G7 में छायी रही चीन की ‘वर्चस्ववादी नीति”, सदस्य देश चिंतित

शिमा (जापान) : चीन की बढ़ती सैन्य ताकत से सिर्फ अमेरिकी सांसद ही चिंतित नहीं हैं, बल्कि यह जी 7 देशों के लिए भी चिंता की बात है. खास कर दक्षिण चीन सागर में उसकी उपस्थिति ज्यादातर देशों को खटक रही है. जापान के शिमा शहर में चल रही जी 7 देशों के सम्मेलन में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 27, 2016 3:46 PM

शिमा (जापान) : चीन की बढ़ती सैन्य ताकत से सिर्फ अमेरिकी सांसद ही चिंतित नहीं हैं, बल्कि यह जी 7 देशों के लिए भी चिंता की बात है. खास कर दक्षिण चीन सागर में उसकी उपस्थिति ज्यादातर देशों को खटक रही है. जापान के शिमा शहर में चल रही जी 7 देशों के सम्मेलन में भी यह मुद्दा प्रमुखता से छाया रहा. जी 7 देशों के नेताओं ने आज कहा कि एशिया में समुद्र संबंधी बढती चिंताएं परेशानी का सबब हैं और विवादों का समाधान वैध एवं शांतिपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए.

घोषणा पत्र में संकेत

जी 7 के वार्षिक शिखर सम्मेलन के अंत में जारी घोषणा पत्र की विषय वस्तु में किसी एक देश का जिक्र नहीं किया गया लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इसका इशारा चीन की ओर था.

लगभग संपूर्ण दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के दावे ने उसके कुछ दक्षिणपूर्वी एशियाई पड़ोसियों को नाराज कर दिया है और इस जल क्षेत्र में नौवहन की आजादी पर खतरे संबंधी चिंताओं को जन्म दिया है.

इस समुद्री क्षेत्र में ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम के साथ-साथ फिलीपीन भी अपना दावा पेश करता है.

चीन द्वारा वहां छोटे द्वीपों के सैन्यीकरण ने देश की बढती क्षेत्रीय ताकत को लेकर सीमा संबंधी आशंकाएं बढ़ा दी हैं और साथ ही आवश्यकता पड़ने पर इस दावे के समर्थन में उसके द्वारा बल प्रयोग किए जाने का खतरा भीबढ़ गया है.

पूर्वी और दक्षिण चीन सागर को लेकर चिंताएं

जी 7 नेताओं ने कहा, ‘‘हम पूर्वी और दक्षिण चीन सागरों में स्थिति को लेकर चिंतित हैं और विवादों के शांतिपूर्ण प्रबंधन एवं निपटान के मौलिक महत्व पर जोर देते हैं.’

चीन पूर्वी चीन सागर में निर्जन द्वीपों पर जी7 के मेजबान जापान के साथ भी विवाद की स्थिति में है. इन द्वीपों पर दोनों देश अपना अपना दावा पेश करते हैं.

जी 7 के सदस्य देशों अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और कनाडा ने कहा कि विवादों का निपटारा ‘‘शांतिपूर्वक’ किया जाना चाहिए और ‘‘नौवहन एवं हवाई उड़ान की स्वतंत्रता’ का सम्मान किया जाना चाहिए.

वाशिंगटन ने एशिया की ओर से ‘‘धुरी’ की विदेश नीति अपनाई है. उसे आशंका है कि बीजिंग पूरे इलाके में सैन्य नियंत्रण लागू करना चाहता है.

अमेरिकी सेना ने ‘‘नौवहन की स्वतंत्रता’ के कई अभियान चलाए हैं जिनसे बीजिंग की भौंहें तन गयी हैं.

अंतरराष्ट्रीय कानून पर हो अमल

जी7 नेताओं ने यह भी कहा कि इलाके में दावे अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर किए जाने चाहिए और देशों को ऐसे ‘‘एकपक्षीय कदमों से’ बचना चाहिए ‘‘जिनसे तनाव बढने की आशंका हो’ और उन्हें ‘‘दावों को साबित करने के लिए बल प्रयोग’ से भी बचना चाहिए.

उन्होंने जोर दिया कि ‘‘मध्यस्थता समेत’ न्यायिक माध्यमों का प्रयोग किया जाना चाहिए.

यह अपील ऐसे समय पर कीगयी है जब कुछ ही सप्ताह में हेग में स्थायी मध्यस्थता अदालत का चीन के दावे पर फैसला आने की संभावना है. इस मामले को फिलीपीन अदालत में लाया था. बीजिंग ने कहा है कि वह इस मामले को मान्यता नहीं देता.

जी7 बैठक के इतर यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने कल कहा कि समूह को चीन के समुद्री दावों और क्रीमिया के रूसी विलय पर ‘‘स्पष्ट एवंकड़ा रुख’ अपनाना होगा.

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