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धुन के पक्के थे सर जगदीश चंद्र बोस

आज बात करेंगे भारत के महान वैज्ञानिक सर जगदीशचंद्र बोस की, जिन्होंने पेड़-पौधों में संवेदनाएं होने की बात सिद्ध करके संसार को आश्चर्यचकित कर दिया था. इस महान खोज के अलावा बोस ने वायरलेस तकनीक का प्रयोग करके रेडियो तरंगों के संप्रेषण के क्षेत्र में भी अद्वितीय कार्य किया. उनकी इस खोज को स्वयं बोस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 4, 2014 12:31 PM

आज बात करेंगे भारत के महान वैज्ञानिक सर जगदीशचंद्र बोस की, जिन्होंने पेड़-पौधों में संवेदनाएं होने की बात सिद्ध करके संसार को आश्चर्यचकित कर दिया था. इस महान खोज के अलावा बोस ने वायरलेस तकनीक का प्रयोग करके रेडियो तरंगों के संप्रेषण के क्षेत्र में भी अद्वितीय कार्य किया. उनकी इस खोज को स्वयं बोस और तत्कालीन वैज्ञानिकों ने गंभीरतापूर्वक नहीं लिया और इटली के वैज्ञानिक मारकोनी ने इस विषय पर दो वर्ष बाद की गयी स्वतंत्र खोज के व्यावसायिक खोज का पेटेंट ले लिया.

मारकोनी को रेडियो के आविष्कारक के रूप में मान लिया गया. मारकोनी ने बाद में यह कहा कि उन्हें सर बोस के कार्यो की कुछ जानकारी थी जिसे उन्होंने निरंतर अनुसंधान द्वारा परिष्कृत किया.

कलकत्ता में भौतिकी का अध्ययन करने के बाद बोस इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गये, जहां से स्नातक की उपाधि लेकर वे भारत लौट आये. उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्राध्यापक का पद ग्रहण कर लिया. उन दिनों अंगरेज और भारतीय शिक्षकों के बीच भेदभाव किया जाता था. अंगरेज अध्यापकों की तुलना में भारतीय अध्यापकों को केवल दो-तिहाई वेतन ही मिलता था. बोस अस्थाई पद पर कार्य कर रहे थे, इसलिए उन्हें केवल आधा वेतन ही मिलता था. बोस इससे बहुत क्षुब्ध हुए और उन्होंने यह घोषणा कर दी कि समान कार्य के लिए वे समान वेतन ही स्वीकार करेंगे.

तीन साल तक बोस ने अपना कार्य तो अनवरत करते रहे पर उन्होंने वेतन नहीं लिया. इस कारण उन्हें आर्थिक संकट ङोलना पड़ा. वे कलकत्ता का बढ़िया घर छोड़कर शहर से दूर सस्ता मकान लेकर रहने लगे. कॉलेज आने के लिये वे अपनी पत्नी के साथ रोजाना हुगली नदी में नाव खेकर कलकत्ता आते और जाते थे. अंगरेजों अधिकारियों को सोच रहे थी कि आर्थिक तंगी के कारण बोस झुक जायेंगे और आधी सैलरी पर ही मान जायेंगे, पर जगदीश चंद्र बोस धुन के पक्के और निडर इंसान थे. वे अपने हक की लड़ाई को बड़े ही शांती पूर्वक लड़ते रहे. अंतत: अंगरेजों को झुकना ही पड़ा और बोस को अंगरेज अध्यापकों के बराबर वेतन देना स्वीकार करना पड़ा.

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