इराक़ युद्ध में ब्रिटेन की भूमिका को लेकर बुधवार को आई चिलकॉट रिपोर्ट में ब्लेयर प्रशासन पर कई गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ मुक़्तदर ख़ान का कहना है कि अब ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री और अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) में मुकदमा चलाने का आधार पैदा हो गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इराक़ पर हमला कोई ‘अंतिम विकल्प’ नहीं था.
अमरीका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान ने बीबीसी को बताया, "इस रिपोर्ट की अहमियत ये है कि उस दौरान आलोचकों ने जो आरोप लगाए थे, उसका बहुत ही व्यवस्थित और तर्कसंगत तरीक़े से दस्तावेज बनाया गया है. यूं कहें कि अब ये सारे आरोप एक आधिकारिक रिपोर्ट बन गए हैं."
वो कहते हैं, "पिछले दस साल से हम लोग कह रहे हैं कि अमरीका और ब्रिटेन में खुफिया जानकारियों को तोड़ा मरोड़ा गया और सामूहिक नरसंहार के हथियारों के बारे में बढ़ा चढ़ा कर बातें की गईं."
ख़ान के मुताबिक़, अब इस आधार पर टोनी ब्लेयर और जैक स्ट्रा जैसे ब्रितानी नेताओं पर इराक़ के ख़िलाफ़ ग़ैरक़ानूनी युद्ध छेड़ने और युद्ध अपराध के मुक़दमे भी चलाए जा सकते हैं.
हाल ही में यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर होने पर हुए जनमत संग्रह का इस मुद्दे पर कोई असर पड़ सकता है?
प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, "अगर आज प्रक्रिया शुरू होती है तो ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से निकलने में डेढ़ दो साल लग जाएंगे. लेकिन इस दौरान अगर किसी संस्था, देश या एनजीओ या व्यक्ति ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में अपील कर दी तो सुनवाई हो सकती है."
उनका ये भी कहना है कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में इसको वीटो किया जा सकता है, लेकिन चिलकॉट की रिपोर्ट इतनी पुख़्ता है कि यदि इसको आधार बनाया जाता है तो टोनी ब्लेयर को कानूनी कार्रवाई से बचाना मुश्किल होगा.
प्रोफ़ेसर ख़ान का कहना है, "इराक़ युद्ध में टोनी ब्लेयर का सबसे बड़ा तर्क ये था कि फ्रांस और तुर्की की तरह अगर ब्रिटेन इस जंग के बाहर रहता है तो अमरीकी विदेश नीति को प्रभावित करने की उसकी क्षमता पर असर पड़ेगा. टोनी ब्लेयर ने कई बार कहा कि मैं अमरीका की विदेश नीति को सुधार सकता हूँ, उदार बना सकता हूँ."
प्रोफ़ेसर ख़ान के अनुसार, "अब अंतरराष्ट्रीय सिविल सोसायटी को चाहिए कि ब्रिटेन में इराक़ युद्ध को लेकर जिस तरह जांच हुई, वैसी ही जांच अमरीका में हो, ताकि ये पता चल सके कि जो युद्ध हुआ वो अतरराष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक वैध था या नहीं."
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