अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान से अनाधिकारिक रूप से जुड़ी एक वेबसाइट ने दावा किया है कि इस चरमपंथी समूह के अंदरूनी मतभेद ख़त्म हो गए हैं और लगभग सभी कमांडरों ने मुल्ला अख़्तर मंसूर को अपना नया नेता स्वीकार कर लिया है.
इस वेबसाइट पर जारी बयान तालिबान से अलग हुए एक धड़े और पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में उभरे एक प्रतिद्वंद्वी इस्लामिक स्टेट ग्रुप के लिए झटका माना जा रहा है. पिछले साल जुलाई में तालिबान के नेतृत्व में तब फूट पड़ गई थी जब पता चला कि समूह के संस्थापक मुल्ला उमर सालों पहले मर गए हैं.
इस्लामिक स्टेट के उभार से तालिबान की समस्याएं और बढ़ गईं क्योंकि कई छितरे हुए इस्लामिक गुटों ने अप्रभावी तालिबान के बीच भर्ती शुरू कर दी थी. हालिया घटनाओं से गुट के अंदर उल्लेखनीय मतभेद समाप्त हो सकते हैं, जिससे चरमपंथी समूह के नए नेता मजबूत होंगे- जंग में भी और शांति काल में भी.
पूर्वी क्षेत्र में अमरीका-अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक स्टेट पर हवाई हमलों से तालिबान को उल्लेखनीय रूप से फ़ायदा हुआ है और इससे मंसूर को अंदरूनी विरोध को दबाने का मौक़ा मिल गया.
अमरीकी-अफ़गानी सेनाओं के हवाई हमलों ने इस्लामिक स्टेट की बढ़त को पीछे धकेला तो मंसूर ने दक्षिण में मुल्ला मोहम्मद रसूल के नेतृत्व में अलग हो रहे मुख्य गुट को कुचल दिया.
कहा जा रहा था कि मार्च में पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के अपने प्रमुख गढ़ शिंदांद पर हमले के बाद वहां से भागे रसूल को पाकिस्तान में गिरफ़्तार कर लिया गया था. लेकिन तालिबान मीडिया ने उनकी गिरफ़्तारी, समूह के पाकिस्तान के हथियार की छवि और पाकिस्तान की विद्रोही नेताओं और धड़ों को अपने हिसाब से इस्तेमाल करने की क्षमता की ख़बरों को दबाकर रखा.
मंसूर को तालिबान पर नज़र रखने वाले अक्सर पाकिस्तान की पसंद के रूप में देखते हैं. 12 अप्रैल को वेबसाइट ने लिखा कि "अलग हुए धड़े के नज़दीकी लोग भी पाकिस्तान में मुल्ला रसूल की गिरफ़्तारी से इनकार कर रहे हैं."
इसने आरोप लगाया कि मुल्ला रसूल के सहायक और प्रवक्ता मुल्ला मनान नियाज़ी ‘काबुल में अफ़ग़ान गुप्तचर सेवा एनडीएस के गेस्ट हाउस में रहते हैं और नियमित रूप से सरकारी अधिकारियों से मिलते हैं.’ इसके अलावा यह भी दावा किया गया कि शिंदांद की जंग में ‘सरकार के पक्ष में जाने के बाद’ घायल हो गए रसूल के मुख्य कमांडर मुल्ला नन्ग्यालाइ का काबुल में इलाज चल रहा है.
वेबसाइट में भी आशंका जताई गई कि हो सकता है कि रसूल की मौत हो गई हो. 26 अप्रैल को वेबसाइट में लिखा गया, "मुल्ला रसूल के नज़दीकी सूत्रों का कहना है कि मीडिया से उनकी अचानक अनुपस्थिति से इन अफ़वाहों को बल मिल रहा है कि वह शिंदांद में तालिबान और स्थानीय चरमपंथियों के संघर्ष में मारे गए हैं."
"अगर यह सही है तो उनके सबसे नज़दीकी सहयोगी मुल्ला मनान नियाज़ी ही तालिबान का विरोध करने वाले अकेले व्यक्ति बच जाते हैं."
वेबसाइट के अनुसार लगभग सभी तालिबान नेताओँ ने एकता की ख़ातिर अपने मतभेद दरकिनार कर दिए हैं. अन्य मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि ज़्यादातर अप्रभावी तालिबान नेताओं और शख़्सियतों को रिश्वत या दबाव देकर मना लिया गया है.
29 मार्च को वेबसाइट ने तालिबान की ‘एकता कायम होने’ पर काबुल के लेखक और राजनीतिक टिप्पणीकार नज़र मोहम्मद मुतमइन का एक लंबा लेख छापा. इसमें कहा गया है कि मुख्य विद्रोही गुट करीब-करीब ख़त्म हो गए हैं और अन्य कमांडरों और नेताओं ने मंसूर के साथ समझौता कर लिया है.
मुतमइन ने लिखा, "दिवंगत मुल्ला उमर के बेटे और भाई भी शुरुआत में नाख़ुश थे लेकिन अंततः वह भी मुल्ला मोहम्मद अख़्तर मंसूर के साथ आ गए."
उन्होंने यह भी लिखा है कि कंधार में तालिबान की पूर्व-गवर्नर मुल्ला हसन रहमानी और पूर्व मंत्रियों मुल्ला अब्दुल रज़ाक़ और मुल्ला अब्दुल जलील ने ‘अपना खुला विरोध छोड़ दिया है’.
30 मार्च को वेबसाइट ने तालिबान के सैन्य आयोग के पूर्व प्रमुख और दक्षिण के प्रभावशाली कमांडर मुल्ला अब्दुल क़यूम ज़ाकेर का निष्ठा जताने वाला पत्र प्रकाशित किया. उन्हें 2014 में मुल्ला मंसूर ने उनके पद से हटा दिया था और तब से मंसूर-विरोधी लोग उन्हें घेरे हुए थे.
हालांकि वेबसाइट स्वतंत्र होने का दावा करती है लेकिन इसके फ़ेसबुक और ट्विटर अकाउंट अनाधिकारिक तालिबानी मीडिया आउटलेट की तरह काम करते हैं. वह तालिबान के नज़रिये को बढ़ावा देते हैं और इस तरह की प्रचार सामग्री प्रसारित करते हैं जिसे आमतौर पर यह चरमपंथी समूह नहीं फैला सकता.
वेबसाइट पर नियमित रूप से लिखने वाले और काबुल में टीवी बहसों में हिस्सा लेने वाले नज़र मोहम्मद मुतमइन पिछले कुछ महीने में तालिबान के राजनीतिक नज़रिए को रखने वाले प्रमुख शख़्स के रूप में उभरे हैं.
कहा जाता है कि वह मुल्ला उमर के प्रवक्ता रहे और अब मंसूर के वरिष्ठ सहयोगी के रूप में काम कर रहे अब्दुल हाइ मुतमइन के भाई हैं.
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