21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भारत और चीन को राजनीतिक सूझबूझ से सुलझाने चाहिए मुद्दे : प्रणब मुखर्जी

बीजिंग : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि भारत और चीन को सीमा के मुद्दे समेत विभिन्न चुनौतियों को ‘राजनीतिक सूझबूझ’ और ‘सभ्यतापरक विवेक’ के जरिए समग्र ढंग से सुलझा लेना चाहिए ताकि आने वाली पीढियों को अनसुलझे मुद्दों का ‘बोझ’ न उठाना पडे. पेकिंग विश्वविद्यालय में अपने संबोधन में भारत-चीन संबंधों के लिए […]

बीजिंग : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि भारत और चीन को सीमा के मुद्दे समेत विभिन्न चुनौतियों को ‘राजनीतिक सूझबूझ’ और ‘सभ्यतापरक विवेक’ के जरिए समग्र ढंग से सुलझा लेना चाहिए ताकि आने वाली पीढियों को अनसुलझे मुद्दों का ‘बोझ’ न उठाना पडे. पेकिंग विश्वविद्यालय में अपने संबोधन में भारत-चीन संबंधों के लिए ‘जनता की साझेदारी की दिशा में आठ कदमों’ का उल्लेख करते हुए मुखर्जी ने कहा कि चीन के साथ साझेदारी को मजबूत करने के लिए एक द्विदलीय प्रतिबद्धता है.उन्होंने कहा कि ‘विकास पर आधारित करीबी साझेदारी’ के लिए दोनों देशों के बीच राजनीतिक समझ होना जरुरी है.’

उन्होंने कहा, ‘इसे करने का एक तरीका राजनीतिक संवाद में वृद्धि लाना है. भारत में चीन के साथ संबंध को मजबूत करने के प्रति एक द्विदलीय प्रतिबद्धता है. हमारे नेताओं के बीच लगातार होने वाले संपर्क इसका प्रमाण हैं.’ मुखर्जी ने कहा, ‘हमने ‘साझा आधार’ को विस्तार दिया है और अपने मतभेदों का प्रबंधन सीखा है. सीमा के सवाल के साथ-साथ कई चुनौतियां हैं, जिन्हें समग्र रुप से निपटाए जाने की जरुरत है.’

राष्‍ट्रपति के तौर पर मुखर्जी का यह पहली आधिकारिक चीन यात्रा

राष्ट्रप्रमुख के तौर पर अपनी चीन की पहली अधिकारिक यात्रा पर आए मुखर्जी ने कहा कि पडोसियों के बीच समय-समय पर कुछ मुद्दों पर मतभेद उभरना स्वाभाविक ही है. ‘मैं इसे हमारी राजनीतिक सूझबूझ की परीक्षा मानता हूं, जब हमें हमारे सभ्यतापरक विवेक का इस्तेमाल करते हुए इन मतभेदों को दोनों पक्षों के आपसी संतोष तक सुलझाना चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘दोनों पक्षों को इस उद्देश्य के साथ काम करना चाहिए कि हम अनसुलझी समस्याएं छोडकर आने वाली पीढियों पर बोझ न लाद दें. मुझे यकीन है कि इन मुद्दों का न बिगडना सुनिश्चित करके और आपसी चिंताओं के प्रतिसंवेदनशील बने रहकर हम अपने मतभेदों को न्यूनतम और सहमतियों को अधिकतम कर सकते हैं.’

राष्ट्रपति ने कहा कि उभरती शक्तियां होने के नाते यह भारत और चीन की जिम्मेदारी है कि वे वैश्विक समृद्धि को समृद्ध बनाने पर समान रुप से ध्यान केंद्रित करें. उन्होंने कहा, ‘हम दोनों ही एक पुनरुत्थानवादी, सकारात्मक ऊर्जा से युक्त, एक ‘एशियाई सदी’ का सृजन करने और आपस में हाथ मिलाने के अवसर के मुहाने पर खडे हैं. यह काम आसान नहीं होगा. हमें संकल्प और धैर्य के साथ बाधाओं को पार करना होगा. इस सपने को सच करने के लिए हमें धैर्य रखना होगा. हम एकसाथ मिलकर ऐसा कर सकते हैं. यदि हम एक स्थायी मित्रता से हाथ मिला लेते हैं तो हम ऐसा कर सकते हैं.’

शी जिनपिंग सहित अन्य नेताओं से मुलाकात करेंगे मुखर्जी

अपने चार दिवसीय प्रवास के दौरान राष्ट्रपति अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग और अन्य शीर्ष नेताओं से मुलाकात करेंगे. साझा हित वाले क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों में आ रही विविधता पर खुशी जाहिर करते हुए मुखर्जी ने कहा कि चीन भारत का सबसे बडा व्यापारिक साझेदार है. मुखर्जी ने कहा, ‘हमारे विकास संबंधी अनुभव एक दूसरे के लिए बेहद प्रासंगिक हैं. अवसंरचना, परिवहन, ऊर्जा, कौशल विकास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और शहरीकरण में हमारी उपलब्धियां आपस में आदान-प्रदान और सहयोग के लिए एक उपजाउ जमीन देती हैं. हमारे रक्षा एवं सुरक्षा आदान-प्रदान में अब वार्षिक सैन्य अभ्यास शामिल हैं. चीन ने भारत में बहुत निवेश किया है और भारत ने भी चीन में बहुत निवेश किया है.’

सरकार को इस प्रक्रिया के प्रति और संबंधों के लिए एक स्थायी ढांचा बनाने के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध बताते हुए मुखर्जी ने कहा कि उनका दृढता के साथ यह मानना है कि यदि भारत और चीन को 21वीं सदी में एक महत्वपूर्ण और रचनात्मक भूमिका निभानी है तो उन्हें अपने द्विपक्षीय संबंध को आगे बढाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात से सहमत हूं कि हमारे संबंधों में गुणवत्तापूर्ण सुधार के लिए जनता को केंद्र में रखा जाना जरुरी है. इसलिए मेरा सुझाव है कि दोनों देशों के बीच व्यापक स्तर का संपर्क बनाने के लिए दोनों पक्षों को जनता-केंद्रित साझेदारी को बढाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.’

राष्ट्रपति ने कहा कि जनता-केंद्रित साझेदारी के लिए दोनों देशों के बीच एक दूसरे के प्रति सम्मान और एक दूसरे के राजनीतिक एवं सामाजिक तंत्र के प्रति अधिक सराहना का भाव होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘इसे सभी स्तरों पर करीबी संपर्कों द्वारा हासिल किया जा सकता है. जैसा कि आप जानते ही हैं कि भारत ने एक धर्मनिरपेक्ष संसदीय लोकतंत्र होने का विकल्प चुना. हमारी भागीदारी वाली शासन व्यवस्था सहिष्णुता, समावेश और आम सहमति के सिद्धांतों पर आधारित है.’

उन्होंने कहा, ‘आतंकवाद के कृत्यों के जरिए हमारी शांति को भंग करने की कोशिशें हमारे विश्वास को डिगा नहीं पाई हैं. हमारे समाज में लचीलापन है और जनहित की सुरक्षा करने के लिए स्वतंत्र मीडिया, स्वतंत्र न्यायपालिका और एक जीवंत नागरिक समाज है.’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें