प्रकृति और हमारी प्रवृत्ति
विजय शर्मा कहानीकार सारी दुनिया में प्रकृति के दोहन की होड़ लगी हुई है. मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए पर्यावरण का इतना शोषण किया है कि अब प्रकृति भी उसके विरुद्ध हो गयी है. आज धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में केवल अर्थ से जीवन संचालित हो रहा है. बाकी तीन भी अधिकांश लोगों के […]
विजय शर्मा
कहानीकार
सारी दुनिया में प्रकृति के दोहन की होड़ लगी हुई है. मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए पर्यावरण का इतना शोषण किया है कि अब प्रकृति भी उसके विरुद्ध हो गयी है. आज धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में केवल अर्थ से जीवन संचालित हो रहा है. बाकी तीन भी अधिकांश लोगों के लिए मात्र अर्थलाभ के साधन रह गये हैं. अगर आदमी ने अपनी वृत्ति न बदली तो वह आनेवाली पीढ़ियों (अगर पीढ़ियां हुईं तो!) का गुनहगार होगा. आदमी कई वृत्तियों से जीवनयापन कर सकता है. अंगारक वृत्ति में आप प्रकृति से अपने काम की चीज लेते हैं और बदले में प्रकृति को कुछ देते नहीं हैं.
उसे सदा के लिए नष्ट कर देते हैं. जैसे लकड़हारा करता है. वह जंगल से लकड़ी काटता है और यह लकड़ी जलावन के लिए प्रयोग की जाती है और जल कर राख हो जाती है, धीरे-धीरे पूरा जंगल नष्ट हो जाता है. दूसरी मालाकार वृत्ति है. माली केवल फूल चुनता है, माला बनाता है, पेड़-पौधों को नष्ट नहीं करता है, पेड़-पौधे फल-फूल देते रहते हैं, दोनों का काम चलता रहता है. लेकिन एक तीसरी वृत्ति है, जिसमें मनुष्य प्रकृति से लेता है तो उसे बहुत कुछ देता भी है. यह संबंध कहलाता है मधुकरी वृत्ति.
मधुकर यानी भौंरा फूलों से मधु यानी शहद एकत्र करता है, बदले में परागण करता है. वह पेड़-पौधों से कुछ लेता है तो एवज में पराग का वितरण कर प्रकृति को समृद्ध करता है. प्रजनन में सहायता करता है. मधुकर वृत्ति प्रकृति और मनुष्य दोनों के लिए कल्याणकारी है. जितना प्रकृति से अपने लिए ग्रहण करें, बदले में उसे और अधिक दें. इसी वृत्ति से पृथ्वी का भविष्य सुरक्षित रह सकता है, हमारी अगली पीढ़ियां सुरक्षित रह सकती हैं.
मनुष्य ने जल, जमीन, वायु किसी को नहीं छोड़ा है, सबको प्रदूषित कर डाला है. इस प्रदूषण का खामियाजा अक्सर निम्न तबके के लोगों को भुगतना पड़ता है. आम जनता इसका शिकार होती है. जितना बड़ा देश, जितनी बड़ी कंपनी, उतना अधिक प्रदूषण. तमाम समिट, सेमिनार होते हैं, तमाम जांच कमेटियां बैठायी जाती हैं, मगर परिणाम शून्य. जब मौका लगता है, दबंग देश कमजोर देशों को पर्यावरण संरक्षण की नसीहतें देते हैं और खुद पर लगाम लगाने की बात नहीं सोचते हैं.
जमशेदपुर के कवि डॉ आशुतोष को शहर उजड़ने की चिंता है. साहित्यकार सत्यनारायण पटेल का पहला उपन्यास “गांव भीतर गांव” हाशिये के लोगों, स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार और उससे उबरने के संघर्ष को केंद्र में लाता है. इसी वर्ष इटली के साहित्यकार अम्बर्टो इको का देहांत हो गया है, ऐसे बौद्धिक लोग सदियों में एकाध पैदा होते हैं.