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संयुक्त राष्ट्र की मान्यता से योग की लोकप्रियता में उछाल, दुनियाभर में मांग भी, ब्रांड भी

योग की धूम योग को पिछले साल संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिलने के बाद से एक विश्वसनीय ब्रांड और इंडस्ट्री के तौर पर दुनियाभर में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है. अब दुनियाभर में 30 करोड़ से ज्यादा लोग नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं. भारत में यह संख्या दो करोड़ से अधिक है, तो […]

योग की धूम
योग को पिछले साल संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिलने के बाद से एक विश्वसनीय ब्रांड और इंडस्ट्री के तौर पर दुनियाभर में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है. अब दुनियाभर में 30 करोड़ से ज्यादा लोग नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं. भारत में यह संख्या दो करोड़ से अधिक है, तो अमेरिका जैसे मुल्क में भी डेढ़ करोड़ से अधिक लोग योग को अपना चुके हैं और वहां योग का कारोबार 30 अरब डॉलर की सीमा लांघ चुका है.
‘अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स एंड मेडिसिन’ ने अपने एक सर्वे के आधार पर इस साल योग को दुनिया के टॉप-10 फिटनेस ट्रेंड में स्थान दिया है. जापान में बीते पांच सालों में योग से जुड़े कारोबार में 413 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. जाहिर है, योग को अब दुनियाभर में एक तेजी से उभरती इंडस्ट्री के रूप में देखा जा रहा है और इस लिहाज से भारतीयों के लिए इसमें बड़े मौके छिपे हैं. भारत समेत दुनियाभर में योग के तेजी से हो रहे फैलाव और इसमें छिपे कारोबारी मौकों पर नजर डाल रहा है आज का विशेष पेज…
– प्रेम प्रकाश
बी ते दो दशकों में जिस तरह विश्व में विकास और समृद्धि को लेकर निजी और सार्वजनिक अवधारणा बदली है, उसने समय और समाज के सामने उपलब्धियों की चौंध तो पैदा की ही है, तमाम तरह की शारीरिक-मानसिक परेशानियों को भी बढ़ाया है. आज शहरी कामकाजी समाज में अवसाद और तनाव इस तरह व्याप्त है कि इससे मुक्ति के लिए हर तरफ एक बेचैनी है. इन बेचैनियों के बीच भारत की करीब पांच हजार साल पुरानी योग की विरासत हेल्थ और फिटनेस की नयी दरकार बन कर सामने आयी है. भागती-दौड़ती जिंदगी के बीच सेहत को लेकर जिस तरह लोग जागरूक हो रहे हैं, उससे योग को लेकर एक स्वाभाविक आकर्षण आज हर तरफ दिख रहा है.
मन और शरीर को एक संयमित अनुशासन में ढालने की नयी ग्लोबल ललक का नतीजा यह है कि योग आज दुनिया के पांच सबसे तेजी से बढ़नेवाले आर्थिक उपक्रमों में शामिल है. ब्रांड और इंडस्ट्री के तौर पर बढ़ी योग की वैश्विक स्वीकृति का आलम यह है कि दुनियाभर में 30 करोड़ से ज्यादा लोग नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं. अमेरिका जैसे मुल्क में भी करीब तीन करोड़ लोग योग को अपना चुके हैं और वहां योग का कारोबार 30 अरब डॉलर की सीमा लांघ चुका है. ‘अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स एंड मेडिसिन’ ने अपने एक सर्वे के आधार पर इस साल योग को दुनिया के टॉप-10 फिटनेस ट्रेंड में स्थान दिया है. जापान में पांच सालों में योगा में 413 फीसदी बढ़ोतरीहुई है.
भारत में दो से तीन हजार करोड़ का उद्योग
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पेशकश पर ही संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन को अपनी मंजूरी देते हुए इसके लिए 21 जून का दिन निर्धारित किया था. पिछले वर्ष 21 जून को पहली बार दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया गया.
एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में योग उद्योग दो से तीन हजार करोड़ रुपये का है. यहां योग करनेवालों की संख्या 2001 में 60-65 लाख थी, जो 2015 में दो करोड़ तक पहुंच गयी. भारत में योग ट्रेनर की फीस 400 से 2,000 रुपये प्रति घंटा है. कुछ जिम और फिटनेस ट्रेनिंग सेंटर योग और हर्बल ब्यूटी थेरेपी का कोंबो पैकेज पेश कर भी लोगों को लुभा रहे हैं.
योगासनों के पेटेंट की जंग
वर्ष 2007 में अमेरिका में भारतीय मूल के योग गुरु विक्रम चौधरी ने तमाम योगासनों, उनकी पद्धतियों और उनसे जुड़े जरूरी उपकरणों पर अमेरिकी कॉपीराइट कार्यालय से पेटेंट हासिल कर लिये थे.
भारत में योग का पेटेंट हासिल करने की मांग तभी से ही उठ रही है. लेकिन, पिछले दो सालों को छोड़ दें, तो इस बारे में हमारे यहां ज्यादा गंभीर पहल नहीं की गयी. योग पर पेटेंट का अभिप्राय है कि हमें किसी खास आसन को करने और उससे जुड़े उपकरणों का इस्तेमाल करने तक पर रॉयल्टी देनी पड़ सकती है. योग पर पेटेंट की लड़ाई भारत के लिए आसान नहीं है, क्योंकि दुनियाभर में आज योग के 30 से भी ज्यादा प्रकार प्रचलन में हैं.
बहरहाल, भारत सरकार 1,500 योग मुद्राओं और आसनों का पेटेंट हासिल करने में जुटी है. नयी दिल्ली स्थित ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी को इन मुद्राओं-आसनों के वीडियो संग्रह का जिम्मा सौंपा गया है. सभी मुद्राओं के लिखित विवरण का हिंदी, अंगरेजी, फ्रांसीसी, चीनी, जापानी, स्पैनिश, जर्मन समेत सैकड़ों भाषाओं में अनुवाद हो रहा है. ये वीडियो संग्रह और लिखित विवरण विभिन्न देशों में पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क जारी करनेवाली संस्थाओं को भेजने की योजना है. इससे पाइरेसी रोकने के साथ-साथ झूठे दावे पर पेटेंट या ट्रेडमार्क हासिल करने की दुनियाभर में चल रही कोशिशें नाकाम करने में मदद मिलेगी.
प्रचलित हैं 30 से ज्यादा किस्म के योग : आज पूरी दुनिया में पावर योगा, हॉट योगा, फ्लो योगा, फॉरेस्ट योगा से लेकर स्नो योगा तक 30 से ज्यादा किस्म के योग प्रचलित हैं. कोई वजन कम करने के लिए योग कर कर रहा है, तो कोई चिर युवा बने रहने के लिए. पर इस सबके बीच योग और अध्यात्म का साझा कहीं न कहीं दरका है. आज अध्यात्म और शांति को भी लोग दो मिनट नूडल्स की तरह चाहते हैं. भौतिक सुखों के पीछे भागने की होड़ और अपनी व्यस्त जीवनशैली में तनाव मुक्ति और स्वास्थ के लिए योग की शरण में आ रहे हैं.
योग को मॉडर्न फिटनेस स्टाइल में बदलनेवाले पांच ट्रेनर्स
1. हेयदी क्रिस्टोफर
योग स्टाइल : विन्यासा फ्लो
न्यूयार्क में योग और हीलिंग का प्रशिक्षण दे रही इस स्टाइलिश योगा ट्रेनर को लोग अपसाइड-डाउन गर्ल भी कहते हैं.
2. एलेना ब्रोअर
योग स्टाइल- कुंडलिनी
न्यूयार्क में 16 सालों से योग सिखा रही एलेना की ख्याति एक स्टाइलिश और इंस्पीरेशनल योगिनी के तौर पर है.
3. टिफेनी क्रयूशनेक
योग स्टाइल- विन्यासा
टिफेनी योगा और वेलनेस को लेकर लोगों को विविध तरह के शारीरिक मानसिक अभ्यास कराते हैं.
