चीन से आगे, अमरीका के बराबर है ‘नाविक’
पल्लव बागला विज्ञान मामलों के जानकार भारत ने गुरुवार को पोलर सैटेलाइट लॉंच व्हीकल से अपने सातवें नैविगेशन सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया है. इसके साथ ही भारत का नैविगेशन सैटेलाइट समूह पूरा हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सैटेलाइट सिस्टम को नाविक का नाम दिया है. नाविक यानि कि […]
भारत ने गुरुवार को पोलर सैटेलाइट लॉंच व्हीकल से अपने सातवें नैविगेशन सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया है.
इसके साथ ही भारत का नैविगेशन सैटेलाइट समूह पूरा हो गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सैटेलाइट सिस्टम को नाविक का नाम दिया है. नाविक यानि कि नैविगेशन इंडियन कॉन्स्टेलशन.
यह अमरीकी जीपीएस की ही तरह है. लेकिन जो आपके-हमारे मोबाइल फ़ोनों में अमरीकी जीपीएस दिखता है वह अमरीका के नियंत्रण में है.
क़ानूनन भारत युद्ध के समय इसे इस्तेमाल नहीं कर सकता. इसके अलावा इसमें एक अनंतर्निहित अशुद्धता होती है. इसीलिए भारत को अपना एक सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम तैयार करना पड़ा.
उपलब्धि यह है कि तीन साल के अंदर भारत ने इन सभी सात सैटेलाइट को लॉंच किया.
आने वाले समय में हर स्मार्टफ़ोन पर इसका सिग्नल मिलेगा. चूंकि यह सैटेलाइट भारत के ऊपर स्थित है इसलिए भारत में इसकी सटीकता अमरीकी सिस्टम से ज़्यादा बताई जा रही है.
इस वजह से यह चाहे स्मार्टफ़ोन में इस्तेमाल किया जाए या गाड़ी में यह ज़्यादा उपयोगी होगा – यह आपकी स्थिति और रास्ते को ज़्यादा सटीकता के साथ बताएगा.
युद्ध के समय इस सिस्टम से हथियारों को सटीकता से संचालित करना और लक्ष्य पर पहुंचाना आसान हो जाता है.
दरअसल किसी भी दूसरे देश पर आप पूरी तरह भरोसा नहीं कर सकते, वह जब चाहे इसे बंद कर सकता है या आपको इसे इस्तेमाल करने से रोक सकता है.
इसके अलावा जीपीएस जैसे सिस्टम को क़ानूनन आप युद्ध के समय इस्तेमाल नहीं कर सकते. इसलिए भारत को एक ऐसा सिस्टम चाहिए था जिस पर पूरा नियंत्रण इसका हो.
इसरो का मानना है कि भारत के यह सिस्टम 20 मीटर से भी कम की सटीकता हासिल करता है. भारत ऐसा करने वाला तीसरा देश बन गया है. इससे पहले अमरीकी जीपीएस, रूसी ग्लोनास सिस्टम काफ़ी कारगर साबित हुए हैं.
लेकिन चीनी नैविगेशन सिस्टम बीडाउ और यूरोपीय यूनियन का गैलीलियो अभी पूरी तरह कारगर नहीं हैं.
भारत का यह नैविगेशन सिस्टम भारत से 1500 किलोमीटर दूर तक नज़र रख सकता है. इसके दायरे में पूरा दक्षिण एशिया आ जाता है.
प्रधानमंत्री ने ऐलान किया है कि इसे पड़ोसी देशों को भी उपलब्ध करवाया जाएगा. हालांकि अभी यह साफ़ नहीं है कि उन्हें इसके लिए भुगतान करना होगा या इसकी शर्तें क्या होंगी.
(बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी से बातचीत पर आधारित)
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