प्रकृति की ओर लौटते पंजाब के किसान
ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता, दिल्ली किसान हरजंट सिंह अपने गांव में निराले समझे जाते हैं. गांव का हर किसान उन्हें पहचानने का दावा करता है. हर कोई आपको उनके पास ले जाने का उत्साह दिखाता है. आख़िर उनमें क्या बात है जो दूसरों में नहीं? राय की कलां पंजाब के भटिंडा ज़िले में एक छोटा […]
किसान हरजंट सिंह अपने गांव में निराले समझे जाते हैं. गांव का हर किसान उन्हें पहचानने का दावा करता है. हर कोई आपको उनके पास ले जाने का उत्साह दिखाता है.
आख़िर उनमें क्या बात है जो दूसरों में नहीं?
राय की कलां पंजाब के भटिंडा ज़िले में एक छोटा सा गांव है जहां हरजंट सिंह सदियों से चली आ रही परंपरागत तरीक़े से खेती करते हैं. उन्होंने अपने खेतों में कभी कोई केमिकल इस्तेमाल नहीं किया. जेनेटिक तौर पर मोडिफ़ाइड या जीन संवर्धित बीज का कभी इस्तेमाल नहीं किया.
ये काम आसान नहीं था. उनके आस-पास सभी किसान और राज्य और इसके बाहर के किसान अगर नई बीजों और केमिकल का इस्तेमाल कर रहे हों तो इससे बचना कठिन काम होता है. हरजंट सिंह इस चक्कर में नहीं आए. आज किसान मानते हैं कि हरजंट सिंह सही थे और वो ख़ुद ग़लत.
अपने आप में ये काफ़ी सराहनीय है क्योंकि पिछले 20-25 सालों में पंजाब के किसानों ने अधिक से अधिक पैदवार के लालच में आकर जीन संवर्धित बीज का भरपूर इस्तेमाल किया है. खेतों में केमिकल का ज़ोरदार इस्तेमाल किया है.
आज इसका नतीजा ये है कि खेतों के ऊपर के परत पथरीले हो गए हैं. कपास की काश्त लगभग तबाह हो गई है. सब्ज़ियां केवल जैनेटिकली मोडिफ़ाइड बीजों से उगाई जाती हैं. ये हरी दिखती हैं लेकिन केमिकल से भरी होती हैं.
हरजंट सिंह कहते हैं, "मैंने देखा कि नए बीजों और केमिकल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सरकार कृषि विश्वविद्यालयों और इश्तिहार के ज़रिए कितनी कोशिश कर रही थी. मैंने महसूस किया ये प्रकृति के ख़िलाफ़ है."
वो सवाल पर सवाल उठाते हैं. "भारत का अन्न भंडार कहा जाने वाल पंजाब, जिसके नाम से ही पता चलता है कि यहां पांच नदियां बहती है और जहां ज़मीन सब से उपजाऊ है, आज संकट में क्यों है? क्यों यहाँ के छोटे किसान क़र्ज़ों के जाल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं? क्यों यहां के किसान आत्म हत्या करने पर मजबूर हैं?"
वो अपनी ही बातों का जवाब देते हुए कहते हैं कि इसकी वजह है विदेशी कंपनियों के जीन संवर्धित बीज का इस्तेमाल. केमिकल खाद का ज्यादा इस्तेमाल. किसानों का रातों-रात अमीर बनने का सपना और पैसे कमाने की ‘लालच’.
जैसा कि एक ज़माने में जेनेटिकली मोडिफ़ाइड बीजों के भक्त कुलवंत राय शर्मा कहते हैं, "हमें लगा हम जितना केमिकल इस्तेमाल करेंगे या जितना जेनेटिकली मोडिफ़ाइड या जीन संवर्धित बीज का इस्तेमाल करेंगे उतनी पैदावार बढ़ेगी और उतना हम अमीर हो जाएंगे."
पंजाब में ड्रग्स (नशीले पदार्थ) की लोगों को लत लगी है जिससे सब चिंतित हैं. मीडिया में इस पर रोज़ ख़बरें आ रही हैं. लेकिन इन नशीले पदार्थों की आदत से पहले यहां के किसानों को केमिकल और जेनेटिकली मोडिफ़ाइड बीज की आदत लग चुकी थी. केवल फ़र्क़ इतना है कि मीडिया की इसमें दिलचस्पी नहीं नज़र आती.
हरजंट सिंह से अब गांव के कई किसान प्रभावित नज़र आते हैं. उनमें से एक कुलवंत राय शर्मा भी हैं.
वो कहते हैं, "मैं सालों से जेनेटिकली मोडिफ़ाइड बीज और केमिकल खाद का इस्तेमाल करता आ रहा था. पहले फसल खूब हुई. शुरू के सालों में एक एकड़ खेत में 17-18 क्विंटल पैदावार होती थी. पिछले कुछ सालों में पैदावार घट कर 3 से 4 क्विंटल रह गई है."
कुलवंत शर्मा अब स्थानीय बीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं. पैदावार के बारे में वो कहते हैं, "गुज़ारा हो जाता है. कम से कम इतना तय है कि खेत और फसल बर्बाद नहीं होंगे."
कुलवंत राय शर्मा की तरह गांव के लगभग सभी किसान हरजंट सिंह की सलाह मानने को तैयार नज़र आते हैं.
हरजंट सिंह की सलाह है प्रकृति की तरफ़ लौटो.
अपने घर के अहाते में एक गौशाले में कुछ गायों की पीठ पर हाथ फेरते हुए वो कहते हैं, "हम पशु भी देसी रखते हैं. केवल गोबर खाद का इस्तेमाल करते हैं. देसी बीज की तलाश में कई राज्यों का दौर करते हैं. हम किसान भाइयों से कहते हैं कि वो प्रकृति से रिश्ता दोबारा से जोड़ें."
लेकिन कीटनाशकों या कीड़े मारने की दवाइयों की एक दुकान के मालिक मंजीत सिंह कहते हैं, "देसी बीजों और खाद की तरफ़ वापसी एक लंबा सफ़र होगा. हम जो केमिकल बेचते हैं उसके इस्तेमाल से ज़मीने सख़्त हो गई हैं. इसको दोबारा उपजाऊ बनाने में 10 साल लग सकते हैं."
सफ़र कठिन ज़रूर है लेकिन कर्ज़ में डूबे किसानों के अनुसार वो इस कठिनाई का सामना करने को तैयार हैं.
हरजंट सिंह कहते हैं कि अपने गुनाहों का प्रायश्चित तो करना ही पड़ेगा. अपनी लालच की सज़ा तो भुगतनी ही पड़ेगी. लेकिन "उसके बाद का समय आसान होगा."
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