मोदी के बनारस में गंगा किस हाल में?
जस्टिन रॉलैट दक्षिण एशिया संवाददाता, बीबीसी बनारस में भारत का जो रूप आपको दिखेगा, वो देश के किसी और शहर में नहीं दिखता. यहां आपको सरकारी विज्ञापनों में दिखाई देने वाले ‘अद्भुत भारत’ की झलक दिखाई देगी. शोर, अराजकता, रंगों से भरा हुआ, समृद्ध परंपरा वाला और हर्षोल्लास से भरपूर भारत. लेकिन पर्यटकों को जो […]
बनारस में भारत का जो रूप आपको दिखेगा, वो देश के किसी और शहर में नहीं दिखता.
यहां आपको सरकारी विज्ञापनों में दिखाई देने वाले ‘अद्भुत भारत’ की झलक दिखाई देगी. शोर, अराजकता, रंगों से भरा हुआ, समृद्ध परंपरा वाला और हर्षोल्लास से भरपूर भारत.
लेकिन पर्यटकों को जो चीज़ वाकई में सबसे ज्यादा अभिभूत करती है वो है यहां हर वक्त मौजूद रहने वाली भीड़.
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यहां हर तरफ, हर जगह आपको लोग दिख जाते हैं. सफाई अभियान के लिए यह एक बड़ी चुनौती है.
गंगा के घाटों पर चलते हुए आपको एहसास होगा कि घाट के एक ओर तो गंगा नदी है और दूसरी ओर नदी की ही तरह एक विशाल जनसमूह है.
इन घाटों पर दिन-रात आपको दाह-संस्कार होते हुए दिख जाएंगे.
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हिंदू मान्यता के अनुसार गंगा के किनारे अंतिम संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मृत्य और पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है.
माना जाता है कि हर साल यहां गंगा के घाट पर 32,000 शव जलाए जाते हैं और 300 टन तक अाधी जली लाशें गंगा में बहा दी जाती हैं.
लेकिन गंगा को प्रदूषित करने में इसका योगदान उतना बड़ा नहीं है जितना बड़ा योगदान लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी के वे क्रियाकलाप हैं जिनके कारण गंगा में गंदगी बहाई जाती है.
अनुमान है कि गंगा के किनारे बसे हुए इलाकों में 45 करोड़ लोग रहते हैं. गंगा इस बड़ी आबादी के लिए अब भी एक बड़े नाले की तरह इस्तेमाल होती है.
पहला गंगा एक्शन प्लान 30 साल पहले शुरू हुआ था. इसमें बड़े-बड़े सीवेज प्लांट बनाने की योजना बनाई गई थी.
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ये प्लांट अब भी मौजूद हैं लेकिन सरकार के ख़ुद के आकड़ों के मुताबिक़ इनमें से ज्यादातर प्लांट या तो अपनी क्षमता के हिसाब से काम नहीं कर रहे हैं, या बिल्कुल ही ठप पड़े हुए हैं.
बनारस में गंगा पॉल्यूशन कंट्रोल यूनिट का संचालन करने वाले संजय कुमार सिंह का कहना है, "इसकी क्षमता एक दिन में कुल 10 करोड़ लीटर पानी साफ करने की ज़रूरत है, जबकि 30 करोड़ लीटर पानी हर दिन साफ करने की जरूरत पड़ती है."
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के मुताबिक़ दूसरे मामलों में तो ये आकड़े और भी बदतर हैं.
एक अनुमान के मुताबिक़ गंगा बेसिन का 80 फ़ीसदी गंदा पानी साफ नहीं किया जाता है. यही वजह है कि गंगा में मल से होने वाले प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है.
बनारस में कभी-कभी तो नहाने के लिए तय पानी के सुरक्षित स्तर के मुकाले में प्रूदषण का स्तर 150 गुना ख़राब होता है. लेकिन इसकी परवाह किए बिना बड़ी संख्या में लोग इसमें डुबकी लगाते हैं.
यह सबसे बड़ी वजह है जो गंगा को साफ रखने के लिए हमें बाध्य करती है.
(गंगा पर हमारी ख़ास सिरीज़ की पांचवीं कड़ी शुक्रवार को पढ़िए)
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