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आखिर किधर जा रहा है समाज?
चिंता : शहरों में सबसे ज्यादा गर्भपात 20 वर्ष से कम आयुवर्ग की लड़कियों में मां बनना शायद दुनिया की सबसे अद्भुत नैसर्गिक प्रक्रिया है, साथ में सबसे सुखद एहसास भी. जन्म देने का जिम्मा प्रकृति ने एक औरत को शायद इसीलिए दिया है, िक इस काम के लिए जो साहस और कोमलता चाहिए, वह […]
चिंता : शहरों में सबसे ज्यादा गर्भपात 20 वर्ष से कम आयुवर्ग की लड़कियों में
मां बनना शायद दुनिया की सबसे अद्भुत नैसर्गिक प्रक्रिया है, साथ में सबसे सुखद एहसास भी. जन्म देने का जिम्मा प्रकृति ने एक औरत को शायद इसीलिए दिया है, िक इस काम के लिए जो साहस और कोमलता चाहिए, वह सिर्फ औरत में ही हो सकती है. तमाम कष्टों के बावजूद एक औरत को सबसे ज्यादा खुशी मां बनने पर मिलती है. लेकिन, मां बनने की सही उम्र क्या हो?
जिस देश के कानून में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष हो, वहां के शहरों में यदि गर्भपात करानेवाली महिलाओं में 20 साल से कम आयुवर्ग की लड़कियां ही सबसे अधिक (करीब 14 फीसदी) हों, तो यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है? क्या यह समाज में बढ़ते खुलेपन की निशानी है या पतन की ओर जाने का संकेत? क्या तकनीक और ज्ञान के मौजूदा युग में युवाओं में यौन शिक्षा और जागरूकता की जरूरत बढ़ गयी है? गर्भपात को लेकर नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) के हालिया आंकड़ों के बरक्स उठते अहम सवालों पर विशेषज्ञों का नजरिया पेश कर रहा है आज का संडे इश्यू.
भारत के शहरों में गर्भपात करानेवालों में सबसे अधिक प्रतिशत 20 वर्ष से कम आयुवर्ग की लड़कियों का है. यह चौंकानेवाला आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) की पिछले दिनों जारी सर्वे रिपोर्ट में सामने आया है.
देश के ग्रामीण इलाकों में गर्भ धारण करनेवाली दो फीसदी महिलाएं विभिन्न कारणों से गर्भपात करा रही हैं, जबकि शहरी इलाकों में गर्भपात करानेवालों का प्रतिशत तीन है. लेकिन चिंताजनक तथ्य यह है कि शहरी इलाकों में कुल गर्भपात में 20 वर्ष से कम आयुवर्ग की लड़कियों की हिस्सेदारी सबसे अधिक (करीब 14 प्रतिशत) है. सर्वे में कहा गया है कि शहरों में कम उम्र की लड़कियों के अधिक गर्भपात का एक कारण गर्भपात केंद्रों की सुलभता भी है.
‘भारत में स्वास्थ्य’ शीर्षक यह रिपोर्ट एनएसएसओ द्वारा जनवरी से जून, 2014 के दौरान सर्वे में देश भर के 65,932 परिवारों (36,480 ग्रामीण एवं 2,952 शहरी) पर हुए सर्वे से प्राप्त सूचनाओं पर अाधारित है. सर्वे में 15 से 49 आयुवर्ग की 20 हजार से अधिक गर्भवती महिलाएं भी शामिल हुईं. सर्वे में एक यह तथ्य भी सामने आया कि छत्तीसगढ़ (44 फीसदी), बिहार (30 फीसदी), उत्तर प्रदेश (29 फीसदी) और झारखंड (26 फीसदी) जैसे पिछड़े राज्यों में आज भी बड़ी संख्या में शिशु जन्म अस्पतालों की बजाय घरों में ही हो रहा है.
