‘हर कोई नहीं तय करेगा अभिव्यक्ति की सीमा’

इमरान क़ुरैशी बैंगलुरु से, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए मद्रास हाई कोर्ट ने सरकार को अभिव्यक्ति की आज़ादी के मामले में गाइडलाइन्स दी हैं. कोर्ट ने ये भी कहा कि वो अधिकारियों को निर्देश दे कि इन मुद्दों में किस तरह से पेश आना चाहिए. हाईकोर्ट ने चर्चित तमिल लेखक और प्रोफ़ेसर पेरुमल मुरुगन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 8, 2016 10:07 AM
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मद्रास हाई कोर्ट ने सरकार को अभिव्यक्ति की आज़ादी के मामले में गाइडलाइन्स दी हैं. कोर्ट ने ये भी कहा कि वो अधिकारियों को निर्देश दे कि इन मुद्दों में किस तरह से पेश आना चाहिए.

हाईकोर्ट ने चर्चित तमिल लेखक और प्रोफ़ेसर पेरुमल मुरुगन के मामले में फ़ैसले सुनाते हुए दिशा निर्देश दिए हैं.

मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कौल ने मुरुगन मामले में डिविज़न बेंच का नेतृत्व करते हुए ये फ़ैसला सुनाया.

पेरुमल मुरुगन को उनकी किताब ‘मधोरुबगन’ में लिखी कुछ टिप्पणियों के लिए ज़िला राजस्व अधिकारी की ओर से ‘समन’ जारी किया गया था और ‘बिना शर्त माफ़ी’ मांगने पर मजबूर किया गया था. कई दक्षिणपंथी संगठनों ने इस किताब का विरोध किया था.

कोर्ट ने मुरुगन की किताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग को ख़ारिज कर दिया. मुरुगन ने अपनी किताब के विरोध के बाद फ़ेसबुक पर ऐलान किया था कि वो लिखना छोड़ रहे हैं.

उन्होंने लिखा था, "मर गया पेरुमल मुरुगन." उनके इस बयान पर काफी विवाद हुआ था. फ़ैसले के बाद उनके हवाले से कहा गया है कि वे दोबारा लिखना शुरू करेंगे.

तमिल उपन्यास ‘मधोरुबगन’ दरअसल तमिलनाडु के तिरुचेंगोडे के एक गरीब निःसंतान दंपति की कहानी है.

…और जी उठा पेरुमल मुरुगन!
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यह किताब तमिल में 2011 में प्रकाशित हुई थी. इसके विवादों में घिरने के बाद इसे अंग्रजी में पेंग्विन ने 2014 में प्रकाशित किया.

पढ़ें जस्टिस कौल की खंडपीठ ने क्या कहा-

  • ऐसे मामलों में शांति कायम करने के लिए क़ानूनी प्रक्रिया है और हम उसका उल्लंघन नहीं करेंगे. हमारे सामने यह स्वीकार किया गया है कि अधिकारी निश्चित तौर पर बिना किसी क़ानूनी प्रावधान के समन जारी नहीं कर सकते हैं.
  • राज्य के किसी भी अधिकारी की कार्रवाई क़ानून के मुताबिक़ हो. यदि किसी सरकारी विभाग की ओर से किसी अधिकार का इस्तेमाल होता है तो ये ज़रूर बताएं कि किस प्रावधान के तहत कार्रवाई की जा रही है.
  • क़ानून-व्यवस्था कायम रखना सरकार की ज़िम्मेदारी होती है लेकिन ये किसी कलाकार या लेखक को अपनी राय से हटने पर मजबूर करने की इजाज़त नहीं देती.
  • किसी ग़ैर सरकारी समूह को इस बात का अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वो सही और गलत का फ़ैसला करें.
  • अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की आज़ादी के मुताबिक़- "अभिव्यक्ति की आज़ादी तब तक कायम रहेगी जब तक कि कोर्ट उसे अनुच्छेद 19 (2) के तहत उचित प्रतिबंध के दायरे में नहीं पाता. जब किसी प्रकाशन, कला, नाटक, फ़िल्म, गाना, कविता और कार्टून के ख़िलाफ़ कोई भी शिकायत मिलती है तो इसका ध्यान रखना चाहिए."
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  • तमिलनाडु सरकार इस तरह के विवादों से निपटने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम बनाए.
  • विशेषज्ञों की टीम में साहित्य और कला के क्षेत्र का लोग ज़रूर होने चाहिए ताकि ‘क़ानून का ख्याल रखते हुए स्वतंत्र विचार सामने आ सकें.’
  • सरकार कला और साहित्य को लेकर होने वाले टकराव के मामलों में अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए नियमित तौर पर कार्यक्रम चलाए.

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