4. नोह मेज
योग स्टाइल- अनुसरा, अष्टांग, विन्यासा
नोह लाॅस एंजेल्स में अपने खास अंदाज में योग प्रशिक्षकों को योग सिखाते हैं.
5. कैथरीन बुडिग
योग स्टाइल- विन्यासा फ्लो
कैथरीन पिछले आठ सालों से लोगों को अपने घर पर योग करने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
कुछ प्रमुख योग संस्थान
– योगदा सत्संग सोसाइटी, रांची
इस संस्थान की स्थापना विख्यात योग व आध्यात्मिक गुरु और ‘एन ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ के लेखक परमहंस योगानंद द्वारा 1917 में की गयी थी. इस संस्थान में योग के साथ डीप मेडिटेशन का अभ्यास कराया जाता है.
– बिहार स्कूल ऑफ योगा, मुंगेर
इसकी स्थापना 1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने की थी. इस संस्थान की आज भी देश और विदेशों में काफी प्रतिष्ठा है.
– रमामणि अयंगर मेमोरियल योगा इंस्टीट्यूट, पुणे
इसकी स्थापना विख्यात योग गुरु बीकेएस अयंगर ने 1975 में की थी. आधुनिक दौर में अयंगर को पूरी दुनिया में योग को लोकप्रियता और प्रतिष्ठा दिलाने का बड़ा श्रेय दिया जाता है.
– आर्ट ऑफ लिविंग, बेंगलुरू
श्रीश्री रविशंकर द्वारा 1982 में इस संस्थान की ख्याति ध्यान की समन्वित साधना विधि सुदर्शन क्रिया के प्रशिक्षण के कारण है. यहां के योग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में जीवन की नकारात्मक प्रवृत्तियों को दूर करने पर खासतौर पर जोर दिया जाता है.
– ईशा फाउंडेशन, कोयंबटूर
जग्गी वासुदेव द्वारा 1992 में स्थापित इस संस्थान की आज योग और अध्यात्म शिक्षा के क्षेत्र में काफी ख्याति है. इस संस्थान में योग और मेडिटेशन से जुड़े अल्प और दीर्घ अवधि के कई कोर्स कराये जाते हैं.
– योगा इंस्टीट्यूट, मुंबई
यह काफी पुराना योग संस्थान है. 2018 में यह संस्थान अपने सौ वर्ष पूरे कर लेगा. इसकी स्थापना स्वामी योगेंद्र ने की थी.
– पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार
योगगुरु बाबा रामदेव द्वारा हरिद्वार में 2006 में स्थापित पतंजलि योगपीठ आज भारत ही नहीं, बल्कि विश्व का सबसे बड़ा योग संस्थान माना जाता है.
– अष्टांग संस्थान
यह संस्थान मैसूर, कर्नाटक में है. इसकी स्थापना 2009 में गुरु कृष्ण पट्टाभि की मृत्यु के बाद उनके परिजनों ने उनकी स्मृति में की थी.
– परमार्थ निकेतन
ऋषिकेश में स्थित यह योग संस्थान पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है. पर्यटक यहां योग रिजार्ट का आनंद लेने पहुंचते हैं.
– कृष्णामचर्या योग मंदिरम
चेन्नई स्थित इस योग मंदिर की स्थापना 1976 में योग गुरु टीकेएस कृष्णामचर्या के पुत्र ने की थी.
– शिवानंद योग वेदांत धन्वंतरि संस्थान
केरल में स्थित इस योग संस्थान की स्थापना 1959 में स्वामी शिवानंद के शिष्यों ने की थी.
– विपश्यना, नासिक
एस एन गोयनका द्वारा 1969 में स्थापित इस संस्थान में बौद्ध धर्म से जुड़ी शिक्षा के साथ योग और ध्यान के लिए विभिन्न तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाते हैं.
भारत में वेलनेस इंडस्ट्री का कारोबार "490 अरब का
भारत में योग की बढ़ती लोकप्रियता के बीच वेलनेस इंडस्ट्री का कारोबार 490 अरब रुपये तक होने का अनुमान है. देशभर में आयुष सेक्टर (आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होमियोपैथी) का सालाना टर्नओवर करीब 120 अरब रुपये तक पहुंच चुका है. इस सेक्टर में 80 फीसदी से ज्यादा उद्यमी माइक्रो, स्मॉल और मीडियम तबके के उद्यमियों का वर्चस्व कायम है.
