मोदी का दौरा और अमेरिकी मीडिया : उपलब्धियों का आंशिक श्रेय ट्रम्प को भी!
शुरू हुआ दोस्ती का नया युग सिर्फ दो साल के अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौथी बार अमेरिका की यात्रा पर हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से यह उनकी सातवीं मुलाकात है. प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले अमेरिका दौरे के दौरान जहां मोदी को मीडिया ने एक ‘रॉकस्टार’ बताया था, वहीं इस बार मोदी […]
शुरू हुआ दोस्ती का नया युग
सिर्फ दो साल के अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौथी बार अमेरिका की यात्रा पर हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से यह उनकी सातवीं मुलाकात है. प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले अमेरिका दौरे के दौरान जहां मोदी को मीडिया ने एक ‘रॉकस्टार’ बताया था, वहीं इस बार मोदी अपने मित्र बराक के कार्यकाल के आखिरी दिनों में भारत-अमेरिका संबंधों को सर्वाधिक ऊंचाई पर पहुंचाने पर ही फोकस करते दिखे. दोनों नेताओं की मुलाकात में जहां भारत में अमेरिकी निवेश बढ़ाने की राह की बाधाएं दूर करने पर बात हुई, वहीं द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने की नयी संभावनाएं तलाशी गयीं. मोदी और भारत को लेकर अमेरिका के बदलते नजरिये की झलक वहां के मीडिया कवरेज में भी मिलती है.
पिछले साल तक मोदी की राजनीति में संदेह के तत्व तलाशनेवाला अमेरिकी मीडिया इस बार कवरेज को लेकर अपेक्षाकृत ज्यादा तथ्यपरक और व्यावहारिक दिखा है. हालांकि वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे प्रमुख अखबारों ने ओबामा और मोदी की स्वाभाविक दोस्ती पर कुछ सवाल भी उठाये हैं, लेकिन प्रमुख मीडिया कवरेज का फोकस दोनों देशों के संबंधों को नये दौर में ले जानेवाले मुद्दों पर ही रहा है. मोदी के अमेरिका दौरे के पहले दिन के बारे में अमेरिकी मीडिया की कुछ रिपोर्टों के खास अंशों पर नजर डाल रहा है आज का इन डेप्थ पेज…
दशकों के अविश्वास और मेल-मिलाप की अनियमित कोशिशों के बाद मंगलवार को जब वाशिंगटन के व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिखर बैठक हुई, उसके बाद यह साफ हो गया कि पुराने दौर को पीछे छोड़ कर विश्व के ये दोनों सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश घनिष्ठ सहयोग के एक नये युग में प्रवेश कर चुके हैं, जिसका खासा श्रेय दोनों नेताओं की लगातार परवान चढ़ती व्यक्तिगत मित्रता और समझदारी को दिया जा सकता है. हालांकि यह एक विडंबना भी है कि मोदी की इस यात्रा की उपलब्धियों का आंशिक श्रेय अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प को भी जाता है.
अपने दो वर्षों के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी की इस दूसरी व्हाइट हाउस यात्रा के दौरान दोनों नेताओं की बैठक के बाद उन्होंने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित करने के लिए हुए पेरिस समझौते की पुष्टि की दिशा में उठाये गये अहम कदमों की घोषणा करते हुए इस समझौते को उसके पूर्ण कार्यान्वयन के काफी करीब ला दिया. मोदी की इस घोषणा पर अमेरिका में काफी संतोष प्रकट किया जा रहा है, क्योंकि इन गैसों के वैश्विक उत्सर्जन के करीब 50 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करनेवाले देश इसकी पुष्टि की घोषणा कर चुके हैं. यह समझौता तभी बाध्यकारी हो सकेगा, जब कम-से-कम 55 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार 55 देशों द्वारा ऐसी घोषणा कर दी जाती है.
भारत द्वारा इस घोषणा की अहमियत इसलिए बहुत ज्यादा है, क्योंकि वह चीन और अमेरिका के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है. इस तरह दोनों देशों ने यह तय कर दिया है कि अगले राष्ट्रपति द्वारा अमेरिका की बागडोर हाथों में लेने के पहले ही यह समझौता प्रभावी हो चुका होगा और ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने की स्थिति में भी वे इसे स्थगित नहीं कर पायेंगे, जिस निश्चय की घोषणा उन्होंने कर रखी है. ओबामा ऐसी किसी संभावना को समाप्त कर देने को उत्सुक हैं.
