-आइएएस के कामकाज में बढ़ गया है राजनीतिक हस्तक्षेप-
।। बीबीसी हिन्दी।।
आइएएस यानी ‘रसूखवाला’ अफसर, जिनकी नेताजी भी सुनते हैं और जो सिर्फ नेताजी की ही सुनते हैं. यही वजह है कि आज कई युवा ही नहीं, उनके माता-पिता भी सोते-जागते आइएएस बनने का ख्वाब देखते हैं. ऐसा क्यों. इसे समझने के लिए हम कल से पेश कर रहे हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों पर आधारित विशेष श्रृंखला. यह श्रृंखला बीबीसी हिंदी वेबसाइट से साभार ली गयी है, जिसे प्रस्तुत किया है बीबीसी हिंदी के संवाददाता रेहान फजल ने.
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के नोएडा की युवा आइएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल का निलंबन राष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बना. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने न केवल दुर्गाशक्ति को निलंबित किया, बल्किउनका समर्थन करने वाले डीएम का भी तबादला कर दिया. आज आइएएस के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि जिन आइएएस अधिकारियों के तबादले तीन साल में हुआ करते थे, उनके तबादले हर छह महीने या कभी-कभी हर तीसरे महीने होने लगे हैं. तो अफसरशाही को निभाना इतना आसान भी नहीं रह गया है.
बदलता चेहरा: कई अधिकारी ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने रिश्वत और लूट खसोट का रिकॉर्ड बना दिया. इनकी भी चर्चा इस श्रृंखला में होगी. लेकिन इन सबके बीच बात उन आइएएस अधिकारियों की भी होगी जिन्होंने मंत्रियों को ‘नो मिनिस्टर’ कहने का साहस दिखाया और अपनी अंतरात्मा पर काम करते रहे चाहे बाद में इसका खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. इसमें बात उन युवाओं की भी होगी, जो आइएएस के तमाम विवादों के बावजूद आज भी सोते-जागते आइएएस बनने का ख्वाब देखते हैं.
बेहतरीन टैलेंट का दावा
आम तौर पर कहा जाता है कि सबसे बेहतरीन टैलेंट इस नौकरी के लिए चुने जाते हैं. इसके चार्म पर कॉरपोरेट जगत की भारी भरकम तनख्वाह की नौकरी भी कोई असर नहीं डाल पायी. ऐसा हो भी क्यों न. आखिरकार देश को चलाने का काम आइएएस के कंधों पर ही जो है. ऐसे में हमने सोचा क्यों न आपको भारतीय प्रशासनिक सेवा की बारीकियों के बारे में बताएं, उनकी मुश्किलों के बारे में बात करें. इस सिलसिले में हम इन अधिकारियों के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं पर भी नजर डालेंगे, जिन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा देश ही नहीं विदेशों में भी मनवाया.
मसलन एक ऐसे आइएएस अधिकारी हुए हैं जिन्हें चार-चार प्रधानमंत्रियों का पूरा विश्वास हासिल हुआ. इस श्रृंखला में एक कहानी उस अफसर की भी होगी जो जब तक इंदिरा गांधी के साथ रहे तब तक इंदिरा ‘दुर्गा’ बनीं रहीं और जैसे ही उन्होंने इंदिरा का साथ छोड़ा, इंदिरा के लिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया. इस श्रृंखला में आपकी मुलाकात एक ऐसे आइएएस अधिकारी से भी कराएंगे जो तीन धुर विरोधी मुख्यमंत्रियों के प्रधान सचिव रहे और हर मुख्यमंत्री अपनी फाइल पर उनके हस्ताक्षर को ही आदेश मानते रहे. लेकिन सारे अधिकारी ऐसे नहीं.