इंटरनेट डेस्क
आज ब्रिटेन में यूरोपियन यूनियन को लेकर जनमत संग्रह हो रहा है. इस जनमत संग्रह के बाद यह तय होगा कि ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन में शामिल होना चाहता है या नही. बदलते वक्त के साथ यूरोपियन यूनियन की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े होने लगे हैं. लेकिन ईयू दुनिया की सबसेप्रभावशालीव सफल वैश्विकसंस्था के रूप में जानी जाती है. यूरोप को एक विकसित महाद्वीप बनाने में इस संस्था की बहुत बड़ी भूमिका है. हालांकि अब इसके अस्तित्व पर सवाल खड़े होने लगे हैं.
दरअसल द्वितीय विश्वयुद्ध में हुए भारी रक्तपात के बाद यूरोप के सभी देश शांति चाहते थे. यूरोपियन देशों के बीच आपसी टकराव व युद्ध की स्थिति से एक ऐसी संस्था की कमी महसूस होने लगी, जो सभी देशों के बीच एकता स्थापित कर सकें और व्यापार को बढ़ावा दें. शुरुआती दौर में इस उद्देश्य से 1951 में स्टील व कोल कम्युनिटी नाम की संस्था बनी. फ्रांस, वेस्ट जर्मनी, इटली, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड इसके संस्थापक सदस्य थे. आगे चलकर 1956 में यही संस्था यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी में तब्दील हो गयी.
60 के दशक में इस संस्था ने रफ्तार पकड़ ली. अब यूरोपियन यूनियन के देशों के बीच कस्टम ड्यूटी लगना बंद हो गया था. सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनी कि ईयू के हर सदस्य साथ मिलकर खाद्य उत्पादन करेंगे और अब कोई भूखा नहीं रहेगा. धीरे-धीरे यूरोपियन यूनियन सरप्लस अनाज का उत्पादन करने लगा. 1973 में यूरोपियन यूनियन से तीन अन्य देश जुड़े- डेनमार्क,आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम. 70 के दशक में ही यह निर्णय लिया गया कि यूरोप के दूर-दराज इलाकों तकइन्फ्रास्ट्रक्चरको विकसित किया जाये व नौकरियों के सृजन के दिशा में काम हो.
यूरोपियन यूनियन ने प्रदूषण से लड़ने के लिए साझा रणनीति बनायी. ईयू ने पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर कानून भी पारित किया. 80 के दशक में यूरोपियन यूनियन को तीन और सदस्य मिले – ग्रीस, स्पेन पुर्तगाल. धीरे-धीरे सदस्य देशों के सीमा एक दूसरे के लिए खुलने लगी. अब सदस्य देशों के बीच गुड्स, सेवा, इंसान व पैसा बिना रोक-टोक के एक-दूसरे देशों में प्रवेश कर सकता था. साल 1993 में इस संस्था का नाम यूरोपियन यूनियन हो गया. सदस्य देशों के बीच आपसी सहमति बनी कि अबयूरोपियनयूनियन की मुद्रा " यूरो" होगा. ग्रीस में आये आर्थिक संकट व शरणार्थियों की भारी संख्या की वजह से यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है. लिहाजा, सदस्य देशों के बीच इस संगठन में बने रहने को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.