2014 में आयुष मंत्रालय की स्थापना : योग और स्वास्थ्य से संबंधित अन्य विधाओं को प्रोमोट करने के लिए सरकार ने नवंबर, 2014 में आयुष मंत्रालय की स्थापना की. यह मंत्रालय देश में पारंपरिक हेल्थेकयर सिस्टम की खूबियों को बताने का काम कर रहा है. पहले इसे डिपार्टमेंट ऑफ इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन एंड होमियोपैथी के नाम से जाना जाता था, जिसका गठन मार्च, 1995 में किया गया था. बाद में नवंबर, 2003 में इसका नाम बदल कर डिपार्टमेंट आॅफ आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होमियोपैथी कर दिया गया. यह मंत्रालय आयुष सेक्टर में शिक्षा और शोध के अलावा हेल्थकेयर सर्विस और ट्रेनिंग मुहैया कराती है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आयुष सेक्टर की दवाएं बनाने में करीब करीब 9,000 मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स शामिल हैं. भारत से बड़ी मात्रा में इन दवाओं का निर्यात किया जाता है. 2013-14 के दौरान करीब 22.7 अरब रुपये मूल्य का आयुष उत्पादों का निर्यात भारत से किया गया. मुख्य रूप से यह निर्यात पश्चिमी यूरोपिय देशों, रूस, अमेरिका, कजाकिस्तान, यूएइ, यूक्रेन, जापान, फिलीपींस और केन्या को किया गया.
योग की ओर आकर्षित हो रही है युवा पीढ़ी : विगत वर्ष ऋषिकेश में इंटरनेशल योग फेस्टिवल का आयोजन किया गया, जिसमें दुनियाभर से युवाओं ने हिस्सा लिया था. पिछले कुछ सालों तक योग की पहुंच यंगस्टर्स तक नहीं के बराबर थी, लेकिन आज की युवा पीढ़ी जिम और एरोबिक्स से ज्यादा योग की तरफ आकर्षित हो रही है. योग प्रशिक्षक कौशल का मानना है कि आज की युवा पीढ़ी बड़े शौक से योग को अपना रही है. योग का यह नया रूप केवल भारत में ही नहीं, दुनियाभर में नजर आ रहा है. अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया, चीन और जापान तक योग अपनी पहचान बना रहा है. आज अमेरिका के सबसे महंगे कारोबारी केंद्र मैनहट्टन एस्टेट और एंपायर एस्टेट जैसे इलाकों तक में योग स्टूडियोज खोले जा रहे हैं. इन स्टूडियोज को चलानेवाले ज्यादातर युवा हैं. डीवीडी, किताबें, टीवी चैनल्स, वेबसाइट्स और कुछ योग संस्थाओं के जरिए युवा अपनी जिंदगी में योग के माध्यम से सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं.
दुनियाभर में बढ़ रही है योग के इंस्ट्रक्टर्स की मांग : हाल के दशकों में बड़े शहरों में रहने, कॉरपोरेट और बिजनेस फर्म्स में काम करनेवाले लोगों में तनाव का स्तर बढ़ा है. इससे निबटने के लिए लोगों के साथ-साथ कॉरपोरेट और बिजनेस फर्म्स भी प्रभावी थैरेपी के तौर पर योग को अपना रहे हैं.
अनेक संगठन अपने कर्मचारियों को काम के दौरान योग करते रहने के तरीके बताने के लिए योग शिक्षकों को बुला रहे हैं. इससे कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ी है. उद्यमियों की देश की अग्रणी संस्था एसोचेम के एक अध्ययन के मुताबिक, देश में योग के इंस्ट्रक्टर्स की मांग में अगले दो सालों के दौरान 30 से 35 फीसदी तक की बढ़ोतरी जारी रह सकती है.
