क्या अखिलेश में अब भी वो चिंगारी बाक़ी है?
उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले क़ौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय से कई सवाल उठ रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता मानते हैं कि अगले एक-दो दिनों में साफ़ हो जाएगा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की राजनीतिक अपराधिकरण के विरोधी होने की छवि बनी रहेगी या […]
उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले क़ौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय से कई सवाल उठ रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता मानते हैं कि अगले एक-दो दिनों में साफ़ हो जाएगा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की राजनीतिक अपराधिकरण के विरोधी होने की छवि बनी रहेगी या टूट जाएगी.
वो कहते हैं, "एक दो दिन इंतज़ार करना होगा ये देखने के लिए कि क्या अखिलेश यादव में अभी भी वो चिंगारी बाक़ी है या वो पूरी तरीक़े से समाजवादी पार्टी के नेता बन गए हैं, कि राजनीतिक लाभ के लिए अपराधियों का साथ लेने में उनको परहेज़ नहीं है."
शरद गुप्ता कहते हैं कि शिवपाल यादव और मुख्तार अंसारी को साथ देखना बिल्कुल वैसे ही है जैसे शिवपाल यादव ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक बड़े माफ़िया डीपी यादव को 2012 चुनाव से ठीक पहले इसी तरीक़े से पार्टी में शामिल किया था.
इस फ़ैसले के अगले ही दिन अखिलेश यादव ने इसका ज़बरदस्त विरोध किया, इतना विरोध कि इस फ़ैसले को वापस लेना पड़ा.
उस वक़्त अखिलेश यादव पार्टी के महासचिव थे और पार्टी के एक उभरते नेता.
ऐसे में माना गया कि अखिलेश यादव गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ हैं, राजनीति के अपराधिकरण के ख़िलाफ़ हैं.
लेकिन उनकी सरकार के अगले चार साल के दौरान ऐसा कुछ नहीं देखने को मिला, कई दंगे भी हुए, सांप्रदायिकता बहुत उफ़ान पर थी, कैराना हो, या उससे पहले मुज़फ़्फ़रनगर दंगे. जगह-जगह पर दंगे और अपराधों की बाढ़ आ गई.
ऐसे में उनकी ये छवि अपराधिकरण के विरोध में असरदार नहीं दिखी और अब मुख़्तार और अफ़ज़ाल अंसारी के शामिल होने से एक बड़ा धब्बा लगा है.
लेकिन शरद गुप्ता मानते हैं कि इस विलय के पीछे एक बड़ा कारण भी है.
उनके मुताबिक़ सर्वेक्षण में साफ़ दिख रहा था कि आगामी चुनावों में बहुजन समाज पार्टी को बढ़त मिल रही है और समाजवादी पार्टी बैकफ़ुट पर है.
ऐसे में पार्टी को लगा कि क़ौमी एकता दल को साथ लेने से पूर्वी उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों में पैठ बनाने में मदद मिलेगी.
क़ौमी एकता दल के अध्यक्ष अफ़ज़ाल अंसारी हैं, पहले समाजवादी पार्टी से सांसद रहे हैं.
उनके छोटे भाई मुख़्तार अंसारी विधायक रहे हैं दो बार. मुख़्तार अंसारी की एक माफ़िया के रूप में पहचान है, कई हत्याओं में नाम सामने आए हैं.
उत्तर प्रदेश के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में आज भी वो जेल में हैं.
इन भाइयों का पूर्वी उत्तर प्रदेश के मउ, घोसी, गाज़ीपुर और बनारस ज़िलों में दबदबा रहा है.
(बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी से बातचीत पर आधारित)
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