. ऐसी स्थिति में भाजपा अपना वोट बैंक बचाने के लिए नया कार्ड खेल सकती है. इस बात की बहुत संभावना है कि दिल्ली चुनाव में धूम मचानेवाली आम आदमी पार्टी (आप) झारखंड में उतरे. यह बहुत कुछ निर्भर करेगा कि कौन झारखंड में आप की अगुवाई करता है. अगर सही नेतृत्व मिले, तो आप की झारखंड में सरकार भले ही न बने, पर सारा समीकरण तहस-नहस करने की उसमें क्षमता है.
नये साल में राजनीतिक दल यही संकल्प लें कि राज्य-देश पहले है. झारखंड पर अस्थिरता, भ्रष्टाचार, अविकसित होने के जो आरोप हैं, उसे जल्द से जल्द धोना होगा. नये राजनीतिक समीकरण सामने आ सकते हैं पर राज्य के लिए बेहतर है कि किसी एक दल को जनता बहुमत दे.