क्रियायोग से सकारात्मक परिवर्तन संभव
स्वामी योगानंद के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्म
भूपेंद्र यादव
महासचिव, भाजपा
वर्ष 1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा जा रहा था, तब प्रत्येक बौद्धिक और विचारशील मन में भौतिकतावादी दृष्टि पर आधारित जीवन की समस्याएं चिंतित करनेवाली थी. यूरोपीय पुनर्जागरण धार्मिक मतांधता और दुराग्रह को परास्त करते हुए धर्मनिरपेक्ष अथवा धर्म विरोधी हो चला था. विचारशीलता या विवेकशीलता का वैज्ञानिक मन मानवतावादी एवं लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रशसंक था, परंतु इसे वास्तविकरूप में चरितार्थ करना मुश्किल जान पड़ता था.
युद्ध, हिंसा, भेद-भाव, नफरत, आधिपत्य किसी भी देश, संस्कृति, समुदाय को स्वयं को सुरक्षित रखने के न्यायोचित तरीके जान पड़ते थे. ऐसे समय में एक भारतीय संन्यासी की आत्मकथा का प्रकाशन हुआ, जो पूर्व की धरती से योग एवं अध्यात्म की संपदा लेकर दैवीय शक्तियाें के प्रसार हेतु पश्चिम गये थे. इस आत्मकथा का नाम‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ है, जिसेहिंदी भाषा में ‘योगीकथामृत’ के रूप में जाना जाता है.विश्व की 26 भाषाओं में अनुदित इस पुस्तक को बौद्धिक रूप से जाग्रत वर्ग ने सकारात्मक ढंग से प्रभावित करनेवाली श्रेष्ठ पुस्तक माना है.
भारतीय अध्यात्म एवं योग के पूरी दुनिया में प्रसार हेतु योगी कथामृत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इसी पुस्तक और इसके रचनाकार परमहंस योगाननंद जी के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘अवेक’ अंगरेजी में बनायी गयी है, जिसमें योगी के जीवन की घटनाआें की प्रस्तुति के साथ उनके वीडियो, उनके जीवन व दर्शन को साक्षात जानने, अनुभव करनेवाले और प्रभावित हानेवाले महानुभावाें के इंटरव्यू है.
इस फिल्म को 17 जनू, 2016 को भारत में रिलीज किया गया है. ऐसे समय में जब संपूर्ण विश्व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने जा रहा है, योग को लोकप्रिय और सर्वसुलभ बनाने में परमहंस योगाननंद जी के जीवन का स्मरण प्रासंगिक है. यह फिल्म बालक मुकंद के बचपन से जाग्रत आध्यात्मिक पुकार के साथ परमहंस योगानंद बनने की कहानी भर नहीं है. योगी की जीवनी के साथ भारतीय योग, इसके अभ्यासियों का परिचय, उन अभ्यासियाें की जीवन दृष्टि और दर्शन का परिचय भी कराती है, जिनकी आध्यात्मिक साधना मनुष्य की चेतना के उच्चतम स्तरों काे प्राप्त कर प्रेम, मानवता एवं धर्मसमन्वय का संदेश देकर गयी. ‘अवेक’ यानी अविधा या अज्ञान आधारित सुषुप्तावस्था से जागने, अचेत या अवचेतन से निकल कर सचेत हाेने का संकेत करता है.
परमहंस योगानंद ने अपनी गुरु के आशीर्वाद और मार्गदर्शन में ‘क्रियायोग’ का पथ पूरी दुनिया के लिए प्रशस्त किया, जिसमें सक्रिय होकर अपनी आंतरिक ऊर्जा को जगाया जाता है और इस आंतरिक ऊर्जा के प्रति सचेत होकर बाह्य विषयों से तारतम्य व संतुलन बनाते हुए परमचेतना, जो अखण्ड अनादि परमात्मा रूप है, उसका दिव्य अनुभव किया जाता है. योगानंद जी का क्रियायोग विज्ञान व अध्यात्म का सुंदर समन्वय करता है. भारतीय योग एवं अध्यात्म को सामान्यजन काफी गहराई का विषय मान लेते हैं.
