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जीवन में पवित्रता की कसौटी

तुम कोई अच्छी किताब पढ़ कर एक-आध नेक विचार सोच लेते हो, पर यह कोई मायने नहीं रखता. किताब पढ़ कर तुम यह नहीं कह सकते कि तुम एक भले और नेक इनसान बन गये हो. जो भी किताब पढ़ोगे उससे प्रभावित तो होगे ही. बुद्ध, क्राइस्ट, विवेकानंद और सत्यानंद तो सही बात कहते ही […]

तुम कोई अच्छी किताब पढ़ कर एक-आध नेक विचार सोच लेते हो, पर यह कोई मायने नहीं रखता. किताब पढ़ कर तुम यह नहीं कह सकते कि तुम एक भले और नेक इनसान बन गये हो. जो भी किताब पढ़ोगे उससे प्रभावित तो होगे ही. बुद्ध, क्राइस्ट, विवेकानंद और सत्यानंद तो सही बात कहते ही हैं, उनके विचार नेक हैं ही. लेकिन क्या तुम भी वैसा अनुभव कर सकते हो?

आध्यात्मिक जीवन में यह सवाल अक्सर उठता है कि हृदय की शुद्धि, दिल की सफाई कहते किसको हैं ? यह कैसे पता चलेगा कि हमारा दिल साफ है या नहीं? रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे- जहां गंदगी होती है, वहां मक्खी अपने आप आती है. जहां मीठा होता है, वहां चींटी अपने आप आती है. जहां संपत्ति होती है, वहीं चोर आता है. और जहां सुंदर बगीचा, सुंदर तालाब, सुंदर फूल, बड़ा अच्छा सुरम्य ललित वातावरण होता है, वहां सब लोग अपने आप आते हैं. हृदय भी ऐसा होना चाहिए.

दिल और दिमाग दो अलग चीजें हैं. दिल कहते हैं भावना को और दिमाग कहते हैं विचार को. विचार दिमाग से पैदा होता है और भावना हृदय से. लेकिन भावना दिमाग को भी प्रभावित करती है. अगर तुम्हारे अंदर भय, निंदा, हिंसा, काम, क्रोध या ईष्र्या जैसे बुरे विचार आते हैं, तो समझ लो किजरूर तुम्हारी भावना में गड़बड़ है. अगर तुम्हारा हृदय शुद्ध है, तो तुम्हारे विचार भी वैसे ही शुद्ध और मलिनता से मुक्त होंगे. यही जीवन में पवित्रता की कसौटी है. तुम कोई अच्छी किताब पढ़ कर एक-आध नेक विचार सोच लेते हो, पर कोई मायने नहीं रखता. किताब पढ़ कर तुम नहीं कह सकते कि एक भले और नेक इनसान बन गये हो. जो भी किताब पढ़ोगे उससे प्रभावित तो होगे ही. बुद्ध, क्राइस्ट, विवेकानंद और सत्यानंद तो सही बात कहते ही हैं, उनके विचार नेक हैं ही. लेकिन क्या तुम भी वैसा अनुभव कर सकते हो?

दिमाग नहीं, हृदय भावना ही भक्ति का आधार होते हैं. बिना भावना के भक्ति हो ही नहीं सकती. बिना भावना के काम-वासना, क्रोध, भय, ईष्र्या, सुख-दुख या चिंता हो ही नहीं सकती. इसका मतलब यह हुआ कि अशुभ रास्ते से जाने वाली भावना को ही शुभ मार्ग की ओर ले जाना है. यह जो वासना की नदी बह रही है, इसको शुभ मार्ग की ओर ले जाओ और शुभ मार्ग पर नियोजित करे क्षीण करो. इसी वासना की नदी को हम भावना बोलते हैं. इसको किसी ने देखा तो नहीं है, पर अनुभव जरूर हुआ है. अब इस नदी को हमलोग नियोजित करते हैं, इसका मार्ग बदलते हैं. इसका मार्ग बदल कर नहर बना देते हैं, खेतों की तरफ ले जाते हैं और बिजली पैदा करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं.

जो नदी कभी अपने तट को तोड़ कर गांवों, बस्तियों और खेतों को बरबाद कर रही थी, वही नदी आज निर्माणकारी हो गयी है. उसी प्रकार भावना की जो नदी है, जिससे तुममें क्रोध, काम-वासना या ईष्र्या पैदा होती है, जिस कारण तुम किसी को गोली मार देते हो, किसी को मुकदमे में फंसा देते हो, बीबी-बच्चों की पिटाई करते हो, दूसरी औरत के पास जाते हो या दूसरे का धन हड़प लेते हो, वह भावना अलग-अलग नहीं होती. अगर तुम्हारी जेब में 20 रुपये हैं, तो ऐसा नहीं हो सकता कि 10 रुपये इस जेब में रहे और 10 दूसरी जेब में. भावना में आधे-आधे की बात लागू नहीं होती. अगर मनुष्य को जीवन की दिशा बदलनी है, तो भावना का शत-प्रतिशत मार्ग परिवर्तन जरूरी है.

आखिर विवेकानंद जी क्या थे? ज्यादा-से-ज्यादा कॉलेज से पढ़-लिखकर वकील वगैरह बने होते. पर आज तो वे युग पुरुष हो गये न, लाखों-करोड़ों व्यक्तियों के लिए एक प्रेरणास्नेत बन गये हैं.

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