दोनों नेताओं ने एक अन्य समझौते की भी घोषणा की, जिसके अंतर्गत हाइड्रोफ्लोरोकार्बन्स के उपयोग को कम किया जायेगा, जो रेफ्रीजेरेटरों तथा एयरकंडीशनरों के शीतकों द्वारा पैदा किया जानेवाला वह रसायन है, जिसे पृथ्वी का तापमान बढ़ानेवाला एक शक्तिशाली घटक माना जाता है. दोनों पक्षों ने वह सौदा भी पूरा करने के इरादे की घोषणा की, जिसके मुताबिक 2005 में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ हुए समझौते के तहत भारत अमेरिका से छह नाभिकीय रिएक्टर खरीदेगा, जिसके मार्ग की एक बड़ी बाधा बना परमाण्विक दायित्व का मुद्दा सुलझा लिया गया है.
इसके अलावा, दोनों के बीच यह समझौता भी हुआ कि अमेरिका भारत के नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम में निवेश की दिशा में दो करोड़ डॉलर की वित्तीय पहल भी करेगा. दोनों देशों ने यह समझौता भी किया कि उनकी सेनाएं एक-दूसरे को अहम आपूर्तियों के मामलों में सहायता करेंगी और अमेरिका ने औपचारिक रूप से भारत को एक प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में मान्यता दे दी, जिसका निहितार्थ यह होगा कि अमेरिका के शस्त्रागार में उपलब्ध अत्यंत उन्नत युद्धक उपकरण भी भारत की खरीदारी के लिए उपलब्ध हो जायेंगे.
– द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट का मुख्य अंश.
(अनुवाद : विजय नंदन)
अमेरिका-भारत संबंधों में विराट बदलाव
नरेंद्र मोदी की यात्रा की अहम उपलब्धियों पर अमेरिका में खासी सकारात्मक टिप्पणियां की जा रही हैं. वुडरो विल्सन सेंटर फॉर स्कॉलर्स के प्रतिनिधि माइकेल कुगलमन ने ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ के साथ एक इंटरव्यू में कहा, ‘दोनों नेताओं के बीच समझदारी तथा द्विपक्षीय संबंधों में आये हालिया रूपांतरण उल्लेखनीय हैं. ओबामा प्रशासन के दौर में अमेरिका-भारत संबंधों में विराट बदलाव आये हैं.
अपने पहले कार्यकाल में ओबामा अफगानिस्तान मुद्दे पर केंद्रित थे और दक्षिण एशिया के लिए अपनी नीति में वे अफगानिस्तान, तथा उसके विस्तारित रूप में पाकिस्तान से आगे गौर नहीं कर सके थे और इसमें भारत के लिए ज्यादा जगह नहीं बचती थी.’ पर, कुगलमन के अनुसार, ओबामा के दूसरे कार्यकाल में, और खासकर अंतिम दो वर्षों के दौरान अफगानिस्तान के संघर्षों से मुक्त होकर ओबामा प्रशासन भारत को वह शक्ति मानने लगा है, जो चीन तथा दक्षिण चीन सागर में उसके सामुद्रिक आक्रमण को प्रतिसंतुलित कर सकता है.
जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान की दिशा में अमेरिका तथा भारत के साझा प्रयासों का स्वागत करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने कहा कि दोनों देशों ने पेरिस समझौते के कार्यान्वयन की दिशा में बढ़ती प्रगति प्रदर्शित की है.
– वॉयस ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट का मुख्य अंश.
परमाणु रिएक्टर परियोजना को आगे बढ़ाने पर सहमति
एक दशक पहले हुए भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए मंगलवार को राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में स्थापित होनेवाले छह नाभिकीय रिएक्टरों के प्रारंभिक कार्य की शुरुआत का स्वागत किया. अमेरिका और भारत द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य के अनुसार भारत और ‘यूएस एक्पोर्ट-इंपोर्ट बैंक’ इस परियोजना के वित्तीय पैकेज को पूरा करने के लिए काम रहे थे, जबकि न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और तोसिबा की वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक ने इंजीनियरिंग व साइट डिजाइन कार्य के लिए पुष्टि की है, जिस पर जल्द ही काम शुरू होनेवाला है.