उन्हें लगता है कि यह मार्ग सिर्फ हिमालय की गुफाआें में रहनेवाले संन्यासियाें का है. विश्व में पूर्व के दर्शन काे धार्मिक और रहस्यमय माना जाता रहा है. पश्चिम के विचारप्रधान दर्शन को यह तर्कसंगत नहीं लगता है. वे इसे सामान्य अनुभव से परे संशय से देखते रहे हैं, परंतु क्रियायाेग के माध्यम से योगानंद जी ने पश्चिम को उस परम आनंद एवं अनुभव से परिचित कराया, जो सामान्य विचार, अनुभव और तर्कशीलता से परे असीम, अनित्य आनंद व शांति की अवस्था है, जिसके माध्यम से अपने अस्तित्व एवं समस्त सत्ता के अस्तित्व के प्रति जाग्रत हाेकर अथवा सचेत होकर धर्म के वास्तविक सरोकार मानवता, प्रेम व सत्य के प्रति समाज को जागरूक किया जा सकता है.
क्रियायाेग के माध्यम से मनुष्य में सकारात्मक परिवर्तन संभव होता है. वह राग-द्वेष आदि विकाराें से मुक्त हाेकर सद्गुणी बनता है और स्वयं के भीतर दिव्यात्मा का अनुभव करता है. योगानंद जी ने इसे भगवतगीता के भक्तियोग से समझाया है. साथ ही इस भक्तियोग व ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण के अन्य धर्मों के संतजनों एवं आदर्श पुरुष से इसकी साम्यता भी समझायी, जो उनके सच्चे एवं पवित्र मन से जानी गयी धर्म समन्वय की धारणा को प्रकट करता है. याेग वर्तमान समाज की आवश्यकता है, क्योंकि मनुष्य अपनी शक्तियाें का
वास्तविक सदुपयोग कर एक सुंदर समाज और विश्व तभी बना सकता है, जब वह तन व मन से स्वस्थ हो. यदि आप आस्तिक हैं, तो यह आपके इष्ट या आदर्श की उपासना का मार्ग है. यदि नास्तिक हैं, तो सक्षम बन कर समाज के लिए सहयोगी एवं सदुपयाेगी हाेने की राह है. सूचना एवं तकनीकी क्रांति ने पूरे विश्व काे आपस में जाेड़ दिया है, परंतु जब तक हम बाहरी रूप से निर्भर हैं, लक्ष्यहीनता, विद्वेष, हिंसा, संघर्ष, असफलता, कुंठा, अवसाद जैसी समस्या उभरती रहेगी. ये समस्याएं वैश्विक स्तर से वैयक्तिक स्तर तक है. आज पूरब और पश्चिम में सामाजिक एवं सांस्कृतिक भिन्नता के बावजूद सामाजिक और वैयक्तिक समस्याएं एक जैसी हैं. हम धार्मिक दुराग्रह, धर्म के दुरुपयाेग एवं पहचान के संकट से जूझ रहे हैं. हमारी कौन सी इच्छाएं उचित हैं तथा इनमें से कौन सी हमें याेग्य, समर्थ और उपयाेगी बना सकती हैं, इसी साेच में आज व्यक्ति तथा समाज दोनाें उलझे हुए हैं. इसका उत्तर याेग पर आधारित जीवन पद्धति में ढूंढ़ा जा सकता है. परमहंस योगानंद जी की योगी कथामृत पुस्तक के बाद उनके जीवन के मूल्यांकन पर बनी यह फिल्म पश्चिम के समाज के साथ भारत में भी हमारे यौगिक मूल्यों के प्रचार में महत्वपूर्ण है.
जिस भौतिकतावाद के संकट से पश्चिमी समाज ग्रसित रहा है, वह संकट अब हमारे समाज के सामने भी आ गया है, इसलिए भौतिकवाद की अनिराशा एवं इंद्रिय तृष्णा की अशांति का निराकरण आध्यात्मिक उन्नयन के द्वारा ही हाे सकता है और यह फिल्म इसी दृष्टिकोण को समझाने में मदद करती है.

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