बार्सिलोना के सुपरस्टार लियोनल मेसी (29) ने अर्जेंटीना के कोपा अमेरिका के फाइनल में चिली से हारने के बाद सोमवार को अंतरराष्ट्रीय फुटबाॅल को अलविदा करने की घोषणा कर दी. स्टार फुटबाॅलर ने कहा, यह मेरे और टीम के लिए बहुत मुश्किल क्षण है. यह कहना मुश्किल है, लेकिन अर्जेंटीनी टीम के साथ मेरा सफर खत्म हो गया है. मैं जो कर सकता था, वह मैंने किया. दुख होता है कि हम चैंपियन नहीं बन पाये. दुनिया के मशहूर फुटबॉलर के संन्यास पर यह खास रिपोर्ट.
गौतम सरकार
कहते हैं, मैन प्रपोजेस एंड गॉड डिस्पोजेस. इनसान भले सभी तैयारियां कर ले, जब तक ऊपरवाले की मरजी नहीं होती, कुछ भी नहीं हो सकता. ऐसा ही हुआ है लियोनेल मेसी के साथ. दुनिया का सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर भी अपनी टीम को विश्व कप या कोपा अमेरिका कप जिता नहीं सका. लिहाजा उसने अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल से संन्यास का फैसला लिया.
मेसी जैसे आसमान की बुलंदियों को छूनेवाला फुटबॉलर ही इस तरह का कठिन फैसला कर सकता था. यह और किसी फुटबॉलर के बस की बात नहीं थी. यह याद रखना होगा कि फुटबॉल कोई व्यक्तिगत खेल नहीं है. यह एक टीम गेम होता है. स्वामी विवेकानंद जैसे कहते थे, ‘यूनाइटेड वी स्टैंड एंड डिवाइडेड वी फॉल ’. अकेले कोई खिलाड़ी मैच का एक बड़ा फैक्टर तो बन सकता है, लेकिन जीत या हार समूची टीम की होती है. मेसी ने जब देखा कि वह समूची टीम को एकसाथ लेकर विश्व कप या कोपा अमेरिका कप, नहीं जिता सकता तो उसने अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल को अलविदा कहने का फैसला किया.
हालांकि, उसका यह फैसला न केवल फुटबॉल प्रेमियों के लिए, बल्कि सभी खेल प्रेमियों के लिए जरूर दुर्भाग्यजनक है, लेकिन उसने बिल्कुल सही फैसला किया है. उसकी उम्र अभी भले 29 वर्ष हो, लेकिन यह मायने नहीं रखता. अगले विश्व कप तक वह 31 वर्ष से ऊपर का हो जायेगा और वह समझ चुका था कि अर्जेंटीना टीम के साथ अब देश को वह सफलता नहीं दिला सकता जो उससे अपेक्षा की जा रही है. तीन-तीन बार वह असफल रहा. लेकिन उसे ट्रैजिक नायक कहना गलत होगा.
उसकी व्यक्तिगत क्षमता और दक्षता मौजूदा किसी भी फुटबॉलर से कहीं अधिक है. आगे ऐसा कोई खिलाड़ी और आयेगा या नहीं, कहना कठिन है. फुटबॉल जगत में उसने जो व्यक्तिगत तौर पर हासिल किया, उसने जो दैवीय आनंद की अनुभूति फुटबॉल प्रेमियों को करायी, उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती.
उसे फुटबॉल का विजार्ड या जादूगर कहा जा सकता है. बतौर इनसान भी वह अतुलनीय है. मैदान के भीतर और मैदान के बाहर उसका आचरण हमेशा ही दूसरों के लिए प्रेरणादायक रहा है.
लेकिन सभी चीजों का एक अंत होता है. मेसी ने बेहद परिपक्व फुटबॉलर की तरह अपने अंतरराष्ट्रीय कैरियर को समाप्त करने का फैसला किया है. क्लब फुटबॉल में मेसी अपना खेल जारी रखेगा. हम सभी उसके चमत्कृत कर देने वाले फुटबॉल का आनंद आगे भी लेते रहेंगे. लेकिन ये वक्त है उसके फैसले का सम्मान करने का.
यह सही है कि हम सभी फुटबॉल प्रेमियों को उसकी कमी काफी खलेगी. उसकी जादूगरी अब कभी भी अर्जेेंटीना के लिए देखने को नहीं मिलेगी, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल से विदा होते हुए भी मेसी ने अपने बेहद मजबूत चरित्र का परिचय दिया. उसने अपने कैरियर की बुलंदी पर संन्यास लिया. जो यह फिर से साबित करता है कि मेसी के समान और कोई नहीं.
(लेखक भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व खिलाड़ी हैं. उन्हें इंडियन बेकेनबावर और ‘उस्ताद’ के नाम से भी जाना जाता है. 1977 में मोहनबागान की ओर से कॉसमस के खिलाफ खेलते हुए उन्होंने फुटबॉल के महान खिलाड़ी पेले के मार्कर की भूमिका निभायी थी. मैच के बाद पेले ने उनकी जमकर तारीफ की थी. 1983 में वह मोहनबागान के कप्तान बने. गौतम सरकार ने 1974 में एशियन गेम्स और मरडेका कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. फिलहाल वह फुटबॉल अकादमी चलाते हैं और बतौर फुटबॉल विश्लेषक उन्हें जाना जाता है.)