जरूरी है यौन शिक्षा और सुरक्षित गर्भपात की योजना
जशोधरा दासगुप्ता
कन्वीनर, हेल्थ वॉच फोरम, उत्तर प्रदेश
साल 2008 के आसपास भारत के छह राज्यों- आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु- में एक अध्ययन किया गया, जिसमें 15 से 24 साल के करीब 50 हजार लड़के-लड़कियों को शामिल किया गया था. इनमें शादीशुदा और गैरशादीशुदा दोनों थे. इस अध्ययन में पाया गया कि देश में, चाहे ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी क्षेत्र, चाहे पढ़े-लिखे हों या अनपढ़ हों, हमारे युवा शादी से पहले यौन-संबंध बनाने लगे हैं.
अध्ययन में 42 प्रतिशत पुरुषों और 26 प्रतिशत महिलाओं ने शादी से पहले यौन संबंधों को स्वीकारा था. शादी से पहले संबंध बनानेवाले 85 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें किसी प्रकार की यौन-शिक्षा या गर्भ-निरोधक की जानकारियां या सूचनाएं नहीं मिली थीं. यही वजह है कि बहुतों ने असुरक्षित यौन-संबंधों को अंजाम दिया. यहां तक कि पहली बार के संबंध में भी लड़की गर्भधारण कर सकती है, इसकी भी जानकारी न तो ज्यादातर लड़कियों को थी, न ही लड़के को.
यानी बहुत ही बेसिक सूचनाएं हम अपनी युवा पीढ़ी को नहीं दे पा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनजाने में गैरइरादतन गर्भधारण की प्रक्रिया चलती रहती है, जिसकी परिणति अंतत: गर्भपात के रूप में होती है. उपरोक्त अध्ययन के तथ्य और आंकड़े ग्रामीण और शहरी भारत के बीच फर्क को भी झुठलाते हैं. यह बड़ी विडंबना है कि सामाजिक परंपराओं और मूल्यों के चलते हम इन तथ्यों की अनदेखी कर रहे हैं. ऐसे में एनएसएसओ की हालिया रिपोर्ट में गर्भपात के अांकड़े चौंकानेवाले नहीं लगते, क्योंकि वर्षों से हमारा समाज इन तथ्यों की अनदेखी करता आ रहा है.
दवाओं की खुली बिक्री
उसी अध्ययन के मुताबिक, शादी से पहले यौन-संबंध रखनेवाली महिलाओं में से 18 प्रतिशत ने बताया था कि उसके साथ शादी से पहले जबरदस्ती संबंध बनाये गये थे. अमूमन प्यार-मोहब्बत में भी दबाव बनाये जाते हैं कि अब तो शादी करनी ही है, तो संबंध बना ही लेते हैं.
कई मामलों में लड़कियों के साथ जबरदस्ती भी होती है, और जबरन संबंधों में इतनी छूट कहां होती है कि कोई कह सके या कोई सोच सके कि कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए. इस तरह भी कम उम्र में गर्भपात प्रतिशत अधिक होता है. बच्चों को यौन-शिक्षा नहीं मिल पा रही है, तो असुरक्षित यौन-संबंध ज्यादा बन रहे हैं और अनचाहा गर्भधारण के बाद हमारी लड़कियां गर्भपात जैसी स्थिति से गुजर रही हैं. यही वजह है कि वे ऐसे आंकड़ों का हिस्सा बन रही हैं, जो आज हमें चौंकानेवाले लगते हैं.
एक साधारण सी समझ होती है कि शहरों में तमाम स्वास्थ्य सुविधाआें के चलते शहरी महिलाएं आसानी से गर्भपात करा लेती हैं, जबकि गांवों के साथ ऐसा नहीं है. लेकिन मैं ऐसा नहीं मानती. हमने अपने अध्ययन में पाया है कि चाहे वह शहरी भारत हो या ग्रामीण भारत, हर जगह आज दवा की दुकानों में गर्भपात की दवाइयां आसानी से उपलब्ध हैं.