घोषणा के अनुसार, कंपनियां जून, 2017 तक कांट्रैक्ट को पूरा करने की दिशा में काम करेंगी. मार्च माह में रायटर्स के साथ एक इंटरव्यू में वेस्टिंगहाउस के चीफ एग्जीक्यूटिव डेनियल रॉडेरिक ने कहा था कि उन्हें आशा है यह कार्य एक साल के अंदर ही पूरा कर लिया जायेगा.
वेस्टिंगहाउस इस परियोजना के लिए 2005 से ही वार्ता कर रहा है. लंबे समय से बाधा का बड़ा कारण भारतीय नियमों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना रहा है. इसके अनुसार किसी दुर्घटना की जवाबदेही न्यूक्लियर पावर स्टेशन के निर्माता के बजाय ऑपरेटर पर होगी.
विश्वसनीयता के मसले पर वेस्टिंगहाउस के संतुष्ट होने के प्रश्न के जवाब में बूनी ने कहा कि काफी प्रगति हुई है, लेकिन वेस्टिंगहाउस ‘भारत सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों की निगरानी और हल निकालने में सहायता करेगा’. उन्होंने कहा कि भारत सरकार साइट वर्क शुरू कर सकती है, लेकिन वेस्टिंगहाउस एक बार ‘कार्य समझौता’ लागू होने के बाद ही आगे बढ़ेगा. उम्मीद है कि इसे जल्द ही पूरा कर लिया जायेगा.
दक्षिण एशिया के लिए अमेरिकी विदेश विभाग की वरिष्ठ अधिकारी और दक्षिण व मध्य एशिया मामलों की असिस्टेंट सेक्रेटरी निशा देसाई बिस्वाल ने पिछले महीने कहा था कि भारत अमेरिकी सरकार की संतुष्टि की विश्वसनीयता को लेकर चिंतित है. अब तक यह कंपनियों को तय करना था कि वह भारत में बिजनेस को लेकर संतुष्ट हैं. व्हाइट हाउस के ऊर्जा व जलवायु विभाग के वरिष्ठ निदेशक जॉन मॉर्टन ने रिपोर्टरों से कहा कि मंगलवार की घोषणा से दोनों देशों की सहमति अब बिल्कुल स्पष्ट हो गयी है, इससे रिएक्टर परियोजना के काम को आगे बढ़ाया जा सकेगा.
– सीएनबीसी की रिपोर्ट का मुख्य अंश.
ओबामा प्रशासन को उम्मीद
जलवायु परिवर्तन करार में इसी साल शामिल होगा भारत
भारत ऐतिहासिक जलवायु परिवर्तन करार में इसी साल शामिल होने का प्रयास करेगा. ओबामा प्रशासन ने मंगलवार को यह भरोसा जताते हुए कहा कि व्हाइट हाउस में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने वैश्विक चिंताओं से जुड़े मसलों को मिल कर सुलझाने के प्रति सहमति जतायी.
आपसी रिश्तों की मजबूती पर जोर देते हुए आेबामा ने कहा कि दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देशों ने पिछले साल दिसंबर में पेरिस में हुए महत्वपूर्ण क्लाइमेट एग्रीमेंट के संदर्भ में हाथ मिलाया था. अपने दफ्तर में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के बाद ओबामा ने कहा, ‘पेरिस समझौते को कितनी तेजी से अमलीजामा पहनाना मुमकिन हो सकता है, हमने इस पर बातचीत की.
भारत के लिए जरूरी क्लाइमेट फाइनेंसिंग पर भी बातचीत हुई, ताकि सोलर एनर्जी और क्लीन एनर्जी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत विजन को लागू करने में भारत सक्षम हो सके.’ इस मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और अमेरिका परमाणु सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद समेत तमाम वैश्विक मसलों पर एक-दूसरे को सहयोग कर रहे हैं. मोदी ने ओबामा को अपना ‘जिगरी दोस्त’ (क्लोज फ्रेंड) बताया और कहा कि दोनों देश आपस में ‘कंधे-से-कंधा’ मिला कर काम करना जारी रखेंगे.
चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करनेवाला देश है. पेरिस समझौते का मकसद है कि वैश्विक तापमान में होनेवाली वृद्धि को औद्योगिक युग के पहले के मुकाबले दो डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फॉरेनहाइट) से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया जाये.
