कौन जिहाद को बेहतरीन इबादत मानते हैं?
शिराज मेहर किंग्स कॉलेज, लंदन रविवार को बग़दाद में हुए चरमपंथी हमलों में पहले 165 लोगों की मौत की ख़बर आई जो अब बढ़कर 250 हो गई है. सुरक्षा सेवाओं के मुताबिक इस्लामिक स्टेट की ओर से रमज़ान में किए गए आठ अलग-अलग हमलों में से ये एक था. ऑरलैंडो, ढाका से लेकर इस्तांबुल तक […]
रविवार को बग़दाद में हुए चरमपंथी हमलों में पहले 165 लोगों की मौत की ख़बर आई जो अब बढ़कर 250 हो गई है.
सुरक्षा सेवाओं के मुताबिक इस्लामिक स्टेट की ओर से रमज़ान में किए गए आठ अलग-अलग हमलों में से ये एक था.
ऑरलैंडो, ढाका से लेकर इस्तांबुल तक ऐसे हमलों में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है.
इस बात की भी आशंका है कि सोमवार को सऊदी अरब के मदीना शहर में पैगंबर मोहम्मद की मस्जिद के बाहर हुए हमले में भी इस्लामिक स्टेट का ही हाथ है.
इस्लामिक कैलेंडर में रमज़ान को सबसे मुबारक और आध्यात्मिक महीना माना जाता है.
तीस दिन के लिए मुसलमान दिन के वक्त खाना नहीं खाते और पानी नहीं पीते. उनका मानना है कि इस दौरान अल्लाह उन्हें हर भूल के लिए क्षमा कर देता है.
मस्जिद में नमाज़ियों की भीड़ होती है, जो ऊपर वाले से क्षमा और दुआ मांगने आते हैं.
उसके उलट कुछ कट्टरपंथी ऐसा भी मानते हैं कि ‘इस महीने में जीत दर्ज करनी और लूट मचानी चाहिए.’
वो मानते हैं कि ये सही मौक़ा है जब लड़ाई को दोगुना तेज़ कर देना चाहिए. इसलिए इस दौरान वो सामान्य से ज़्यादा हमले करते हैं.
सीरिया में अल कायदा के आधिकारिक संगठन नुस्रा फ्रंट ने रमज़ान को ‘विजय अभियान का महीना’ बताया है.
रमज़ान के नज़दीक आते ही आईएस के प्रवक्ता अबु मोहम्मद अल-अदनानी ने दुनियाभर के अपने समर्थकों से कहा था, "तैयार हो जाओ. काफिरों के लिए इसे आपदा का महीना बनाने के लिए तैयार हो जाओ, विशेष रूप से यूरोप और अमरीका में खिलाफत के समर्थकों के लिए."
शायद यही वो अपील थी जिसने उमर मतीन जैसे अकेले लड़ाकों को फ्लोरिडा के ऑरलैंडो में समलैंगिक पुरुषों के एक क्लब में 49 लोगों की हत्या के लिए प्रोत्साहित किया.
उमर मतीन ने अबू बकर अल-बगदादी के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुए इस वारदात को अंजाम दिया था.
वैसे रमज़ान को युद्ध का महीना मानने की प्रथा इस्लामिक इतिहास से ही आती है.
पैगंबर मोहम्मद ने अपनी पहली जिहाद, जिसे बद्र की लड़ाई के नाम से जाना जाता है, वर्ष 624 में रमज़ान के महीने में ही लड़ी थी.
इसके आठ साल बाद उन्होंने रमज़ान के ही महीने में मक्का पर जीत हासिल की थी.
पैगंबर मोहम्मद की कब्र वाले स्थल के बाहर सोमवार को हुए हमले ने पूरी इस्लामिक दुनिया को हिलाकर रख दिया.
इस घटना से सवाल उठने लगे कि आखिर क्यों इस्लामिक स्टेट ने इस्लाम के पैगंबर की कब्र वाली जगह के बाहर धमाका कराया?
पैगंबर की कब्र उसी मस्जिद परिसर में मौजूद है, इसलिए मुसलमान इस जगह को पाक स्थल मानते हैं.
लेकिन आईएस जिस कट्टरवादी इस्लाम में यकीन रखता है, उसमें उन्हें लगता है कि इस दरगाह के होने की वजह से लोगों का ध्यान अल्लाह से परे हट रहा है, इसलिए इसे ढहा देना चाहिए.
"मॉर्डन जिहाद के गॉडफादर" माने जने वाले अब्दुल्ला अज़ाम ने 1980 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान में अरब विदेशी लड़ाकों का नेतृत्व किया था. वो तर्क देते हैं, "जिहाद की उपेक्षा करना उपवास और नमाज़ छोड़ने के बराबर है."
बाद में उन्होंने लिखा, "जिहाद, इबादत करने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा है. इस रास्ते मुसलमान को जन्नत हासिल हो सकती है."
जिहाद और रमज़ान से उसके संबंध की इन व्याख्याओं को लेकर आम मुसलमान बेहद निराश हैं.
उनके लिए ये महीना है संयम और खुद के अंदर झांकने का, लेकिन आधुनिक इस्लाम में संकट कुछ ऐसा है कि चरमपंथियों की व्याख्या प्रामाणिक समझ से परे है.
कट्टरपंथी तो ये भी मानते हैं कि रमज़ान के महीने में अगर ज़्यादा नमाज़ पढ़ने और दान देने को प्रोत्साहन दिया जाता है तो ज्यादा रक्तपात को क्यों नहीं?
यदि इसको इस तरीके से देखेगे तो समझ में आएगा कि आखिर क्यों इस साल रमज़ान के मुबारक महीने में इतनी भयानक घटनाएँ हुई हैं.
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