क्या है लंबी उम्र का राज?

जीते रहो दुनियाभर के वैज्ञानिक तलाश रहे उम्र बढ़ाने का नुस्खा इस नश्वर संसार में जो आता है, उसका जाना निश्चित है. फिर भी हम मृत्यु से डरते हैं और लंबे समय तक जीना चाहते हैं. वैज्ञानिक भी हमारी इस ख्वाहिश को पूरा करने में जी-जान से जुटे हैं. कभी अध्ययनों के जरिये, तो कभी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 15, 2016 7:29 AM
जीते रहो दुनियाभर के वैज्ञानिक तलाश रहे उम्र बढ़ाने का नुस्खा
इस नश्वर संसार में जो आता है, उसका जाना निश्चित है. फिर भी हम मृत्यु से डरते हैं और लंबे समय तक जीना चाहते हैं. वैज्ञानिक भी हमारी इस ख्वाहिश को पूरा करने में जी-जान से जुटे हैं. कभी अध्ययनों के जरिये, तो कभी नयी दवाओं में लंबी उम्र के नुस्खे तलाशते हैं. यह कोशिश सफल भी हुई है. बीते कुछ दशकों में इनसान की औसत उम्र 30 वर्षों तक बढ़ायी जा चुकी है. ऐसे में उम्र बढ़ाने के लिए क्या हैं वैज्ञानिकों के तर्क और क्या हैं इसके मायने. आइए, जानें.
वैज्ञानिक वर्षों से अध्ययन कर रहे हैं कि आखिर वह क्या है, जो इनसान को सौ साल से भी लंबी उम्र देती है. वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में सौ साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं और पुरुषों पर कई वर्षों तक सर्वेक्षण और अध्ययन किया. पिछले दिनों स्टैंफोर्ड यूनिवर्सिटी में डेवेलपमेंट बायोलॉजी और जेनेटिक्स के प्रोफेसर स्टुअर्ट किम की टीम ने एक अध्ययन में पता लगाया कि सौ वर्ष से ज्यादा उम्र तक जीनेवाले लोगों में मौजूद जीन अलग-अलग होते हैं. लंबी उम्र जीने के लिए कोई खास जीन नहीं, बल्कि पीढ़ियों की संरचना खास भूमिका निभाती है.
पिछले दिनों यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक अध्ययन में यह बात सामने आयी कि प्रोटीन का एक अणु ‘जीएसके-3’ हमारी जिंदगी को कम करता है.
साथ ही सुझाव दिया गया कि इस प्रोटीन पर नियंत्रण कर उम्र बढ़ायी जा सकती है. जीव विज्ञानी डॉ जॉर्ज इवान की टीम ने अध्ययन में फलों पर बैठनेवाली छोटी मक्खियों पर प्रयोग किया. उनमें जीएसके-3 प्रोटीन पाया जाता है, जिसे लीथियम के लो-लेवल का इस्तेमाल कर रोका गया. माना जा रहा है कि इस दवा से उनकी उम्र में 16 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इससे उम्मीद जगी है कि लीथियम या ऐसी अन्य दवाओं को गोलियों के रूप में लेने से इनसान की उम्र बढ़ायी जा सकती है. डॉ जॉर्ज कहते हैं कि इस टैबलेट को बनाने में ध्यान रखना होगा कि साइड-इफेक्ट कम-से-कम हो. साथ ही इस दवा से अल्जाइमर्स, डायबिटीज, कैंसर और पर्किंसंस से भी निबटने में मदद मिलेगी. डॉ जॉर्ज की मानें तो जीएसके-3 से संबंधित उम्र बढ़ानेवाली दवा इनसान की उम्र 10 साल तक बढ़ा देगी.
वहीं दूसरी ओर, अमेरिका की पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 50 से 70 वर्ष की उम्र के तीन
हजार लोगों पर अध्ययन कर पता लगाया कि सबसे अधिक और मध्यम रूप से सक्रिय लोगों की तुलना में गतिहीन लोगों की मृत्यु की आशंका पांच फीसदी ज्यादा होती है़ इस शोध के लिए प्रतिभागियों को एक्सीलेरोमीटर्स पहनाये गये थे. शोध के मुख्य वैज्ञानिक एजरा फिशमैन के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति जितनी देर व्यायाम करता है, उतने ही समय में अगर कोई व्यक्ति चलता-फिरता है, तो वह अधिक समय तक जीवित रहता है. स्पष्ट है कि एक ही मात्रा में व्यायाम और चहलकदमी बराबर फायदा देते हैं. फिशमैन के अनुसार, चहलकदमी, कपड़े-बरतन धोना और सफाई जैसे काम करनेवाले व्यक्ति की आलसी जीवन जीनेवाले व्यक्तियों की तुलना में लंबी उम्र होने की अधिक संभावना होती है.
यानी, दिन भर में 30 मिनट की शारीरिक गतिविधियां बेहतर नतीजे दे सकती हैं.इसके अलावा, खाने-पीने का भी अपना महत्व है़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पता लगाया है कि कैफीन युक्त या कैफीन रहित, दोनों तरह की कॉफी पीने के कई फायदे हैं. इससे दिल के रोगों, मस्तिष्क संबंधी रोगों, टाइप टू डायबिटीज और आत्महत्या का खतरा भी कम हो सकता है. शोधकर्ता मिंग डिंग के मुताबिक, कॉफी में मौजूद बायोएक्टिव यौगिक इंसुलिन प्रतिरोध और प्रणालीगत सूजन कम करते हैं.
कॉफी पीने के प्रभाव को मान्य भोजन प्रश्नावली के जरिये हर चार वर्ष के अंतराल में 30 वर्षों तक जांच-परख कर तैयार किये गये नतीजों में यह बात सामने आयी. इस बारे में पोषण और महामारी विज्ञान के प्रोफेसर फ्रैंक ह्यु के मुताबिक, यह शोध प्रमाणित करता है कि सीमित कॉफी सेवन कई बीमारियों के कारण होनेवाली समय पूर्व मौत के खतरे को कम कर सकता है.
एक अन्य अध्ययन यह बताता है कि जो महिलाएं अधिक बच्चों को जन्म देती हैं, उनके टेलोमेयर्स लंबे होते हैं, जो कोशिकाओं की लंबी उम्र को दर्शाते हैं. टेलोमेयर्स डीएनए के आखिर में पाये जाते हैं. इस शोध में 75 महिलाओं को शामिल किया गया. शोध के दौरान सभी प्रतिभागियों के टेलोमेयर्स की लंबाई, राल (थूक) के नमूनों और माउथ (मुख) स्वैब की सहायता से दो बार मापी गयी. साइमन फ्रेसर यूनिवर्सिटी के स्वास्थ्य विज्ञान के प्रोफेसर पाब्लो नेपोमैंशी के अनुसार, ये निष्कर्ष जीवन इतिहास के उन सिद्धांतों का खंडन करते हैं, जो बताते हैं कि बच्चों को जन्म देने की संख्या जैविक बुढ़ापे की गति को बढ़ाती है.
(इनपुट: टाइम मैगजीन)

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