अगर हम यह समझते हैं कि लड़कियां सिर्फ डॉक्टर के पास जाकर ही गर्भ गिरा रही हैं, तो शायद हम इस हकीकत को नहीं पहचान पा रहे हैं कि हमारे यहां दवा की दुकानों में गर्भपात की दवाइयां बेचने को लेकर कोई नियंत्रण नहीं है. कोई भी लड़की सिर्फ दवा का नाम लेकर मेडिकल स्टोर पर जाती है और उसे वह दवा तुरंत दे दी जाती है, बगैर यह पूछे कि उस दवा विशेष को वह क्यों लेना चाहती है. ऐसी परिस्थिति में गर्भपात का सटीक आंकड़ा कहां से मिल सकता है?
सोच की विडंबना
हाल के वर्षों में देश-दुनिया के साथ-साथ हमारे समाज में भी खुलापन आया है और लड़कियों ने पारंपरिक बंधनों को तोड़ कर नये-नये मुकाम हासिल करना शुरू किया है. यह अच्छी बात है. हालांकि, आज भी 14-15-16 साल की लड़कियों की पढ़ाई बंद करके शादी की जा रही है.
इतनी छोटी उम्र में शादी और तुरंत यौन-संबंध का बनना उनके शरीर के लिए बहुत घातक होता है. ऐसे मामलों में अक्सर गर्भपात की स्थिति बन जाती है. विडंबना यह है कि कम उम्र में लड़कियों की शादी और इसके बाद मैरिटल रेप से हमारे समाज को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन अगर कोई लड़की बीस साल से ऊपर की है, अपनी पढ़ाई पूरी कर रही है और अपनी स्वेच्छा से यौन-संबंध रखती है, तो समाज को पारंपरिक मूल्यों का ख्याल आने लगता है. इसलिए मुझे लगता है कि पहले हमें अपने माइंडसेट को स्पष्ट करना पड़ेगा कि आखिर हमें आपत्ति किन-किन चीजों से है.
हाल के वर्षों में जागरूकता बढ़ी है और अब बहुत सी लड़कियां भी 25-26 या इसके भी बाद शादी करने की सोच रही हैं. लड़कों की तरह वे भी पहले अपना कैरियर बना रही हैं. अब अगर हम शादी की उम्र को पहले के मुकाबले 8-10 साल आगे बढ़ा रहे हैं, तो यह कैसे अनुमान लगाया जाये कि कुंवारों की कोई यौन-इच्छा नहीं होगी और उनके यौन-संबंध बिल्कुल भी नहीं बनेंगे. इन संबंधों में कहीं कोई चूक हुई तो गर्भपात की स्थिति तो आयेगी ही. इसलिए हमारे समाज को चाहिए कि जब वह परंपरा की बात करे, तो उसके साथ व्यवहारिक पक्षों के बारे में भी सोचे.
यौन शिक्षा है समाधान
इस मसले का एक ही हल है- यौन-शिक्षा (सेक्स एजुकेशन). यौन-शिक्षा सिर्फ स्कूल में ही नहीं, समाज में भी दी जानी चाहिए. बच्चों को सुरक्षित यौन-संबंध के बारे में पूरी जानकारी देने की जरूरत है. दूसरी बात यह है कि कंडोम को हमने सिर्फ एड्स की बीमारी से जोड़ रखा है.
कंडोम की इस छवि को बदलने की जरूरत है. तीसरी बात यह है कि हमारा स्वास्थ्य विभाग इस मामले में सिवाय नसबंदी के, अन्य सुविधाओं की पहल नहीं करता. अब नसबंदी तो शादीशुदा लोगों की ही होगी. यानी स्वास्थ्य विभाग के पास शादीशुदा लोगों के लिए तो याेजनाएं हैं, गैर-शादीशुदा युवा पीढ़ी के लिए कोई योजना नहीं हैं, जहां असुरक्षित यौन-संबंधों का खतरा सबसे ज्यादा है, जिसका परिणाम अधिक गर्भपात के रूप में सामने आ रहा है. स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वह सुरक्षित गर्भपात के बारे में सोचे, ताकि अगर किसी लड़की का अनचाहा गर्भ हो, तो वह जैसे-तैसे गोलियां खाकर उसे खत्म न करे.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
समाज के सामने चुनौती है बाल विवाह रोकना
रंजना कुमारी
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च
गर्भपात के ऐसे आंकड़े भविष्य में न आयें, इसके लिए सरकार का और हमारे समाज का सबसे बड़ा कदम यह होना चाहिए कि बाल-विवाह को रोका जाये. आजादी के इतने साल बाद और इतनी आधुनिकता के बाद भी हम बच्चियों की जिंदगी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर पा रहे हैं. यह किसी एक धर्म-मजहब की बात नहीं है, बल्कि ऐसी कुरीति हर धर्म में विद्यमान है. इसके लिए यौन-शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रचार की जरूरत है.
