पांच देशों ने 1996 में मिल कर बनाया था यह संगठन
मध्य एशिया के देश उजबेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन(एससीओ) का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन चल रहा है. इस बैठक में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ताशकंद में हैं. सम्मेलन में भारत एससीओ की सदस्यता की औपचारिकता पूरी करने के लिए दायित्व संबंधी एक करार पर हस्ताक्षर करेगा. आइए जानें नाटो के समतुल्य माने जानेवाले संगठन एससीओ के बारे में.
शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की शुरुआत अप्रैल, 1996 में हुई, जब चीन और पूर्व सोवियत-चीन सीमा के उत्तराधिकारियों – रूस, कजाखस्तान, किर्गिजिस्तान और ताजिकिस्तान के नेताओं ने आपसी सीमाओं पर आपसी सैन्य-विश्वास को बढ़ाने के लिए उपायों की एक संधि पर हस्ताक्षर किये. एक साल बाद वर्ष 1997 में अपने मास्को शिखर सम्मेलन में ‘शंघाई पंच-गुट’ के नाम से जाने जानेवाले इन देशों ने अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में सेनाओं की तैनाती को घटाने की संधि पर हस्ताक्षर कर पुराने सोवियत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाया.
इराक और पूर्व युगोस्लाविया पर आक्रमण करके अमरीका द्वारा एकध्रुवीय विश्व में अपनी प्रभुसत्ता को मजबूत बनाने का जो प्रयास किया जा रहा था, उसकी पृष्ठभूमि में, वर्ष 2000 में ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हुए अपने शिखर सम्मेलन में शंघाई पंच-गुट के नेताओं ने ‘मानवतावाद’ और ‘मानवाधिकारों की रक्षा’ की आड़ में अन्य राष्ट्रों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप का मिल कर विरोध करने और अपनी-अपनी स्वाधीनता, सार्वभौमिकता और क्षेत्रीय अखंडता तथा सामाजिक स्थिरता की सुरक्षा के लिए एक-दूसरे के प्रयासों का समर्थन करने का फैसला किया. इसके साथ-साथ उन्होंने रूस के चेचेन्या में आतंकियों और तालिबान द्वारा शासित अफगानिस्तान से रिसते अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खतरे को देखते हुए उजबेकिस्तान को भी अपना सदस्य बनाने का फैसला किया.
इस प्रकार वर्ष 2001 में शंघाई में हुए शिखर सम्मलेन में उजबेकिस्तान को अपने साथ शामिल करने के बाद क्षेत्रीय सहयोग के अलावा इनका लक्ष्य वर्तमान काल के प्रमुख खतरों – आतंकवाद, पृथकतावाद, अतिवाद और मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ मिल कर संघर्ष करना भी हो गया. जून, 2002 में रूस के सांक्त पितेरबुर्ग नगर में हुए शिखर सम्मलेन में छह देशों के नेताओं ने शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन के घोषणापत्र को स्वीकार करके इसे एक क्षेत्रीय संगठन से अंतरराष्ट्रीय संगठन में बदल दिया और भविष्य में नये सदस्यों के लिए इसकी सदस्यता के द्वार खोल दिये.
पिछले साल रूस के उफा नगर में शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन के शिखर सम्मेलन में संस्थापक देशों ने भारत और पाकिस्तान को शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन का पूर्ण सदस्य बनाकर इस क्षेत्रीय संगठन का विस्तार करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था. रूस, चीन, कजाकस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान एससीओ के स्थायी सदस्य देश हैं. शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन के छह सदस्य देशों का भू-भाग यूरोशिया का 60 प्रतिशत है.
यहां दुनिया की एक चौथाई आबादी रहती है. वर्ष 2005 में कजाकस्तान के अस्ताना में हुए सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने भी पहली बार हिस्सा लिया. एससीओ ने संयुक्त राष्ट्र से भी संबंध स्थापित किये हैं और यह महासभा में पर्यवेक्षक है. एससीओ ने यूरोपीय संघ, आसियान, कॉमनवेल्थ और इसलामिक सहयोग संगठन से भी संबंध स्थापित किये हैं. इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर सहयोग बढ़ाना है.
पश्चिमी मीडिया मानता रहा है कि एससीओ का मुख्य उद्देश्य नाटो के बराबर खड़ा होना है. अब तक भारत एससीओ में पर्यवेक्षक देश के रूप में रहा है. इस बार भारत पूर्ण सदस्य के रूप में भाग ले रहा है. रूस भारत को स्थायी सदस्य के तौर पर जुड़ने के लिए प्रेरित करता रहा है. चीन ने भी एससीओ में भारत का स्वागत किया था. भारत ने सितंबर, 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया था. अब तक पाकिस्तान भी एससीओ का पर्यवेक्षक देश रहा है. वह भी इस बार पूर्ण सदस्य के रूप में भाग ले रहा है. ईरान को भी पर्यवेक्षक देश का दर्जा प्राप्त है. अमेरिका ने वर्ष 2005 में संगठन में पर्यवेक्षक देश बनने के लिए आवेदन किया था, जिसे नकार दिया गया था.
राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि एससीओ की सदस्यता भारत को आतंकवाद से मुकाबला करने के साथ ही सुरक्षा और रक्षा से संबंधित मुद्दों पर व्यापक तरीके से अपनी बात कहने में मदद करेगी. दुनिया में सर्वाधिक ऊर्जा खपत वाले देशों में शामिल भारत एससीओ का सदस्य बनने के बाद मध्य एशिया में बड़ी गैस और तेल अन्वेषण परियोजनाओं में अपनी पैठ बढ़ा सकता है.