वैश्विक उत्सर्जन में 55 फीसदी की भागीदारी निभानेवाले 55 देशों के प्रतिनिधियों के इसमें शामिल होने से यह समझौता प्रभाव में आ चुका है. संयुक्त बयान जारी करते हुए अमेरिका ने इस बात पर दृढ़ता जतायी कि इस क्लाइमेट डील में शामिल होने के लिए वह पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और संभवत: इसी वर्ष वह ऐसा कर सकता है और भारत ने भी इस मकसद को साझा किया है. भारतीय विदेश सचिव सुब्रमण्यम जयशंकर ने कहा कि कुछ रेगुलेटरी और लीगल मसले हैं, जिन्हें निबटाना बाकी है. उन्होंने कहा कि सरकार इस समझौते की दिशा में आगे बढ़ने के लिए रास्तों और साधनों की तलाश कर रही है.
दो चरणों की इस प्रक्रिया की पहली बाधा दूर हो चुकी है. अमेरिका और भारत समेत दर्जनों देश इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, लेकिन मोदी इस संबंध में अभी मौन हैं कि भारत औपचारिक रूप से इस वर्ष इसमें शामिल होगा या नहीं. अमेरिका चाहता है कि इसमें देशों की भागीदारी तेजी से बढ़े, क्योंकि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के इस समझौते के मंसूबे को कामयाब बनाने के लिए ज्यादा तादाद में प्रदूषण पैदा करनेवाले देशों द्वारा इसे जल्द कार्यान्वित किया जाना जरूरी है. चीन, कनाडा, मैक्सिको और ऑस्ट्रेलिया ने इस वर्ष ही इसमें शामिल होने पर सहमति जतायी है.
ग्रीनहाउस गैसों के रूप में सक्षम रेफ्रिजेरेंट्स और हाइड्रोफ्लूरोकार्बन्स के उत्सर्जन को खत्म करने के लिए एक दशक पूर्व किये गये ओजोन सुरक्षा संधि में संशोधन के जरिये इस्तेमाल में लाने पर भी दोनों देशों के बीच सहमति कायम हुई है, ताकि इसे कार्यान्वित करने के लिए गरीब देशों को वित्तीय मदद भी मुहैया करायी जा सके. लेकिन, अधिकारियों का कहना है कि हाइड्रोफ्लूरोकार्बन्स के उन्मूलन का वास्तविक करार इसके सभी साझेदारों की मौजूदगी में ही मुमकिन होगा. अक्तूबर में रवांडा में इस संबंध में एक संधि प्रस्तावित है, जहां इसके साझेदार जुटेंगे.
दोनों सरकारों ने कहा है कि उनकी सेनाओं को साथ मिल कर काम करने में आसानी हो, इसके लिए एक डिफेंस लाॅजिस्टिक्स एग्रीमेंट को अंतिम रूपरेखा दी जा चुकी है. भारत ने भले ही अमेरिका को इस संबंध में फॉर्मल एलायंस होने का संकेत दिया है, लेकिन चीन के उभार से दोनों ही देश वाकिफ हैं और उससे जुड़ी चिंताओं को साझा करते हैं.
प्रधानमंत्री बनने के बाद से पिछले दो सालों में मोदी की यह चौथी अमेरिका यात्रा है और ओबामा के साथ उनकी यह सातवीं मुलाकात है. इस दौरान मोदी और आेबामा के बीच एक मजबूत रिश्ता देखा गया है. पिछले वर्ष ओबामा जब भारत की यात्रा पर गये थे, तब एयर फोर्स वन से बाहर निकलते ही मोदी ने बेहद गर्मजोशी से उनका स्वागत किया था और उन्हें गले लगा लिया था.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इस पर सवाल करते हैं कि दोनों नेताओं द्वारा एक-दूसरे की प्रशंसा करना क्या उनके बीच वास्तविक लगाव को दर्शाता है? पिछले काफी समय से भारत खुद को ताकतवर देशों द्वारा उपेक्षित महसूस करता रहा है, जबकि खुद को वह एक ताकतवर और उच्च शिक्षित देश के रूप में देखता है.
गरीबी, गंदे रास्तों और उसकी जाति व्यवस्था की बदहाल ताकत की वहज से उसे अक्सर खारिज किया गया. गुजरात में हुए दंगों के तीन वर्षों बाद 2005 में मोदी जब वहां के मुख्यमंत्री थे, तब उन्हें अमेरिकी यात्रा का वीजा नहीं जारी किया गया था.
– द वािशंगटन पोस्ट की रिपोर्ट का मुख्य अंश.