एक-दूसरे का सैन्य तंत्र उपयोग करने के समझौते की ओर बढ़ रहे हैं नरेंद्र मोदी-बराक ओबामा
एजेंसी इनपुट के साथ इंटरनेट डेस्क वाशिंगटन : अमेरिकाऔर भारतऐतिहासिकरक्षा करार कीओर तेजी से बढ़ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में इस करार को स्वीकृति देने की ओर सावधानी से बढ़ते दिख रहे हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोनों देशों में इस […]
एजेंसी इनपुट के साथ इंटरनेट डेस्क
वाशिंगटन : अमेरिकाऔर भारतऐतिहासिकरक्षा करार कीओर तेजी से बढ़ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में इस करार को स्वीकृति देने की ओर सावधानी से बढ़ते दिख रहे हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोनों देशों में इस पर सैद्धांतिक सहमति बन गयी है, लेकिन यह देखना होगा कि इस पर हस्ताक्षर होते हैं या नहीं. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यह अति संवेदनशील मुद्दा है, जिसके तहत अमेरिकी विमानों को भारतीय सैन्य अड्डों पर उतरने की अनुमति व ईंधन लेने की अनुमति देने जैसे बिंदु शामिल हैं. भारत पिछले 69 सालों से गुटनिरपेक्ष नीति पर चलता रहा है और इस तरह का समझौता इस नीति के लिए एक निर्णायक व ऐतिहासिक मोड़ होगा. भारत के साथ मजबूत रक्षा सहयोग संबंध स्थापित होने के बाद दोनों देशों को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन और चीन के बढ़ते प्रभुत्व को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. अमेरिका ने भारत को एक ‘‘बड़ा रक्षा सहयोगी’ स्वीकार किया है जिसके बाद रक्षा संबंधी व्यापार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए भारत के साथ अमेरिका के करीबी सहयोगियों जैसा व्यवहार करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है. रक्षा करार करने की अमेरिका की उत्सुकता उनके पूर्ववर्ती जार्ज बुश के द्वारा मनमोहन सिंह के साथ असैन्य परमाणु करार करने की याद ताजा कराता है, जब अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में बुश ने वह करार करने में सफलता पायी थी. उसी तरह ओबामा अपने कार्यकाल के अंतिम चरणमें रक्षा करान करने को इच्छुक हैं.
कल की मोदी-ओबामा वार्ता के बाद आज प्रेस बयान जारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच कल हुई वार्ताओं के बाद जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया, ‘‘अमेरिका और भारत का रक्षा संबंध स्थिरता का वाहक हो सकता है और रक्षा क्षेत्र में दोनों के बीच लगातार सहयोग मजबूत होने के चलते अमेरिका भारत को एक बड़े रक्षा सहयोगी का दर्जा देता है.’ बयान के अनुसार, ‘बड़े रक्षा सहयोगी’ के दर्जे के तहत अमेरिका भारत के साथ प्रौद्योगिकी साझा करने का काम उस स्तर तक जारी रखेंगे, जितना वह अपने करीबी सहयोगियों और साझेदारों के साथ करता है.
भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी तक लाइसेंस मुक्त पहुंच होगी
इसी बीच, व्हाइट हाउस ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति ओबामा और प्रधानमंत्री मोदी की बैठक का परिणाम भारत और अमेरिका के बीच कुछ प्रमुख रक्षा समझौतों को अंतिमरूप दिए जाने केरूप में सामने आया. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट ने अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में संवाददाताओं को बताया, ‘‘मैं आपको बता सकता हूं कि रक्षा साजोसामान, मरीटाइम सूचना साझा करने और यहां तक कि क्षेत्र में अमेरिकी विमान वाहकों के आवागमन से जुड़े समझौतों को अंतिमरूप दिए जाने की दिशा में भी अहम प्रगति हुई.’ संयुक्त बयान में कहा गया, ‘‘नेताओं के बीच एक ऐसी समझदारी बनी है, जिसके तहत भारत की दोहरे इस्तेमाल वाली प्रौद्योगिकी की व्यापक श्रृंखला तक लाइसेंस मुक्त पहुंच होगी. यह निर्यात नियंत्रण के लक्ष्यों को आगे बढाने के उन कदमों के अनुरूप है, जिनके प्रति भारत ने प्रतिबद्धता जताई है.’ बयान में कहा गया कि भारत के ‘मेक इन इंडिया’ प्रयास और रक्षा उद्योगों के विकास में सहयोग के लिए और इन्हें वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में शामिल करने के लिए अमेरिका दोनों देशों के आधिकारिक रक्षा सहयोग को बढावा देने वाली परियोजनाओं, कार्यक्रमों और संयुक्त उपक्रमों के लिए अपने देश के कानून के अनुरूप वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों के निर्यात को सुगम बनाना जारी रखेगा.