शहरी क्षेत्रों में 20 साल से कम उम्र की लड़कियों में सर्वाधिक गर्भपात (एबॉर्शन) के एनएसएसओ के आंकड़े एक बड़ी चिंता का विषय हैं. ये आंकड़े यह भी बताते हैं कि गर्भपात करानेवाली लड़कियों में शादीशुदा लड़कियां ज्यादा हैं, कुंवारी कम. ऐसे आंकड़े शहरी क्षेत्र में इसलिए ज्यादा हैं, क्योंकि शहरों में अस्पतालों और डॉक्टरों से गर्भपात की जानकारियां आसानी से मिल जाती हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी जानकारियां मिलनी थोड़ी मुश्किल होती है.
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे या जनगणना के आंकड़े देखें तो हम पाते हैं कि भारत में आज भी 90 फीसदी लड़कियों की शादी 20 साल से कम उम्र में ही की जा रही है, जिनमें 47 प्रतिशत बाल-विवाह (चाइल्ड मैरिज) होता है, जहां बच्चियों की उम्र 14 साल से भी कम होती है. हमारे देश में गर्भपात का सबसे बड़ा कारण कम उम्र में लड़कियों की शादी है. ऐसी ज्यादातर शादियां जबरन होती हैं, जिसमें लड़की के पास हां या ना कहने की अपनी कोई च्वॉइस नहीं होती.
इस उम्र में उनका शरीर मां बनने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होता है. कम उम्र में अगर गर्भ ठहर गया, तो लड़कियों का शरीर उसे सहन नहीं कर पाता और कभी-कभी बच्चा एबॉर्ट (गर्भ का गिरना) हो जाता है. वहीं कई मामलों में बच्चे के जन्म के समय मां की मृत्यु तक हो जाती है. बच्चा जनते समय माताओं की मृत्यु के मामले में आज भी हमारा देश दुनिया में काफी पिछड़ा है. कुछ लोगों में थोड़ी समझदारी आ जाती है, तो वे समय रहते उसका एबॉर्शन करा देते हैं, क्योंकि एबॉर्शन ही रास्ता बचता है मां की जान बचाने का. इसके अलावा असुरक्षित यौन-संबंधों के चलते भी कुछ लड़कियां प्रेग्नेंट हो जाती हैं, जिन्हें एबॉर्शन से गुजरना पड़ता है.
गर्भपात के ऐसे आंकड़े भविष्य में न आयें, इसके लिए सरकार का और हमारे समाज का सबसे बड़ा कदम यह होना चाहिए कि बाल-विवाह को रोका जाये. समाज के सामने बाल विवाह एक बड़ी चुनौती है.
आजादी के इतने साल बाद और इतनी आधुनिकता के बाद भी हम बच्चियों की जिंदगी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर पा रहे हैं. यह किसी एक धर्म-मजहब की बात नहीं है, बल्कि ऐसी कुरीति हर धर्म में विद्यमान है. इसके लिए देशभर में यौन-शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रचार की जरूरत है, क्योंकि पहली गलती होती है कम उम्र में शादी, दूसरी है गर्भधारण और फिर तीसरी है उस स्थिति को न रोक पाने की समझ. ये तीनों गलतियां न हों, इसके लिए यौन-शिक्षा बहुत जरूरी है.
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