दक्षा वैदकर
कई बार जब हमें कोई डांट देता है या अपमानित कर देता है, तो हमें यह बात बहुत बुरी लगती है. हम उन शब्दों को भूल ही नहीं पाते, जो सामने वाले ने कहे. हम उस दृश्य को बार-बार याद करते हैं, सोचते हैं, अपने दिमाग में दोहराते हैं. हम सोचते हैं कि उसने कब, कहां, कितने लोगों के सामने, किस लहजे में हमें यह बोला. हम उसे कोसते हैं कि आखिर उसकी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की? उसमें इनसानियत नाम की चीज है भी या नहीं?
हम ऑफिस के दोस्तों को बताते हैं कि हमें उस व्यक्ति की बात का कितना बुरा लगा. हम घर जा कर मां-बाबा, पत्नी या भाई-बहन को पूरी घटना बताते हैं और दोबारा उस वाकये से गुजरते हैं. इस तरह जितनी बार हम वह घटना सोचते हैं, बोलते हैं, बताते हैं, याद करते हैं, हमारा दर्द बढ़ता जाता है. सोच-सोच कर सिर भारी होने लगता है. रो-रो कर आंखें दुखने लगती हैं.
रातों की नींद उड़ जाती है, किसी काम में मन नहीं लगता और सीने में तकलीफ होने लगती है. इन सब के बजाय अगर हम बहस होने के उसी क्षण यह सोचें कि यह बहुत छोटी बात है. वह व्यक्ति गुस्से में है या घर में झगड़ा हुआ है, इसलिए आपा खो चुका है. उसका कहने का मकसद ऐसा नहीं था. माफ कर दो… तो आप अागे की इन सारी समस्याओं से पल भर में छुटकारा पा सकते हैं. आपको वह कहानी तो जरूर पता होगी, जो एक प्रोफेसर अपने स्टूडेंट्स को बताते हैं.
वह एक भरा हुआ गिलास हाथ में ले कर कहते हैं कि यह गिलास अभी बहुत हल्का लग रहा है, लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरता जायेगा और मैं इस गिलास को इसी तरह पकड़े रहूंगा, तो मेरा हाथ दर्द करने लगेगा, फिर कंधा दुखने लगेगा और इसके बाद मेरा पूरा शरीर तकलीफ में आ जायेगा. जिंदगी की समस्याओं, घटनाओं के साथ भी कुछ ऐसा ही है. बेहतर है कि उसे तुरंत अपने दिमाग से निकाल दें.
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