दोनों देशों केबढ़े हुए सैन्य सहयोग :विशेषकर संयुक्त अभ्यासों, प्रशिक्षण और मानवीय मदद एवं आपदा राहत में सहयोग: की सराहना करते हुए ओबामा और मोदी ने उन समझौतों के अन्वेषण की इच्छा जताई, जो द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को व्यवहारिक तरीके से विस्तार देने में मदद करेंगे. दोनों ओर के अधिकारियों ने कहा कि भारत और अमेरिका ने साजोसामान आदान-प्रदान समझौता पत्र के मसविदे को अंतिमरूप दे दिया है.
ओबामा प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी नेकान्फ्रेंस कॉल के दौरान कहा कि इस समझौता पत्र पर जल्दी ही हस्ताक्षर किए जा सकते हैं. ओबामा और मोदी ने इस फैसले का स्वागत किया.
भारत और अमेरिका ने विमान वाहक प्रौद्योगिकी निगम पर बने एक संयुक्त कार्य समूह के तहत एक सूचना आदान-प्रदान संलग्नक के मसविदे को भी अंतिमरूप दिया. विदेश सचिव एस जयशंकर ने कहा कि भारत और अमेरिका भारत और अमेरिका के साइबर संबंध की संरचना को अंतिम रूप देने के लिए आपसी समझ बना चुके हैं.
साइबर सहयोग बढाएंगे
बयान के अनुसार, दोनों नेताओं ने महत्वपूर्ण अवसंरचना, सरकारों और राज्येतर तत्वों द्वारा अंजाम दिए जाने वाले साइबर अपराध और हानिकारक साइबर गतिविधियों से निपटने, क्षमता निर्माण करने, साइबर सुरक्षा अनुसंधान एवं विकास करने और प्रौद्योगिकी एवं संबंधित सेवाओं में व्यापार के सभी पहलुओं पर चर्चाएं जारी रखने के क्षेत्र में साइबर सहयोग को बढाने पर प्रतिबद्धता जताई.
साइबर हैकिंग मेंबड़े स्तर तक लिप्त रहने वाले देशों की ओर इशारा करते हुए बयान में कहा गया कि किसी भी देश को ऐसी ऑनलाइन गतिविधि को अंजाम या जानबूझकर समर्थन नहीं देना चाहिए, जो महत्वपूर्ण संरचना को जानबूझकर नष्ट कर देती हो या इसके द्वारा जनता को उपलब्ध करवाई जाने वाली सेवाएं को अवरुद्ध कर देती हो.
बयान में कहा गया कि किसी भी देश को ऐसी गतिविधि का समर्थन नहीं करना चाहिए, जो राष्ट्रीय कंप्यूटर सुरक्षा घटना प्रतिक्रिया दलों को साइबर घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने से रोकने के लिए हो या फिर अपने दलों के इस्तेमाल से किसी ऐसी ऑनलाइन गतिविधि को अंजाम देते हों, जिसका उद्देश्य नुकसान करना है.
दोनों नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि हर देश को अपने देश के बीच से संचालित होने वाली दुर्भावनापूर्ण साइबर गतिविधियों को कम करने के लिए दूसरे देशों से आने वाले मदद के अनुरोधों पर घरेलू कानून और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप सहयोग करना चाहिए.
बयान में कहा गया कि किसी भी देश को अपने देश की कंपनियों या व्यवसायिक सेक्टरों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ पहुंचाने के इरादे से सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की मदद से बौद्धिक संपदा चुराने या उसे जानबूझकर सहयोग देने से बचना चाहिए. इस बौद्धिक संपदा में व्यापार सेजुड़ी गोपनीय जानकारी, अन्य गोपनीय कारोबारी जानकारी शामिल है.