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शी चिनफिंग के साथ मुखर्जी की बातचीत में एनएसजी और अजहर के मुद्दे होंगे खास

बीजिंग : प्रतिष्ठित परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता पर चीन का विरोध और जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के तौर पर प्रतिबंधित करने के संयुक्त राष्ट्र के कदम को बाधित करने की चीन की कार्रवाई जैसे विषय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की गुरुवार को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग समेत वहां […]

बीजिंग : प्रतिष्ठित परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता पर चीन का विरोध और जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के तौर पर प्रतिबंधित करने के संयुक्त राष्ट्र के कदम को बाधित करने की चीन की कार्रवाई जैसे विषय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की गुरुवार को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग समेत वहां के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत में आ सकते हैं.

अपने लंबे राजनीतिक करियर में विभिन्न पदों पर रहते हुए चीन की कई यात्राएं कर चुके मुखर्जी की राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर चीन की यह पहली यात्रा है. सूत्रों के अनुसार वह उक्त मुद्दों पर भारत की चिंता प्रकट कर सकते हैं और इन पर भारत के रख को पुरजोर तरीके से पेश कर सकते हैं.

अपनी चार दिन की यात्रा के पहले चरण में दक्षिण चीन के ग्वांगझोउ शहर में आज पहुंचे राष्ट्रपति गुरुवार को राष्ट्रपति शी के साथ आमने-सामने बैठकर बातचीत करेंगे और उनके साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता भी करेंगे. मुखर्जी प्रधानमंत्री ली क्विंग और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के चेयरमैन झांग देजियांग से भी मुलाकात करेंगे.

चीनी नेतृत्व के साथ राष्ट्रपति की मुलाकात में सीमा विवाद और समस्या के समाधान की मौजूदा प्रणाली जैसे आपसी हित के मुद्दे आएंगे. दक्षिण कोरिया में अगले महीने होने वाली 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की बैठक के संदर्भ में परमाणु के मुद्दे पर नई दिल्ली के रख को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस बैठक में भारत एनएसजी की सदस्यता की पुरजोर कोशिश कर सकता है.

सूत्रों ने कहा कि एनएसजी की भारतीय सदस्यता असैन्य परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण उद्देश्यों का अनुसरण करने में उसके प्रयासों की तार्किक परिणति होगी और दूसरों से कोई तुलना नहीं की जा सकती. भारतीय अधिकारियों ने कहा कि उसी समय भारत को एनएसजी में पाकिस्तान की सदस्यता पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन वह इस मुद्दे पर दोनों देशों को साथ में रखने के चीन के प्रयासों के खिलाफ है.

सूत्रों ने कहा कि परमाणु कार्यक्रम के लिए पाकिस्तान के प्रयासों में चीन उसके लिए अनुकूल रह सकता है लेकिन उसे भारत को रोकने के प्रयास में कोई हौआ नहीं खड़ा करना चाहिए. उन्होंने हैरानी जताई कि भारत के मामले को पाकिस्तान के साथ क्यों जोड़ा जाना चाहिए.

भारत एनएसजी की सदस्यता प्राप्त करने के लिए परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करे, चीन के नये सिरे से इस बात पर जोर देने से भारत ने इत्तेफाक नहीं जताया. एनएसजी का सदस्य बनने वाले फ्रांस ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये थे, नयी दिल्ली के इस रख को खारिज करने के चीन के रख को भी भारत ने खारिज कर दिया.

अधिकारियों ने कहा कि एनएसजी सहमति आधारित व्यवस्था है और संधि नहीं है. अधिकारियों ने कहा कि राष्ट्रपति की यात्रा रस्मी या परस्पर संबंधों से ज्यादा है क्योंकि अपने लंबे राजनीतिक करियर के मद्देनजर और इस अवधि में विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय समेत विभिन्न विभाग संभालने के मद्देनजर वह महत्व रखते हैं.

वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई की जरुरत के समय अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के कदम को चीन द्वारा बाधित करने पर भी राष्ट्रपति भारत की चिंताओं को व्यक्त कर सकते हैं. सूत्रों को लगता है कि इन दोनों मुद्दों पर बीजिंग के रख को हमेशा उसके सहयोगी रहे इस्लामाबाद को मनाने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है.

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